ओपिनियन

संपादकीय: हवा में बढ़ता जहर, भविष्य की सांसों पर गंभीर संकट

देश के सबसे प्रदूषित 50 जिलों में लगभग आधे दिल्ली और असम के हैं।

2 min read
Nov 28, 2025

दिल्ली की हवा अब सिर्फ धुंध नहीं, जहर बन चुकी है। नवंबर आते ही हमारा आसमान ग्रे हो जाता है, फेफड़े जलने लगते हैं और बच्चे मास्क लगाकर स्कूल जाने को मजबूर हो जाते हैं। इस बार तो असम तक की हवा खराब हो गई। देश के सबसे प्रदूषित 50 जिलों में लगभग आधे दिल्ली और असम के हैं। दिल्ली में पीएम 2.5 का वार्षिक औसत 101 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज किया गया है। जबकि डब्ल्यूएचओ के अनुसार सुरक्षित मानक मात्र 5 है। यानी हम 20 गुना जहर पी रहे हैं, फिर भी चुप हैं। चूंकि हर साल ही प्रदूषण की मार पड़ती है, इसलिए इसे सामान्य तरीके से लिया जाने लगा है, जो गंभीर चिंता का विषय है।


प्रदूषण के कारणों में सबसे पहले पराली जलाने की बात आती है तो पंजाब-हरियाणा के किसानों को दोषी बना दिया जाता है। दस साल से पराली प्रबंधन के नाम पर खरबों रुपए खर्च हुए लेकिन समाधान शून्य है। बड़े स्तर का बायो-डीकंपोजर प्लांट का स्थायी मॉडल क्यों नहीं खड़ा हो सका? सवाल यह भी है कि दिल्ली में 75 फीसदी प्रदूषित करने वाले बड़े उद्योग-कारखाने किसके हैं? रसूखदारों के होने की वजह से ही ग्रैप-4 लागू होने पर भी चिमनियां धुआं उगलती रहती हैं। अधिकारी हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते हैं, क्योंकि फाइल ऊपर पहुंचते-पहुंचते 'समझौता' हो जाता है। बड़ा सवाल यह भी है कि इलेक्ट्रिक वाहन नीति बनाने में तो हम अग्रणी बनने चले थे, लेकिन अब भी पर्याप्त चार्जिंग स्टेशन क्यों नहीं बने? अब भी हाईवे पर बैटरी खतरे में पड़ जाती है। सीधी सी बात है कि लोग ईवी क्यों खरीदें जब सड़कों पर चार्जिंग स्टेशन ही नहीं हैं। आखिरकार अधिकतर पेट्रोल पंप भी तो रसूखदारों के हैं। अगर चार्जिंग स्टेशन लग गए तो पेट्रोल कौन भरवाएगा? यही नहीं, डीजल ट्रक दिन-रात दिल्ली में घुस रहे हैं, उन पर बीएस-6 का सख्ती से पालन क्यों नहीं होता? शासन-प्रशासन की मिलीभगत साफ दिखती है। सबसे शर्मनाक बात यह है कि हम प्रदूषण को 2-3 महीने यह सोचते हुए सहते रहते हैं कि मार्च आते ही हवा साफ हो जाएगी। यही रवैया हमें नुकसान पहुंचा रहा है।

विदेशों में गाडिय़ां हमसे ज्यादा हैं, लेकिन लंदन, पेरिस, स्टॉकहोम में हवा साफ क्यों है? क्योंकि वहां नियम अमीर-गरीब, नेता-जनता सब पर एक समान लागू होते हैं। हमारे यहां सरकारें योजनाएं बनाती हैं, पर जमीन पर उनका पालन उतनी तत्परता से नहीं होता।हमें यह समझना होगा कि हवा हमारी साझा संपत्ति है। इसे दूषित करने का अधिकार किसी को नहीं और इसे सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी हम सबकी है। प्रदूषण अब मौसमी घटनाक्रम नहीं, बल्कि एक ऐसा खतरा है जो हमारी अगली पीढिय़ों की सांसें छीन रहा है। अब समय आ चुका है कि सरकार, उद्योग और समाज मिलकर ठोस और स्थायी समाधान की दिशा में कदम बढ़ाएं, वरना आने वाले वर्षों में दिल्ली ही नहीं, पूरा देश जहर में सांस ले रहा होगा।

Published on:
28 Nov 2025 02:13 pm
Also Read
View All

अगली खबर