अमरीकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने भारत पर 25 फीसदी आयात शुल्क लगाने की घोषणा कर द्विपक्षीय संबंधों को बड़ा झटका दे दिया है। वह भी ऐसे समय जब दोनों देशों के बीच व्यापार वार्ताएं चल रही हैं। हालांकि, बातचीत के रास्ते बंद नहीं हुए हैं, लेकिन समझौतों के बारे में जो उम्मीद की जा रही […]
अमरीकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने भारत पर 25 फीसदी आयात शुल्क लगाने की घोषणा कर द्विपक्षीय संबंधों को बड़ा झटका दे दिया है। वह भी ऐसे समय जब दोनों देशों के बीच व्यापार वार्ताएं चल रही हैं। हालांकि, बातचीत के रास्ते बंद नहीं हुए हैं, लेकिन समझौतों के बारे में जो उम्मीद की जा रही थी वह कमजोर पड़ती जरूर दिख रही है। ट्रंप प्रशासन का यह कदम भारत के लिए सिर्फ आर्थिक दबाव नहीं, बल्कि कूटनीतिक चुनौती भी बनकर सामने आया है। खासकर तब जब वह पाकिस्तान के साथ अपने रिश्ते मजबूत कर रहा है और भारत-रूस की दोस्ती का खुला विरोध करने लगा है। भारत पर टैरिफ के अतिरिक्त रूसी साझेदारी के कारण जुर्माना लगाने का फैसला केवल व्यापारिक नहीं, बल्कि रणनीतिक दबाव की एक कोशिश भी है। दूसरी ओर, इसकी छिपी हुई मंशा अमरीकी कृषि और डेयरी उत्पादों के लिए भारत का बड़ा बाजार खोलना है, जो न सिर्फ भारत के किसानों को तबाह करने वाला होगा बल्कि, लंबे समय में यहां के लोगों के स्वास्थ्य को भी बड़ा नुकसान पहुंचाएगा, जिसका अमरीकी फॉर्मा सिंडिकेट लाभ उठाएगा।
ट्रंप प्रशासन की नीति में सबसे अधिक चिंता का विषय पाकिस्तान को लेकर उसका रुख है। हाल ही अमरीकी नेतृत्व ने पाकिस्तान के सेना प्रमुख को विशेष अहमियत दी है। कुछ व्यापारिक छूटें भी फिर से बहाल की गई हैं। इन कदमों से संकेत मिलते हैं कि अमरीका अब पाकिस्तान को फिर से अपनी सामरिक नीति में जगह दे रहा है। यह रुख भारत के लिए साफ चेतावनी है कि दक्षिण एशिया में अमरीकी प्राथमिकताएं स्थायी नहीं हैं। भारत, जो आतंकी घटनाओं को लेकर पाकिस्तान की भूमिका पर लगातार सवाल उठाता रहा है, अब देख रहा है कि अमरीका उसी पाकिस्तान को फिर से सहयोगी मान रहा है। भारत की रूस के साथ मजबूत रक्षा साझेदारी शीतकाल से ही अमरीकी नजरों में लगातार खटकती रही है क्योंकि, इसी की बदौलत भारत हमेशा अपनी विदेश नीति को स्वतंत्र और संतुलित रखने में सफल रहा है।
अमरीका का यह नया टैरिफ अल्पकालिक आर्थिक निर्णय भर नहीं बल्कि, एक भू-राजनीतिक संकेत भी है। भारत भी यह भलीभांति समझता है कि अमरीका के साथ रिश्ते सिर्फ व्यापार तक सीमित नहीं हैं। रक्षा, तकनीक, निवेश और वैश्विक राजनीति में यह साझेदारी अहम है। फिर भी अब भारत को अपनी वैकल्पिक रणनीतियों पर गंभीरता से काम करना होगा। रूस, यूरोप, जापान, ऑस्ट्रेलिया और अफ्रीका के साथ संबंधों को और सुदृढ़ करना आज की जरूरत बनती जा रही है। भविष्य में वैश्विक मंच पर भारत तभी मजबूती से खड़ा हो सकता है जब वह स्पष्ट नीतियों और मजबूत घरेलू अर्थव्यवस्था के बल पर निर्णय लेने में सक्षम हो। दुनिया अब बहुधु्रवीय बन रही है और भारत को उसी अनुरूप अपने फैसले खुद तय करने होंगे- न कि दबाव में आकर।