पर्वतमाला का अंग मानी जाने वाली 1.6 लाख पहाडिय़ों में डेढ़ लाख से ज्यादा पहाडिय़ां कम ऊंची हैं।
अरावली पर्वतमाला केस में सुप्रीम कोर्ट ने पुनर्विचार कर अपने ही आदेश पर रोक का जो फैसला दिया है, वह यह उम्मीद जगाने वाला है कि पूर्व आदेश की सारी विसंगतियां अब दूर हो जाएंगी। कोर्ट ने इस संवेदनशील मुद्दे की व्यापक और समग्र समीक्षा के लिए एक नई उच्चस्तरीय समिति बनाने केे लिए कहा है। इस समिति में अरावली क्षेत्र, पर्यावरण संरक्षण, भूगर्भ और खनन से जुड़े विशेषज्ञों को शामिल किया जाएगा। अरावली पर्वतमाला और इससे पूरे पारिस्थितिकी तंत्र के नष्ट होने का जो खतरा जनमानस के मन मस्तिष्क पर मंडरा रहा था, वह भी दूर हो जाएगा यह उम्मीद की जानी चाहिए। पिछले सवा महीने से छात्र, आमजन, नेता, सामाजिक कार्यकर्ता, वैज्ञानिक, पर्यावरणविद् और पर्यावरणप्रेमी सभी अरावली की नई परिभाषा के विरोध में सड़कों पर उतर आए थे।
ऐसा इसलिए हुआ था कि सुप्रीम कोर्ट ने संबंधित कमेटी और भारतीय वन पर्यावरण मंत्रालय की सिफारिशों को स्वीकार कर केवल सौ मीटर से ऊंची पहाडिय़ों को ही अरावली पर्वतमाला का हिस्सा मानने की परिभाषा दे दी थी।सब जानते हैं कि अरावली पर्वतमालाएं पारिस्थितिकी संतुलन में अहम भूमिका निभाती रहीं है। पर्वतमाला का अंग मानी जाने वाली 1.6 लाख पहाडिय़ों में डेढ़ लाख से ज्यादा पहाडिय़ां कम ऊंची हैं। ऐसे में सवाल सिर्फ इन पहाडिय़ों की ऊंचाई तय करने का ही नहीं, बल्कि उन तमाम खतरों से जुड़ा था, जो अरावली की नई परिभाषा लागू करने से सामने आने वाले थे। अब जबकि अरावली पर्वतमाला से जुड़े चार राज्य ही नहीं, बल्कि देश के हर हिस्से में आवाज बुलंद हुई तो कोर्ट ने अपने पूर्व आदेश पर स्थगन, खनन पर रोक के साथ एक और उच्चस्तरीय समिति गठित करने का फैसला सुनाया है। प्रकृति अपना संतुलन खोने लग जाए तो यह मानव जीवन के लिए बड़े संकट का कारण बन जाता है। अरावली की पहाडिय़ों को जैव विविधता की रीढ़ कहा जा सकता है। समूचा अरावली क्षेत्र वन्यजीवों की आवाजाही वाला भी है। ऐसे में यह भी समझा जा सकता है कि खनन और अन्य मानवीय गतिविधियों को अनुमति वन्यजीवों के लिए भी खतरे की घंटी बन सकती थी। आरोप तो यह भी लगाए जा रहे हैं कि पिछली समिति ने केवल अरावली से जुड़े वैज्ञानिक और वास्तविक तथ्यों की बल्कि जनभावना की भी अनदेखी की।
जाहिर है कि पहले ही कदम पर सब कुछ अच्छी तरह देखभाल कर रिपोर्ट दी जाती और आमजन की चिंताओं के समाधान की व्यवस्था की जाती तो न विरोध की नौबत आती और न ही तनावपूर्ण हालात बनते। सरकारों को भी अपना रवैया बदलना चाहिए। इसमें कोई संदेह नहीं कि अरावली में खनन की गतिविधियां प्रतिबंधित होने से राजस्व का नुकसान हो रहा है और रोजगार भी प्रभावित हो रहे हैं, लेकिन राजस्व से ज्यादा अरावली जीवन से जुड़ा मुद्दा है और जीवन से जुड़े मुद्दों पर समझौता करना आत्मघाती ही होगा।