कई बांध और सिंचाई परियोजनाओं के समुचित रखरखाव अभाव में लोगों को इनका पूरा लाभ नहीं मिल रहा है।
राजस्थान में बरसात का पानी व्यर्थ बहने की वजह से गर्मी आते-आते जल संकट होना आम बात है। सिंचाई के लिए भी और पीने के पानी के लिए भी। इसकी बड़ी वजह यही है कि हमारे जलस्रोतों की समय रहते रखरखाव का काम होता ही नहीं। इनमें छोटे-बड़े बांध व ताालाब शामिल हैै। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने चम्बल और ब्राह्मणी नदी के अधिशेष पानी को रावतभाटा के समीप रोकने की जिस परियोजना का मंगलवार को अवलोकन किया वह इस समस्या के समाधान की दिशा में सार्थक कदम की शुरुआत कही जा सकती है।
सब जानते हैं कि गर्मी की शुरुआत होते-होते राजस्थान में कई इलाकों में भारी जल संकट उभर कर सामने आता है। इसकी बड़ी वजह लगातार गिर रहा भूजल स्तर भी है। नतीजतन कई शहरों तो दो से चार दिन के अंतराल में पेयजल आपूर्ति हो रही है। प्रदेश में कई बांध और सिंचाई परियोजनाएं बनी है, लेकिन समुचित रखरखाव और देखभाल के अभाव में लोगों को इनका पूरा लाभ नहीं मिल रहा है। अधिकांश बड़े बांध और तालाब अभी से ही रीतने लगे है। उनका जल स्तर काïफी कम हो गया है।
यह भी पढ़ें : बजरी माफियाओं के हौंसले बुलन्द
वैसे भी प्रदेश के अधिकांश बांध पांच से छह दशक पुराने है। इन बांधों का निर्माण उस समय की जरूरत के हिसाब से किया गया है। आज इन बांधों के पानी पर कई शहर निर्भर हो गए हैं। ऐसे में इन बांधों का भराव क्षमता बढ़ाने की जरूरत है। जयपुर का रामगढ़ बांध तो दशकों से पानी को तरस रहा है। कई बड़े बांधों से निकली नहरें भी काफी जर्जर हो चुकी है। लम्बे समय से इनकी सार संभाल नहीं हुई है। मरम्मत के लिए मिलने वाला बजट भी 'ऊंट के मुंह में जीरा' साबित हो रहा है। हालत यह है कि टेल क्षेत्र के कई इलाकों में किसान अभी भी पानी का इंतजार कर रहे है।
चम्बल और ब्राह्मणी नदी की तरह ही प्रदेश की दूसरी कई बरसाती नदियों की सुध ली जाए तो इनके पानी का सदुपयोग भी किया जा सकता है। बड़ी जरूरत इन जल स्रोतों के पेटे मेें अतिक्रमण हटाने की है। केन्द्र सरकार के 'कैच द रैन' अभियान के जल स्त्रोतों का कायाकल्प करने के लिए अभी बहुत-कुछ करना बाकी है। राजस्थान में भी पानी को सहेजने के लिए जहां नए बांध, एनिकट बनाने होंगे, वहीं पुराने बांधों की भी समुचित देखभाल करनी होगी।
जयप्रकाश सिंह
jaiprakash.singh@epatrika.com