खटारा वाहनों से मरीजों का अस्पताल तक पहुंचना मुश्किल हो जाता है।
जीवन रक्षा की जब भी बात आती है एम्बुलेंस सेवाओं का योगदान सबसे अहम होता है। मरीज को समय पर उपचार मिल सके, इसके लिए एम्बुलेंस सेवाएं ही नहीं बल्कि एम्बुलेंस का दुरुस्त होना भी जरूरी है। लेकिन राजस्थान में जिस तरह की घटनाएं सामने आई हैं वे एम्बुलेंसों को लेकर चिंताजनक तस्वीर पेश करती हैं।
कई एम्बुलेंस ऐसी हैं कि इनके भरोसे अस्पताल तक नहीं पहुंचा जा सकता। जयपुर के सांगानेर इलाके में एम्बुलेंस में लगे सिलेंडर में ऑक्सीजन खत्म होने के बाद महिला मरीज की मौत का प्रकरण ऐसी ही बदइंतजामी की कहानी कहता है।
शहर हो या ग्रामीण इलाके, आए दिन ऐसी जानलेवा लापरवाही सामने आ रही है जिसमें खटारा एम्बुलेंस से होने वाली परेशानियों से मरीज और उनके परिजनों को दो-चार होना पड़ रहा है।
कभी मरीज को ले जा रही एम्बुलेंस का बीच रास्ते पेट्रोल ही खत्म हो जाता है तो कभी घायलों को लेकर अस्पताल पहुंची एम्बुलेंस का दरवाजा अचानक जाम हो जाता है। मरीजों की सांसें ऊपर-नीचे होती रहती हैं, लेकिन जिम्मेदारों की आंखें तब भी बंद ही रहती है।
एम्बुलेंस निजी हो या सरकारी, कई कबाड़ जैसी हालत में भी सड़कों पर दौड़ रही हैं। इनमें से कई ऐसी हैं जिनकी सीटें फटी हुई है, एसी खराब और ऑक्सीजन नदारद है। प्रशिक्षित स्टाफ का नामोनिशान तक नहीं रहता।
मरीजों के परिजनों से मनमाना किराया वसूला जाता है सो अलग। हैरत की बात यह है कि ऑक्सीजन सिलेंडर तक का अलग से चार्ज वसूला जाता है जो मनमानी की हद है। चिंताजनक बात यह भी है कि एसएमएस जैसे प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल की कई एम्बुलेंस कंडम हालत में हैं।
सवाल उठता है कि आखिर इन गाड़ियों को फिटनेस सर्टिफिकेट कैसे मिल जाता है? ऐसा नहीं है कि एम्बुलेंस सेवाओं के लिए कोई मानक तय नहीं है, लेकिन इनकी सख्ती से निगरानी नहीं हो रही। जीपीएस ट्रैकिंग, किराए का नियंत्रण, प्रशिक्षित स्टाफ की अनिवार्यता और रीयल-टाइम रिपोर्टिंग जैसी व्यवस्था होनी ही चाहिए। समय-समय पर एम्बुलेंस वाहनों का निरीक्षण भी होना जरूरी है ताकि इनकी खामियों को दूर किया जा सके।