घर पर रहते हुए भी कार्यस्थल से डिजिटल कनेेक्टिविटी ने अलग तरह के तनाव को जन्म दिया है। रही-सही कसर घर से कार्यस्थल की लंबी दूरी पूरी कर देती है।
भागमभाग की जिंदगी जीने के बजाय परिवार के लिए वक्त निकालना किसी भी इंसान के लिए ज्यादा जरूरी होता है। परिवार से यह जुुड़ाव व्यक्ति को न केवल भावनात्मक रूप से, बल्कि शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य के लिहाज से भी खुशनुमा रहने की ताकत देता है। इस सोच के बीच ताजा अध्ययन में आया यह तथ्य सचमुच चौंकाने वाला और चिंताजनक है कि काम के बोझ व परिवार को समय नहीं दे पाने से उपजी परिस्थितियों से निजात पाने के लिए साठ फीसदी से ज्यादा लोग अपनी मौजूदा नौकरी को बदलना चाहते हैं। ग्रेट प्लेस टू वर्क का यह अध्ययन भारत के कामकाजी लोगों के लिए और भी गंभीर है क्योंकि वर्क-लाइफ बैलेंस की ग्लोबल रैंकिंग में हम 42 वें स्थान पर हैं।
इसमें दो राय नहीं कि अधिक से अधिक कमाने की चाहत के साथ-साथ कार्यस्थल पर काम का बोझ भी बढ़ा है। इसीलिए दफ्तर के काम का तनाव घर तक भी आने लगा है। घर पर रहते हुए भी कार्यस्थल से डिजिटल कनेेक्टिविटी ने अलग तरह के तनाव को जन्म दिया है। रही-सही कसर घर से कार्यस्थल की लंबी दूरी पूरी कर देती है जहां व्यक्ति को दिनभर का बड़ा हिस्सा सफर में बिताने की मजबूरी का सामना भी करना पड़ता है। खतरे की बात यह भी है कि दफ्तर में काम का दबाव कई बार व्यक्ति का आत्मविश्वास भी कमजोर कर देता है। यह बात और है कि संस्थानों में काम के घंटे बढ़़ाने का मुद्दा भी हमारे यहां बहस का विषय बनता रहा है। तर्क यह भी दिया जा रहा है कि वैश्विक स्तर पर उत्पादकता बढ़ाने का विकल्प कार्य के घंटे बढ़ाना ही हो सकता है। इसीलिए श्रम कानून में भी काम के घंटे बढ़ाने की छूट दी जा रही है। लेकिन सच यह भी है कि वर्क-लाइफ बैलेंस ही कार्यक्षमता को निर्धारित करने वाला अहम घटक है।
काम का अत्यधिक दबाव व्यक्ति की सेहत पर विपरीत असर डालने वाला ही होता है। काम के मुकाबले वेतन बेहतर नहीं हो तो स्थिति और कष्टकारी हो सकती है। पिछले दिनों ही एक अध्ययन में यह तथ्य भी सामने आया था कि नौकरी छोड़कर खुद का व्यवसाय शुरू करने वाले युवाओं की संख्या भी इसी वजह से बढऩे लगी है ताकि वे वर्क-लाइफ में संतुलन बना सकें। एक बड़ा खतरा सोशल मीडिया से भी है, जिसने एक ही छत के नीचे रहते हुए भी पारिवारिक सदस्यों को एकाकी जीवन बिताने को मजबूर कर दिया है। डिजिटल लत के चलते घर पर मिले समय का भी परिवार से सामंजस्य बैठाने में उपयोग नहीं हो सके तो यह और भी चिंताजनक है। भाग-दौड़ की जिंदगी में परिवार के लिए समय निकालना निश्चित ही चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है। टूटते संयुक्त परिवारों के बीच परिवार को वक्त देना रिश्तों में मजबूती के साथ आपसी समझ बढ़ाने वाला होगा। इसलिए वर्क-लाइफ में संतुलन बनाए रखने के उपायों को तरजीह देना भी हमारे ही हाथ में है।