राजस्थान में चिकित्सा व्यवस्था दिनों-दिन रसातल में जा रही है। स्वास्थ्य सेवाओं की दुर्गति, भ्रष्टाचार और प्रशासनिक लापरवाही ने आमजन को असहाय बना दिया है।
अमित वाजपेयी
राजस्थान में चिकित्सा व्यवस्था दिनों-दिन रसातल में जा रही है। स्वास्थ्य सेवाओं की दुर्गति, भ्रष्टाचार और प्रशासनिक लापरवाही ने आमजन को असहाय बना दिया है।
राजस्थान गवर्नमेंट हेल्थ स्कीम (आरजीएचएस) में पेंशनर्स और कर्मचारियों के साथ जो अन्याय हुआ, वह सरकार की संवेदनहीनता को उजागर करता है। कैशलेस इलाज का दावा करने वाली सरकार ने हजारों-लाखों रुपए मरीजों से वसूल लिए, यह भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा नहीं तो और क्या है? अफसरों और निजी अस्पतालों के गठजोड़ ने पंचकर्म थैरेपी की आड़ में करोड़ों रुपए के फर्जी बिल बनाकर सरकारी खजाने को लूटा। यह कोई पहला मामला नहीं जब जनता के स्वास्थ्य पर डाका डाला गया हो।
जब चारों तरफ से भ्रष्टाचार की दुर्गंध आ रही हो, तब चिकित्सा मंत्री गजेन्द्रसिंह खींवसर का यह कहना कि आरजीएचएस योजना स्वास्थ्य विभाग के अधीन नहीं आती, भ्रष्टाचारियों को प्रश्रय देने का महज एक बहाना है। अब सवाल यह कि क्या अस्पताल स्वास्थ्य विभाग के अधीन नहीं आते? क्या चिकित्सा मंत्री का यह बयान गैर-जिम्मेदाराना नहीं है? क्या बयानबाजी के जरिए जनता को बेवकूफ नहीं समझा जा रहा? पेंशनर्स की पेंशन में से जबरन कटौती के बावजूद उनके हक की धनराशि नदारद है। यह राशि आखिर कहां जा रही है? किसके फायदे के लिए इसे रोका गया है? क्या चिकित्सा मंत्री हिम्मत जुटाकर ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों से जवाब नहीं मांग सकते? खींवसर इससे पहले वसुंधरा सरकार में भी मंत्री रह चुके हैं। उस समय का कार्यकाल भी किसी से ढका-छिपा नहीं है।
भ्रष्टाचार की एक और मिसाल देखिए, मिलावटखोरी पर रोक लगाने के लिए ‘शुद्ध आहार, मिलावट पर वार’ अभियान शुरू किया गया। अब घूसखोरी का एक ऑडियो सामने आया। इस ऑडियो ने अफसरों के भ्रष्टाचार के पूरे खेल को उजागर कर दिया। अधिकारियों, बिचौलियों और उद्योगपतियों की सांठ-गांठ सरकार के ‘जीरो टॉलरेंस’ के दावों पर कालिख पोत गई। स्वास्थ्य विभाग में बैठे अफसरों पर भी गंभीर आरोप लगे, लेकिन कार्रवाई का नामोनिशान नहीं। अब सवाल उठ रहा है कि यह कैसे चिकित्सा मंत्री हैं, जो भ्रष्टाचारियों को बचाने में ही मशगूल हैं?
जयपुर के एसएमएस अस्पताल पर मरीजों की भीड़ बढ़ती जा रही है, लेकिन इसे कम करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।
सरकार ने आरयूएचएस को रिम्स बनाने की घोषणा की थी, लेकिन एक साल बीतने के बाद भी जमीनी स्तर पर कुछ नहीं बदला। चिकित्सकों और अन्य स्टाफ की भारी कमी है, लेकिन भर्ती प्रक्रिया वर्षों से ठप पड़ी है।
आईपीडी टावर वर्षों से निर्माणाधीन है, कार्डियक टॉवर का कोई अता-पता नहीं। मेडिकल कॉलेजों की संख्या बढ़ा देना ही समाधान नहीं है, सरकार को डॉक्टरों की नियुक्ति भी करनी पड़ेगी। पिछली सरकार ने स्वास्थ्य का अधिकार लागू करने का वादा किया, लेकिन मौजूदा सरकार ने इस दिशा में एक कदम भी आगे नहीं बढ़ाया। सुप्रीम कोर्ट और कैग भी इस मुद्दे पर सरकार से सवाल पूछ चुके हैं, लेकिन जवाब देना तो दूर, चिकित्सा मंत्री चुप्पी लगाए बैठे हैं।
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आयुष्मान भारत योजना भी राज्य में अपने उद्देश्य से भटक चुकी है। निजी अस्पताल इससे जुड़ने को तैयार नहीं और जो जुड़े हैं, वे सिर्फ उन्हीं पैकेजों में रुचि दिखा रहे हैं, जो उनके मुनाफे में इजाफा करें। गरीब मरीजों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया है। स्वास्थ्य जैसी बुनियादी जरूरत पर इस तरह की लापरवाही न केवल अमानवीय है, बल्कि एक अक्षम्य अपराध है।
जनता बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं की हकदार है, लेकिन भ्रष्टाचार और लापरवाही ने इसे मजाक बना दिया है। अब समय आ गया है कि चिकित्सा मंत्री खींवसर अपनी जिम्मेदारी समझें और त्वरित व कठोर कार्रवाई करें। अब भी निष्क्रिय नजर आते हैं तो यह सरकार की नीयत पर भी सवाल खड़ा करेगा। सरकार को अब दिखावटी वादों से बाहर निकलकर जमीनी स्तर पर सुधार करना ही होगा।
amit.vajpayee@epatrika.com