छत्तीसगढ़ में नक्सलियों पर नकेल कसने के केंद्र और राज्य सरकार के दावों के बीच बीजापुर में सुरक्षा बल के वाहन को आइईडी विस्फोट से उड़ाकर नक्सलियों ने एक बार फिर आदिवासी क्षेत्र में सुरक्षा बलों को चुनौती देने का काम किया है। इस वारदात ने प्रदेश में नक्सल समस्या की जटिलता और सुरक्षा बलों […]
छत्तीसगढ़ में नक्सलियों पर नकेल कसने के केंद्र और राज्य सरकार के दावों के बीच बीजापुर में सुरक्षा बल के वाहन को आइईडी विस्फोट से उड़ाकर नक्सलियों ने एक बार फिर आदिवासी क्षेत्र में सुरक्षा बलों को चुनौती देने का काम किया है। इस वारदात ने प्रदेश में नक्सल समस्या की जटिलता और सुरक्षा बलों के सामने आ रही चुनौतियों की तरफ भी ध्यान दिलाया है। नक्सलियों ने इस बार डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गाड्र्स (डीआरजी) के जवानों को निशाना बनाया है। डीआरजी राज्य पुलिस की ही एक इकाई है। इनमें स्थानीय जनजातीय के लोगों और आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों को ही भर्ती किया जाता है। नक्सलियों ने इस घटना को भी उस समय अंजाम दिया जब डीआरजी के जवान अबूझमाड़ में पांच नक्सलियों को ढेर करने के बाद दंतेवाड़ा में बेसकैम्प पर लौट रहे थे। डीआरजी के नौ जवानों की शहादत की घटना दो संकेत दे रही है। पहला, स्थानीय आदिवासियों से नक्सलियों के संपर्क अभी पूरी तरह से समाप्त नहीं हुए हैं। दूसरा सुरक्षा बलों को अपने खुफिया तंत्र को और मजबूत व पुख्ता करने के साथ आदिवासियों का भरोसा जीतने की जरूरत है।
केंद्र और राज्य सरकार की ओर से कहा जाता रहा है कि नक्सल समस्या पर काफी हद तक काबू पा लिया गया है। नक्सलियों की गतिविधियों को कुछ ही किलोमीटर के क्षेत्र तक सीमित कर दिया है। उनके बड़े कमांडरों को या तो मार गिराया गया या समर्पण को मजबूर कर दिया गया। राज्य सरकार का तो यह भी दावा है कि आत्मसमर्पण करने पर पुनर्वास की योजनाओं ने भी नक्सलियों को हथियार डालने की हिम्मत दी। पिछले साल करीब 900 नक्सलियों ने सरेंडर भी किया, लेकिन समय-समय पर पुलिस की मुखबिरी करने के आरोप में नक्सलियों द्वारा आदिवासियों की सरेआम हत्या करने की घटनाओं पर अंकुश नहीं लग पाया। न ही आइईडी विस्फोटकों को नियंत्रित किया जा सका। इसमें दो राय नहीं कि सुरक्षा बलों के लिए नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में काम करना बेहद कठिन है। घने जंगल, दुर्गम इलाके और स्थानीय जनसंख्या के बीच नक्सलियों का गहरा नेटवर्क चुनौती को और बढ़ा रहा है। नक्सलियों के स्थानीय मददगारों की कमर तोडऩे के साथ समस्या का हल सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से भी निकालना होगा।
नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क और रोजगार के अवसरों को बढ़ावा देना होगा। स्थानीय आदिवासियों को विश्वास में लेकर विकास करने और नक्सलियों से संवाद की प्रक्रिया में तेजी लाकर ही इस चुनौती का स्थायी समाधान संभव है।