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आसिम मुनीर का सऊदी सम्मान: पश्चिम एशिया की बदलती शक्ति-रेखाएं

पाकिस्तानी सैनिक दशकों से सऊदी भूमि पर प्रशिक्षण और सुरक्षा भूमिकाओं में तैनात रहे हैं। किंतु आसिम मुनीर को मिला यह सम्मान इस रिश्ते को एक नए स्तर पर ले जाता है।

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Dec 26, 2025

विनय कौड़ा

सऊदी अरब के राजपरिवार ने पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष, फील्ड मार्शल आसिम मुनीर को अपने सर्वोच्च राष्ट्रीय अलंकरण 'किंग अब्दुल अजीज मेडल ऑफ एक्सीलेंस' से विभूषित किया है। यह केवल पाकिस्तानी जनरल का अभिनंदन नहीं, बल्कि दो राष्ट्रों के बीच सुदीर्घ एवं रणनीतिक विश्वास का सार्वजनिक उद्घोष है। इस सम्मान के मंच पर सुरक्षा सहयोग, सामरिक प्रशिक्षण और क्षेत्रीय स्थिरता जैसे विषयों पर हुई संवादात्मक गूंज संकेत देती है कि रियाद की दृष्टि में पाकिस्तान एक भरोसेमंद स्तंभ के रूप में उभर रहा है। वैसे सऊदी अरब और पाकिस्तान का संबंध केवल आज का नहीं है। यह रिश्ता 1960 और 70 के दशकों से चला आ रहा है, जब तेल-समृद्ध सऊदी अरब और जनशक्ति-सम्पन्न पाकिस्तान ने एक-दूसरे की आवश्यकताओं को पहचाना था।

पाकिस्तानी सैनिक दशकों से सऊदी भूमि पर प्रशिक्षण और सुरक्षा भूमिकाओं में तैनात रहे हैं। किंतु आसिम मुनीर को मिला यह सम्मान इस रिश्ते को एक नए स्तर पर ले जाता है। पश्चिम एशिया की राजनीति इस वर्ष काफी उथल-पुथल की धूप-छांव में रही है। यह क्षेत्र इस वक्त इतिहास के उस मोड़ पर खड़ा है, जहां हर कदम भविष्य की दिशा तय कर सकता है। इजरायल और ईरान के बीच तनाव कूटनीतिक बयानबाजी से आगे बढ़ चुका है। ईरान द्वारा पिछले दिनों किए गए बैलिस्टिक मिसाइल परीक्षण शक्ति प्रदर्शन और राजनीतिक संदेश हैं कि तेहरान दबाव में झुकने वाला नहीं। इजरायल की ओर से 'कठोर जवाब' की चेतावनी इस क्षेत्र को फिर से बारूद के ढेर पर बैठा सकती है। लाल सागर में हूती विद्रोहियों के हमले, फारस की खाड़ी में अमरीकी नौसैनिक तैनाती और सीरिया-इराक में सक्रिय मिलिशिया जैसी सभी घटनाएं मिलकर पश्चिम एशिया को वैश्विक अस्थिरता का केंद्र बना रही हैं। इसी पृष्ठभूमि में पाकिस्तान की कूटनीतिक सक्रियता को देखना और समझना आवश्यक है।

हाल के महीनों में पाकिस्तान ने खुद को केवल दक्षिण एशियाई शक्ति के रूप में नहीं, बल्कि इस्लामी जगत के एक प्रभावशाली सैन्य-राजनीतिक अभिनेता के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश की है। गाजा को लेकर उसकी पहल इसका स्पष्ट उदाहरण है। पाकिस्तान ने संभावित अंतरराष्ट्रीय स्थिरीकरण बल के नेतृत्व की इच्छा जताई है और यह एक ऐसा कदम है जो उसे वैश्विक मंच पर नई पहचान दिला सकता है। अमरीका द्वारा गाजा में युद्धोत्तर व्यवस्था पर विचार किए जाने के बीच पाकिस्तान स्वयं को 'शांति-स्थापक' की भूमिका में देख रहा है। हालांकि इसकी राह सरल नहीं है। पाकिस्तान के भीतर इस महत्वाकांक्षी प्रस्ताव को लेकर तीखा विरोध भी उभरा है। कई मौलवियों और इस्लामी नेताओं ने गाजा में पाकिस्तानी सैनिकों की संभावित तैनाती को इस्लामी एकता के विरुद्ध बताया है। उनका तर्क है कि यह कदम अंतत: पश्चिमी शक्तियों के हितों की सेवा करेगा। यह आंतरिक असंतोष पाकिस्तान की उस पुरानी समस्या की याद दिलाता है, जहां उसकी विदेश नीति अक्सर घरेलू वैचारिक विभाजनों से टकराती रही है। विदेश नीति के साथ-साथ पाकिस्तान की आंतरिक सुरक्षा रणनीति भी बदलाव के दौर से गुजर रही है। तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान की बढ़ती गतिविधियां, बलूचिस्तान में राजनीतिक असंतोष और गहरा आर्थिक संकट जैसे कारक पाकिस्तान की सुरक्षा नीति को पुनर्परिभाषित करने को मजबूर कर रहे हैं। हालांकि इस पुनर्परिभाषा का एक आयाम पाकिस्तान की वैश्विक रक्षा पहुंच भी है।

हाल में लिबियाई नेशनल आर्मी के साथ किया गया लगभग 4.6 अरब डॉलर का हथियार सौदा इस दिशा में एक बड़ा कदम है। लड़ाकू विमान, प्रशिक्षण प्रणालियां और सैन्य उपकरणों की आपूर्ति न केवल पाकिस्तान के रक्षा उद्योग को बढ़ावा देती है, बल्कि उसे एक निर्यातक सैन्य शक्ति के रूप में भी स्थापित कर सकती है। यह सौदा बताता है कि पाकिस्तान हथियार बाजार में अपनी जगह बनाने की कोशिश कर रहा है। इन सभी घटनाओं के बीच मुनीर की व्यक्तिगत शक्ति बढ़ती दिखाई देती है। व्यापक सैन्य और संरचनात्मक सुधारों के माध्यम से उन्होंने सेना के भीतर अपनी पकड़ मजबूत की है। निर्णय-प्रक्रिया का केंद्रीकरण और अनुशासन पर जोर यह संकेत देता है कि आने वाले वर्षों में पाकिस्तान में नागरिक और सैन्य सत्ता के संतुलन पर नई बहसें उभर सकती हैं। वैसे पाकिस्तान में जब-जब सेना सशक्त हुई है, तब-तब न केवल लोकतांत्रिक संस्थानों की भूमिका कमजोर हुई है बल्कि भारत से टकराव की गुंजाइश भी बढी है।

बहरहाल भारत के लिए यह पूरा परिदृश्य विशेष महत्व रखता है। पश्चिम एशिया, भारत की ऊर्जा सुरक्षा की रीढ़ है क्योंकि भारत अपनी 60 प्रतिशत से अधिक तेल और गैस आवश्यकताएं इसी क्षेत्र से पूरी करता है। खाड़ी देशों में लगभग 90 लाख भारतीय प्रवासी कार्यरत हैं, जिनकी रेमिटेंस भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए जीवनरेखा समान है। ऐसे में क्षेत्रीय अस्थिरता और पाकिस्तान की बढ़ती घुसपैठ केवल कूटनीतिक चिंता नहीं, बल्कि सीधा आर्थिक और सामाजिक प्रभाव रखने वाला कारक बन जाती है। इसके अतिरिक्त, भारत के पश्चिम एशिया में संबंध बहुआयामी हैं। एक ओर इजरायल के साथ गहरे रक्षा और तकनीकी सहयोग हैं, दूसरी ओर ईरान के साथ ऊर्जा और चाबहार जैसे रणनीतिक प्रोजेक्ट जुड़े हुए हैं। तीसरी ओर, सऊदी अरब तथा खाड़ी देशों के साथ आर्थिक-रणनीतिक साझेदारी भी पनप रही है। इसलिए पाकिस्तान-सऊदी निकटता इस संतुलन को जटिल बना सकती है। भारत के लिए चुनौती यह है कि वह किसी एक ध्रुव में खिंचे बिना अपने हितों की रक्षा करे।

पश्चिम एशिया की रेत पर आज शक्ति की शतरंज बिछी है। कहीं सम्मान समारोह हैं, कहीं मिसाइल परीक्षण। कहीं शांति की बातें हैं तो कहीं युद्ध की तैयारी। मुनीर को मिला सऊदी सम्मान इस खेल की महत्वपूर्ण चाल है। आने वाला समय केवल हथियारों से नहीं, बल्कि संकेतों, गठबंधनों और मौन समझौतों से तय होगा। संतुलित कूटनीति, आर्थिक सामर्थ्य और रणनीतिक धैर्य ही वे उपकरण हैं, जिनसे भारत इस अस्थिर क्षेत्र में अपने दीर्घकालिक राष्ट्रीय हितों की रक्षा कर सकता है।

Published on:
26 Dec 2025 06:28 pm
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