
सतीश सिंह, आर्थिक विषयों के जानकार
हाल ही एक इकोनॉमिक कॉन्क्लेव में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि आगामी वित्त वर्ष में सरकार की सबसे बड़ी प्राथमिकता कर्ज की तुलना में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) अनुपात (डेट टू जीडीपी रेशियो) को कम करने की रहेगी, क्योंकि इसके अधिक रहने से देश और राज्य की कर्ज चुकाने की क्षमता कमजोर हो रही है। इससे आर्थिक, सामाजिक और नीतिगत तीनों स्तरों पर देश एवं राज्यों को नुकसान हो रहा है और विकासात्मक कार्यों को मूर्त रूप देने में दिक्कतें आ रही हैं। कर्ज की तुलना में जीडीपी का अनुपात यह दर्शाता है कि अर्थव्यवस्था पर कितना कर्ज है। अगर किसी देश का कर्ज उसके जीडीपी की तुलना में बहुत अधिक है, तो उस देश को कर्ज चुकाने में दिक्कत हो सकती है।
विश्व बैंक के अनुसार, यदि यह अनुपात 60% से कम है, तो उसे सुरक्षित स्तर माना जा सकता है, लेकिन जब यह 90% या उससे अधिक हो जाता है, तो देश में आर्थिक संकट पैदा होने का खतरा बढ़ जाता है। बता दें कि वित्त वर्ष 2013-14 के दौरान केंद्र सरकार का कर्ज जीडीपी अनुपात 52.2% था, जो वित्त वर्ष 2018-19 के दौरान घटकर 48.9% के स्तर पर आ गया, लेकिन कोरोना महामारी के दौरान यह पुन: बढ़कर 60% हो गया। अभी यह घटकर 57% के स्तर पर आ गया है। केंद्र सरकार के अलावा राज्य सरकार भी विविध माध्यमों यथा बॉन्ड, ट्रेजरी बिल, बैंकों से कर्ज, आरबीआइ, एलआइसी, नाबार्ड आदि संस्थानों से उधार लेती हैं, जिन पर नियंत्रण रखने की जरूरत है। केंद्र सरकार चाहती है कि राज्य सरकारें वित्तीय अनुशासन बनाए रखें ताकि उन पर आर्थिक संकट नहीं आए। वित्त वर्ष 2024 के अंत तक 12 राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों का कुल कर्ज 35% से ज्यादा होने का अनुमान है।
महत्वपूर्ण यह है कि इस सूची में बिहार जैसे गरीब राज्य ही नहीं, बल्कि अरुणाचल प्रदेश, गोवा, हिमाचल प्रदेश, केरल, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, पंजाब, राजस्थान और पश्चिम बंगाल जैसे आर्थिक रूप से बेहतर राज्य भी शामिल हैं। मार्च 2025 तक पंजाब की कुल देनदारियां 3.78 लाख करोड़ रुपए थी और इसका कर्ज-जीएसडीपी अनुपात करीब 47% था, जबकि अरुणाचल प्रदेश का कर्ज-जीएसडीपी अनुपात 57% था। आसानी से कर्ज उपलब्ध होने के कारण हाल के वर्षों में लोगों द्वारा लिए गए कर्ज के प्रतिशत में उल्लेखनीय इजाफा हुआ है। लोगों के कर्ज में सबसे अधिक इजाफा क्रेडिट कार्ड और पर्सनल लोन के मामले में हुआ है, जो कुल घरेलू कर्ज का 54.9% है। कर्ज लेने वाले भारतीयों पर जून 2025 तक औसतन 4.8 लाख रुपए का कर्ज था। मार्च 2023 में यह 3.9 लाख रुपए था. इस तरह विगत 2 सालों में कर्ज में 23% की वृद्धि हुई है। इसका यह अर्थ हुआ कि हर व्यक्ति पर 90,000 रुपए का कर्ज बढ़ा है। ऐसे माहौल में जरूरत है कि राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन अधिनियम (एफआरबीएम) के दायरे में कर्ज लिया जाए और उच्च ब्याज वाले कर्ज को कम करने की कोशिश की जाए। राज्य केवल ऋण चुकाने के लिए नया कर्ज न लें, बल्कि विकास के लिए लें। ज्यादा कर्ज 2047 तक विकसित भारत के सपने को धाराशायी कर सकता है। स्थिति में बेहतरी लाने के लिए सरकार बॉन्ड मार्केट को मजबूत करने पर काम कर रही है, ताकि निवेश बढ़ सके। फिलहाल विश्व व्यापार में भारत की 25% की हिस्सेदारी है, जिसके लिए विनिर्माण, कृषि, मूल्य संवर्धन और सेवा क्षेत्र को और भी मजबूत करना जरूरी है। सेवा क्षेत्र का योगदान अब जीडीपी का लगभग 54% हो गया है, जो एक सकारात्मक संकेत है।
कर्ज-जीडीपी अनुपात को कम करने के लिए तेज आर्थिक वृद्धि अर्थात विनिर्माण, एमएसएमई, बड़े उद्योग, आधारभूत संरचना, निर्यात बढ़ाने आदि पर ध्यान देने की जरूरत है। साथ ही, रोजगार सृजन, ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने, सरकारी कर्ज को नियंत्रित करने अर्थात सब्सिडी में कटौती, राजकोषीय घाटे को कम करने, घाटे में चल रहे सरकारी उपक्रमों में सुधार, महंगाई पर नियंत्रण, शिक्षा और कौशल विकास पर जोर, स्वास्थ्य क्षेत्र को मजबूत बनाने, इज ऑफ डुइंग बिजनेस आदि को बढ़ावा देकर स्थिति में सुधार लाने की आवश्यकता है। राज्य भी इसी तर्ज पर कर्ज-जीएसडीपी अनुपात को कम कर सकते हैं। इसके लिए उन्हें कर्ज और खर्च को नियंत्रित, ब्याज के बोझ को कम, राज्य संपत्तियों का समीचीन उपयोग, केंद्र के साथ वित्तीय तालमेल, प्रशासनिक सुधार, गैर कर राजस्व बढ़ाने, औद्योगिक निवेश को आकर्षित करने, खेती-किसानी को सशक्त बनाने की जरूरत है।
Published on:
26 Dec 2025 01:21 pm
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