सोनम लववंशी
पर्यावरण और जीवन एक-दूसरे के पूरक हैं। किसी एक से भी छेड़छाड़ का असर दूसरे पर भी पड़ता है। हाल ही में राजस्थान के शाहाबाद के जंगल में प्रस्तावित हाइड्रोपोनिक पावर प्लांट परियोजना ने विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच एक गंभीर बहस छेड़ दी है। सरकार इस परियोजना को ऊर्जा उत्पादन और विकास के लिए महत्वपूर्ण कदम बता रही है, लेकिन पर्यावरणविदों और वन्यजीव संरक्षणकर्ता इसे क्षेत्र की जैव विविधता और पारिस्थितिकी के लिए विनाशकारी मानते है। इस परियोजना के तहत 427 हेक्टेयर जंगल क्षेत्र में पेड़ों की कटाई की योजना है, जिससे न केवल पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ने का खतरा मंडरा रहा है, बल्कि स्थानीय वन्यजीवों और समुदायों पर भी गंभीर प्रभाव पड़ेगा। देखा जाए तो शाहाबाद का जंगल अपनी घनी हरियाली, प्राचीन वृक्ष और दुर्लभ जीव-जंतुओं के लिए जाना जाता है। यह जंगल स्थानीय जलवायु को संतुलित रखने में मदद करता है और क्षेत्र के लोगों के लिए जल, वायु और खाद्य सुरक्षा का स्रोत है। यहां पाए जाने वाले औषधीय पौधे और जड़ी-बूटियां पारंपरिक चिकित्सा के लिए उपयोगी हैं। शाहाबाद के जंगल का पर्यावरणीय महत्व जैव विविधता तक ही सीमित नहीं है। यह जंगल क्षेत्रीय जल स्रोतों को बनाए रखने में भी अपनी महती भूमिका निभाता है। इस जंगल की कटाई से जलवायु परिवर्तन व जल संकट का खतरा भी कई गुना बढ़ जाएगा। वन, जल संरक्षण और मिट्टी के कटाव को रोकने में मदद करते हैं। इनके कटने से क्षेत्र में सूखा और बाढ़ जैसी समस्याएं भी बढ़ जाएगी। प्रकृति ने मनुष्य को जल और जंगल देकर अपना अटूट प्रेम बरसाया है। पर मानव ने अपने स्वार्थ के चलते इन्हें नष्ट करने में कोई कोर कसर नही छोड़ी है। यहां तक की हमारी कई सभ्यताएं जंगलों में ही विकसित हुई है। लेकिन वर्तमान समय में हमारे जंगल घटते जा रहे है। कोरोना काल में जिस तरह से ऑक्सीजन की किल्लत से जनता त्राहिमाम् त्राहिमाम कर रही थी उसे भला कौन भूल सकता है।
इंडियन काउंसिल ऑफ फारेस्ट्र रिसर्च एंड एजुकेशन में एक पेड़ की औसत उम्र 50 साल मानी गयी है। इन 50 सालों में एक पेड़ 23 लाख 68 हजार रुपये कीमत का वायु प्रदूषण को कम करता है । साथ ही 20 लाख की कीमत के भू -क्षरण को भी नियंत्रित करता है। बावजूद इसके सदियों से मानव ने जंगलों का विनाश ही किया है। अपनी भोग विलास की लालसा को पूरा करने के लिए मनुष्य ने जंगलों को बर्बरता से उजाड़ा है। यही सिलसिला मुसलसल अभी भी जारी रहा तो वह दिन दूर नहीं जब हमारी सभ्यता ही खतरे में पड़ जाएगी। एक अनुमान के मुताविक जंगलों का दसवां भाग तो पिछले 20 सालों में ही खत्म हो गया है। जंगलों की कटाई कभी नए नगर बसाने के नाम पर तो कभी खनन के नाम पर की जा रही है। अगर इसी तरह वनों का विनाश जारी रहा तो वह दिन दूर नहीं जब इस धरती से वनों का सफाया हो जाएगा। तब न ही अमेजन के जंगलों का रहस्य बच पाएगा और न हिमालय के जंगलों की सम्पदा बच पाएगी। ग्लोबल वॉर्मिंग की ओर बढ़ती दुनिया में हम जिन वनों से कुछ उम्मीद लगा बैठे हैं, वो भी पूरी तरह खत्म हो जाएंगे।
सरकार के मुताबिक इस परियोजना के लिए 1,19,000 पेड़ों की कटाई अनुमान है। सरकार का मानना है कि हाइड्रोपोनिक पावर प्लांट से ऊर्जा उत्पादन में वृद्धि होगी और क्षेत्र में रोजगार के अवसर पैदा होंगे। यह तर्क केवल विकास के एक पहलू को दिखाता है। इस परियोजना के पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभावों पर ध्यान देना भी सरकार की जिम्मेदारी है। विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन बनाना आज की सबसे बड़ी चुनौती है। अगर इस परियोजना को लागू करना अनिवार्य है, तो सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि पर्यावरणीय क्षति को कम करने के लिए प्रभावी कदम उठाए जाएं। पेड़ों की कटाई के बदले बड़े पैमाने पर नए वन लगाए जाए। साथ ही परियोजना क्षेत्र के आसपास के समुदायों को पुनर्वास और रोजगार के वैकल्पिक साधन प्रदान किए जाए। अब समय आ गया है जब हम विकास की बात न करें, बल्कि यह सुनिश्चित करें कि यह विकास टिकाऊ और समावेशी हो। शाहाबाद के जंगल का संरक्षण केवल पर्यावरण प्रेमियों की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि यह पूरे समाज और सरकार का कर्तव्य है।
वर्तमान समय में शहरीकरण, औद्योगिकीकरण और कृषि विस्तार के कारण जंगलों का क्षेत्रफल तेजी से घट रहा है। शाहाबाद के जंगल को बचाने के लिए सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है। सरकार, गैर-सरकारी संगठन, और स्थानीय समुदायों को मिलकर काम करना होगा। वनीकरण, पुनर्वनीकरण, और वन्यजीव संरक्षण परियोजनाओं को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। समय रहते उचित कदम नहीं उठाए गए, तो यह प्राकृतिक धरोहर हमेशा के लिए खो सकती है। शाहाबाद का जंगल केवल एक जंगल नहीं, बल्कि हमारी पहचान और भविष्य का प्रतीक है। इसे बचाना न केवल हमारी जिम्मेदारी है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के प्रति हमारा कर्तव्य भी है।