वर्तमान समय में दाम्पत्य जीवन तलवार की धार पर चलने जैसा प्रतीत होने लगा है। एक दूसरे की बुराइयां गिनने के बजाय, दंपतियों द्वारा एक दूसरे की अच्छाइयों और श्रेष्ठ कार्यों की सूची बनाई जानी उचित है।
डॉ. गौरव बिस्सा, जीवन प्रबंध प्रशिक्षक
भारतीय समाज में विवाह को एक ईश्वरीय कार्य और संस्कार तथा तलाक को एक सामाजिक बुराई समझा गया है। भारतीय समाज में, पश्चिमी देशों के मुकाबले तलाक की दर तो कम है लेकिन देर से विवाह, अत्यधिक आत्मनिर्भरता, स्त्री के योगदान का जरूरत से ज्यादा महिमामंडन, पुरुष की संकुचित सोच, संयुक्त परिवारों के विघटन, मोबाइल के अत्यधिक उपयोग और महिला के पीहर पक्ष द्वारा अत्यधिक दखलंदाजी करने की प्रवृत्ति ने एक नए तरह की सामाजिक बुराई को जन्म दिया है, जिसे साइलेंट डिवोर्स या मौन तलाक कहा जा रहा है। साइलेंट डिवोर्स वह स्थिति है जिसमें दंपती, कानूनी रूप से हुए विवाह को तो नहीं तोड़ते लेकिन उनके बीच भावनात्मक और वैचारिक दूरी इतनी ज्यादा बढ़ जाती है कि वे एक ही घर में अलग-अलग रहने लगते हैं।
समाज में बदनामी के भय, बच्चों के लालन-पालन के कष्टों तथा कानूनी तलाक लेने पर होने वाले प्रतिष्ठा हनन से बचने के लिए आजकल एक ही घर में अजनबी की तरह रहने की ये प्रवृत्ति समाज को खोखला कर रही है। परस्पर बातचीत की लगभग समाप्ति, परवाह की कमी होने के चलते नोकझोंक न होना, शारीरिक दूरी, अलग-अलग कमरों में शयन, एक दूसरे की भावनाओं और इच्छाओं के प्रति विरक्त भाव तथा संवेदना विहीन तरीके से दंपती का साथ रहना साइलेंट डिवोर्स के लक्षण हैं। साइलेंट डिवोर्र्स के जो मुख्य कारण बताए जाते हैं, उनमें घर की महिलाओं के पीहर पक्ष का अत्यधिक दखल, सोशल मीडिया का आवश्यकता से अधिक इस्तेमाल, एकाकी परिवार तथा अकेले आनंद लेने की चाहत शामिल हैं। 'प्रेम नहीं, लेकिन तलाक भी नहीं' के भाव से जीने वाले 300 दंपतियों पर किए अंतरराष्ट्रीय समाजशास्त्रीय जर्नल शोध रिपोर्ट के अनुसार ऐसे दंपतियों में अवसाद, घृणा, मानसिक समस्याएं, भावनात्मक असुरक्षा और एंजायटी बढ़ रही है और महिलाएं इस समस्या से अधिक त्रस्त हैं। दाम्पत्य जीवन प्रेमपूर्ण विश्वास और सम्मान नामक दो पहियों पर टिका होता है। एक दूसरे की कमियों को भी सहर्ष स्वीकार करना, दंपती के परस्पर कमियों का उलाहना न देना, सहजीवन अपनाना आदि कार्य घर को स्वर्ग बनाते हैं। दंपतियों के बीच लगातार बढ़ती दूरी की परिणति है साइलेंट डिवोर्र्स।
जीवन में सब कुछ आपकी इच्छा से हो, ये जरूरी नहीं है। कई बार कुछ कमियों के साथ सामंजस्य बिठाना पड़ता है। वर्तमान समय में दाम्पत्य जीवन तलवार की धार पर चलने जैसा प्रतीत होने लगा है। एक दूसरे की बुराइयां गिनने के बजाय, दंपतियों द्वारा एक दूसरे की अच्छाइयों और श्रेष्ठ कार्यों की सूची बनाई जानी उचित है। इससे आपसी रिश्ता प्रगाढ़ होता है। क्रोध नियंत्रण करते ही साइलेंट डिवोर्स की संभावना क्षीण हो जाती है। क्रोध पर नियंत्रण रखने मात्र से 90 फीसदी समस्याएं तो वैसे ही समाप्त हो जाती हैं। भावुकता में जबरदस्त प्रतिक्रिया देने से सिर्फ नुकसान होता है। अत: उन बातों को सहन करना उचित है, जिन पर नियंत्रण नहीं चल सकता हो। इसका अर्थ है कि जीवनसाथी को हर पल एक कंट्रोलर की तरह कंट्रोल करने की प्रवृत्ति घातक है। स्वतंत्रता या खुलापन भी रिश्तों की ऊष्मा बढ़ाता है। साइलेंट डिवोर्स से बचने के लिए दंपती को लव मैप्स बनाने चाहिए। लव मैप का अर्थ है पति द्वारा पत्नी की और पत्नी द्वारा पति की विशेष रुचियों और अरुचियों का गहन अध्ययन। जीवनसाथी को खुश-नाखुश करने वाले व्यक्ति, परिस्थितियां, जीवन स्वप्न, आदर्श पात्र, प्रिय मित्र रिश्तेदार, प्रिय संगीत, कार्य, पुस्तक, फिल्म्स, घटनाओं आदि की संपूर्ण जानकारी लिखने पर यदि आप अस्सी फीसदी सही हैं तो लव मैप अच्छा माना जाएगा। इसमें साइलेंट डिवोर्स की नौबत नहीं आती लेकिन यदि ये पचास फीसदी या उससे कम है तो इसे कमी माना जा सकता है और ऐसी स्थिति में आपसी संवाद और वार्ता शुरू कर देनी चाहिए।
रिश्ते बोझ नहीं हैं। उन्हें ढोने की नौबत न आ जाए इसके लिए जरूरी है एक दूसरे को समझना और विपरीत बातों और विचारों को भी अपनाने का प्रयास करना। जब मिट्टी के दो कण एक जैसे नहीं होते, दो परमाणु तक एक जैसे नहीं होते तो दो व्यक्ति एक जैसे कैसे हो सकते हैं? सुख, आनंद और प्रेम तो भिन्नताओं में है। क्लोन बन जाने से कैसा आनंद, कैसा सुख? अत: दंपतियों में असहमति तो होगी ही। असहमति इतनी ज्यादा न बढ़े कि साइलेंट डिवोर्स की नौबत आ जाए। दाम्पत्य जीवन तभी सफल हो सकता है जब एक दूसरे के विपरीत विचारों को भी समझा जाए। असहमत होने के बावजूद भी सहमत हो जाना और कलह न होने देना ही सुखद दाम्पत्य का प्राण सत्व है।