कोविड-19 महामारी के पश्चात रूस-यूक्रेन युद्ध और पश्चिम एशिया में बढ़ते तनाव ने कोढ़ में खाज का काम कर वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं को और अधिक अनिश्चित बना दिया।
डॉ. मिलिंद कुमार शर्मा, प्रोफेसर एमबीएम विवि, जोधपुर
यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि आज का वैश्विक परिदृश्य जितना जटिल और अप्रत्याशित है, उतना शायद ही पहले कभी रहा हो। नि:संदेह वैश्वीकरण ने देशों को एक-दूसरे से सुगमता पूर्वक जोड़ा, आपूर्ति शृंखलाओं 'सप्लाई चेन' को अंतरराष्ट्रीय बनाया और उत्पादन प्रक्रियाओं को अत्यंत कुशल व सरल बनाया। इसी क्रम में माल आपूर्ति की दक्षता के केंद्र में जापानी मैनेजमेंट दर्शन 'जस्ट इन टाइम' रहा है, जिसने लागत बचत, न्यूनतम भंडारण और समय पर उपलब्धता को उद्योग जगत की आदर्श रणनीति बना दिया है। गत एक दशक में जिस तरह से वैश्विक भू-रणनीतिक तनाव, महामारी, सीमित संसाधनों की प्रतिस्पर्धा, व्यापार युद्ध और प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि देखने को मिली है, उसने यह स्पष्ट कर दिया है कि जस्ट इन टाइम सिस्टम अब पर्याप्त नहीं है। इसके स्थान पर 'जस्ट इन केस' अर्थात आकस्मिक परिस्थितियों के लिए तैयार रहने की नीति भारत सहित विश्वभर में सामग्री प्रबंधन की केंद्रीय आवश्यकता बन गई है। कोविड-19 महामारी वह निर्णायक घटना थी, जिसने दुनिया को आपूर्ति शृंखला की वास्तविक कमियों से परिचित कराया। कोविड-19 महामारी के पश्चात रूस-यूक्रेन युद्ध और पश्चिम एशिया में बढ़ते तनाव ने कोढ़ में खाज का काम कर वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं को और अधिक अनिश्चित बना दिया। इन घटनाओं ने सिद्ध कर दिया कि उत्पादन और आपूर्ति पर भू-राजनीतिक घटनाओं का प्रभाव कितना गहरा व व्यापक हो सकता है। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि जस्ट इन टाइम मॉडल ऐसे संकटों के लिए कभी तैयार ही नहीं था। यह लागत तो बचाता है, परंतु बड़े झटकों को सहन करने की क्षमता नहीं रखता है। दूसरी ओर विश्व ने चीन पर अपने अत्यधिक निर्भरता के जोखिम को भी महसूस किया। चीन लंबे समय तक दुनिया की फैक्टरी रहा है और जस्ट इन टाइम मॉडल ने उसे वैश्विक आपूर्ति शृंखला का केंद्र बना दिया। भारत के संदर्भ में जस्ट इन केस की आवश्यकता और भी स्पष्ट तथा तात्कालिक है। यहां यह रेखांकित करना उचित होगा कि भारत उभरती हुई आर्थिक शक्ति है, जो वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनने की दिशा में तेजी से आगे कदम बढ़ा रहा है। जस्ट इन केस मॉडल भारत की रणनीतिक स्वायत्तता को मजबूत करता है, क्योंकि यह संकट की स्थितियों में भी उत्पादन और आपूर्ति की निरंतरता बनाए रखने की क्षमता प्रदान करता है। विश्व आज जितना परस्पर जुड़ा हुआ है, उतना ही असुरक्षित भी है। साइबर हमले, व्यापार युद्ध, प्राकृतिक आपदाएं, क्षेत्रीय संघर्ष, समुद्री मार्गों में बढ़ते संकट- ये सभी ऐसे कारक हैं, जो किसी भी समय उत्पादन व आपूर्ति शृंखला को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। निश्चित रूप से इन विविध जोखिमों का सामना जस्ट इन टाइम मॉडल कभी नहीं कर सकता, क्योंकि उसकी शक्ति दक्षता में है, लचीलेपन में नहीं। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि जस्ट इन टाइम ने 20वीं शताब्दी के उत्तरार्ध और 21वीं शताब्दी के प्रारंभ में उत्पादन व आपूर्ति शृंखलाओं को आकार दिया, परंतु आज परिदृश्य भिन्न है। वर्तमान चुनौतियां व्यापक, जटिल और बहुआयामी हैं। इस वैश्विक काल में वह मॉडल अधिक उपयुक्त है, जो जोखिमों को न्यूनतम करे और सुरक्षा को प्राथमिकता दे। जस्ट इन केस अब केवल व्यापार रणनीति ही नहीं, अपितु राष्ट्रीय सुरक्षा, आर्थिक स्थिरता और वैश्विक प्रतिस्पर्धा का आधार बन चुका है। यह दक्षता व सुरक्षा दोनों का संतुलन साधते हुए भविष्य की अप्रत्याशित परिस्थितियों में व्यापार, उद्योग और देशों की अर्थव्यवस्था को स्थिरता प्रदान करने की क्षमता रखता है।