सहकारिता की मूल भावना है- ‘एक सबके लिए, सब एक के लिए।’ इसी भावना पर चलते हुए सहकारिता आंदोलन के जरिए देश में कई उद्यमों ने कीर्तिमान कायम किए हैं। लेकिन एक तथ्य यह भी है कि निजीकरण की बाढ़ में पिछले सालों में सबसे ज्यादा चोट सहकारी आंदोलन को ही पहुंची है। संतोष की […]
सहकारिता की मूल भावना है- 'एक सबके लिए, सब एक के लिए।' इसी भावना पर चलते हुए सहकारिता आंदोलन के जरिए देश में कई उद्यमों ने कीर्तिमान कायम किए हैं। लेकिन एक तथ्य यह भी है कि निजीकरण की बाढ़ में पिछले सालों में सबसे ज्यादा चोट सहकारी आंदोलन को ही पहुंची है। संतोष की बात यह है कि अब केन्द्र सरकार दो बड़े क्षेत्रों में सहकारिता को दाखिल कराने जा रही है। केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने सहकारिता मॉडल की टैक्सी सर्विस और कोऑपरेटिव इंश्योरेंस कंपनी की शुरुआत का ऐलान किया है। भारत में सहकारिता आंदोलन के इतिहास पर नजर डालें तो सहकार के जरिए कारोबार का सबसे बड़ा उदाहरण गुजरात की दुग्ध क्रांति को कहा जा सकता है। त्रिभुवन पटेल और डॉ. वर्गीज कुरियन के नेतृत्व में यह आंदोलन एक बड़ी सफलता बनकर उभरा और आज दुग्ध व दुग्ध उत्पादों का बड़ा उद्योग देशभर में इस आंदोलन के जरिए खड़ा हो गया है। इस सहकारिता क्रांति ने न केवल दूध उत्पादकों को सशक्त किया, बल्कि भारतीय अर्थव्यवस्था को भी मजबूती देने का काम किया है, इसमें संशय नहीं है।
पिछले सालों में केन्द्र सरकार के 'सहकार से समृद्धि' कार्यक्रम के तहत भी सहकारिता के क्षेत्र में कई गतिविधियां हुई हैं जिनसे किसानों व महिलाओं को बड़ी संख्या में सहकारिता आंदोलन से जोड़ा गया है। फिर भी चिंता की बात यह है कि आज के वैश्विक व्यापारिक परिदृश्य में छोटे उद्योगों और असंगठित क्षेत्र के लिए चुनौती दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। इसकी वजह कारोबारी प्रतिस्पर्धा में पिछडऩा भी रहा है। सहकारिता के माध्यम से टैक्सी सर्विस शुरू होने पर बड़े असंगठित वर्ग को सुरक्षा कवच मिलेगा, यह उम्मीद की जानी चाहिए। निजी क्षेत्र की टैक्सी सेवाओं में इनसे जुड़े लोगों का कितना शोषण होता है, यह किसी से छिपा नहीं है। 'कोऑपरेटिव टैक्सी सर्विस' जैसी पहल से टैक्सी, ऑटो, बाइक और रिक्शा चालकों को न केवल उचित मेहनताना व सम्मान मिलेगा बल्कि आम जनता को भी अपेक्षाकृत सस्ता परिवहन उपलब्ध हो सकेगा। सहकारी मॉडल का इंश्योरेंस क्षेत्र में प्रवेश का सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि निजी क्षेत्र में काम कर रही बीमा कंपनियों की मनमानी पर रोक लगेगी। यह इसलिए भी क्योंकि बीमा आज सबके लिए जरूरी हो गया है। वैसे भी सहकारिता आंदोलन को आज हर क्षेत्र में पुनर्जीवित करने की जरूरत है। वैसे तो गांवों में भी ग्राम सेवा सहकारी समितियां कार्यरत हैं लेकिन इनमें भी राजनीति घुसने लगी है।एक तथ्य यह भी है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों की पहुंच ने वस्तु व सेवाओं के हर क्षेत्र में एकाधिकार सा कायम करना शुरू कर दिया है। उम्मीद की जानी चाहिए कि सहकारिता को बढ़ावा देने के प्रस्तावित प्रयास ठोस व सुनियोजित तरीके से शुरू होंगे ताकि सहकार भावना से काम करने वाली संस्थाओं को संजीवनी मिल सके।