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सावधानः पाली के युवाओं की सांसों पर कब्जा जमा रही है यह घातक बीमारी, बढ़ता जा रहा खतरा

Pali News: पाली में ही बीमारी के लक्षण वाले 100 से अधिक मरीज, बता दें कि आइएलडी होने पर इसका उपचार प्रभावी नहीं है। इस बीमारी में चिकित्सक स्टेरॉइड देते हैं।

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Sep 29, 2024

Pali News: आइएलडी बीमारी, जो इतनी घातक है कि रोगी की जान ले लेती है। फेफड़ों का ट्रांसप्लांट करना इसका एक उपचार है, लेकिन वह भी बहुत कठिन व जटिल है। इस बीमारी से पहले 50 साल से अधिक के लोग ग्रस्त होते थे, लेकिन अब 40 व उससे कम उम्र के लोग इसकी चपेट में आ रहे है। इसका बड़ा कारण प्रदूषण है। यह बीमारी होने के बाद व्यक्ति चंद कदम भी नहीं चल पाता है। उसकी सांस फूलने लगती है। कई बार तो रोगी घर के छोटे-मोटे कार्य करने के लायक भी नहीं रहता है।

क्या है आइएलडी

इंटरस्टिशियल लंग डिजीज (आइएलडी), जिसे पल्मोनरी फाइब्रोसिस या इंटरस्टिशियल न्यूमोनिया भी कहते है। सरल भाषा में यह कह सकते हैं कि इस बीमारी में फेफड़ों में छोटी हवा की थैलियों (एल्वियोली) के आसपास सूजन और निशान वाली स्थिति बन जाती है। फेफड़ों की कोशिकाओं के बीच एक सख्त व मोटी परत बन जाती है। इससे ऑ€क्सीजन फेफड़े से रक्त में व रक्त से कार्बनडाई ऑ€क्साइड फेफड़े में पहुंचना बंद हो जाती है या उसमें बाधा आती है।

केस : सुमित्रा (बदला हुआ नाम) पिछले पांच-छह साल से आइएलडी से ग्रसित है। वह खाना तक नहीं बना सकती। ऑक्€सीजन कंसंट्रेटर हर समय साथ रखना होता है। गोपाल (बदला हुआ नाम) जो पाली के बाद अभी एम्स में उपचार करवा रहा है। वह दस कदम भी पैदल नहीं चल सकता है। इन दोनों की उम्र अभी 40 से 43 के बीच है।

यह है उपचार

आइएलडी होने पर इसका उपचार प्रभावी नहीं है। इस बीमारी में चिकित्सक स्टेरॉइड देते हैं। इसके अलावा एंटी फाइब्रोटीन व इ्यूनो सप्रेशिव दवा दी जाती है। ऑ€क्सीजन थैरेपी व लंग ट्रासंप्लांट भी इसका उपचार है।

इन बीमारियों से भी फेफड़े हो सकते हैं खराब

रुमेटीइड गठिया
स्केलेरोडर्मा
डर्माटोमायोसिटिस और पॉलीमायोसिटिस
मिश्रित संयोजी ऊतक रोग
स्जोग्रेन सिंड्रोम
सारकॉइडोसिस

कई दवाएं भी फेफड़ों के लिए खतरनाक

कीमोथैरेपी दवाएं: कैंसर कोशिकाओं को मारने के लिए बनाई गई दवाएं, जैसे मेथोट्रे€सेट (ओट्रे€सअप, ट्रे€सॉल, अन्य) और साइ€लोफॉस्फेमाइड, फेफड़ों के ऊतकों को भी नुकसान पहुंचा सकती हैं।
हृदय की दवाएं: अनियमित दिल की धड़कनों के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली कुछ दवाएं, जैसे एमियोडेरोन (ने€सटेरोन, पेसरोन) या प्रोप्रानोलोल (इंडरल, इनोप्रान), फेफड़ों के ऊतकों को नुकसान पहुंचा सकती हैं।
कुछ एंटीबायोटि€स: नाइट्रोफ्यूरेंटोइन (मैक्रोबिड, मैक्रोडेंटिन, अन्य) और एथमŽयूटोल (माय्बुटोल) आदि।
सूजन-रोधी दवाएं: कुछ सूजनरोधी दवाएं, जैसे कि रीटक्सिमैब (रिट€सन) या सल्फासालजीन (एजुलल्फडिइन) आदि।

  • डॉ. ललित शर्मा, श्वास रोग, विशेषज्ञ, बांगड़ चिकित्सालय पाली

बीमारी का पता ही नहीं लगता

आइएलडी बीमारी का पता 50-60 प्रतिशत मरीजों में पहले नहीं लगता है। वे चिकित्सक के पास पहुंचते हैं तो सामान्य रूप से उनका उपचार टीबी के तहत कर दिया जाता है। इस बीमारी का पता ए€क्सरे, सीटी स्केन, स्पारोमेट्री,छह मिनट के वॉक टेस्ट, ब्रोकोस्कोपी, लंग्स बायोस्पी से लगता है। आइएलडी में सबसे अधिक पल्मोनरी फ्राइबोसीस नाम की बीमारी मिलती है। इसके अलावा हाइपर सेंसीटीवी न्यूमोनाइटीस, साइकोइडोसीस,
ऑ€यूपेशनल लंग डिजीज और कनेक्टिव टिश्यू डिजीज समस्याएं होती हैं।

  • डॉ. लक्ष्मण सोनी, विभागाध्यक्ष, श्वास रोग विभाग, मेडिकल कॉलेज, पाली
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