नवजात पर अत्याचार के मामले राजस्थान को कर रहे शर्मसार
-राजेंद्र सिंह देणोक
पाली। जरूरी नहीं रोशनी चिरागों से ही हो, बेटियां भी घर में उजाला करती है। यह बात उन माता-पिता को समझने की जरूरत है जो अपनी बेटियों को बोझ अथवा अभिशाप मानकर कूड़े-कचरे में फेंक देते हैं। यों तो बेटियां लाडो...पापा की परी जैसे अनगिनत शब्दों और भावों से संबोधित की जाती हैं, लेकिन इसी समाज का एक तबका बेटियों का जीवन खत्म करने पर तुला हुआ है।
प्रदेश में आए दिन शर्मसार करने जैसी अमानवीय घटनाएं सामने आ रही। महिला अपराधों पर अंकुश लगाने के दर्जनों कानूनों, नारी सशक्तीकरण के सरकारी और निजी प्रयासों के बावजूद बेटियों की सुरक्षा अब भी बड़ा सवाल है। प्रदेश में हर साल ऐसे दर्जनों मामले सामने आ रहे हैं। वर्ष 2024 में पाली में 4, करौली में 2, टोंक में 2, सवाईमाधोपुर में 4, नागौर में 11 और सिरोही में 6 नवजात को उनके माता-पिता ने जन्म देते ही लावारिस हालत में छोड़ दिया। जबकि, सरकार ने ऐसे बच्चों के लिए अस्पतालों और बाल कल्याण गृहों में पालना गृह लगाए हैं, ताकि कोई व्यक्ति नवजात को फेंके नहीं। बाल कल्याण समितियां लावारिस मिलने वाले नवजात का पालन पोषण करती हैं। बाद में उन्हें गोद दे दिया जाता है।
1. बिन ब्याहे या अवैध रिश्तों से बेटियों का जन्म लेना।
2. माता-पिता को बेटियों की चाह नहीं होना।
3. माता-पिता के बेटी के लालन पालन में सक्षम नहीं होना।
4. बेटे की चाहत में पहले से ही ज्यादा बेटियों का होना।
मासूमों के जीवन से खिलवाड़ नहीं करना चाहिए। कोई व्यक्ति जन्म देकर नवजात को नहीं रख सकता तो हमें सौंप दें। सरकार उनका पालन-पोषण करेगी। नवजात को सुनसान हालत में मरने के लिए छोड़ना अनैतिक और जघन्य अपराध हैं। इसके लिए जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता हैं। कई लावारिस बेटियां बाल कल्याण समितियों के संरक्षण में पल रही है अथवा गोद लेने वाले माता पिता के साथ नया जीवन जी रही हैं।
-जितेंद्र परिहार, अध्यक्ष, बाल कल्याण समिति, पाली