पाली से हटा प्रदूषित शहर का तमगा, टेक्सटाइल उद्यमियों, प्रशासन व सरकार के प्रयास से बदल गई तस्वीर।
देश के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में शामिल पाली से प्रदूषण का दाग धुल गया है। जिस पाली में प्रवेश करते ही केमिकल की दुर्गंध आती थी, वहां अब फूलों की महक स्वागत करने लगी है। बांडी नदी में केमिकल वाले रंगीन व झाग वाले पानी की बजाय स्वच्छ व निर्मल जल बह रहा है। यह हुआ है उद्यमियों, प्रशासन व सरकार के सम्मिलित प्रयासों से। प्रदूषित पाली अब पर्यावरण सुधार की मिसाल बन गया है।
पाली शहर से निकलने वाला उद्योगों का अपशिष्ट जल जो बांडी नदी को दूषित करता था। किसानों की भूमि को खराब कर रहा था। भूजल में मिल रहा था। वहीं पानी अब पाइप लाइन से पचपदरा रिफाइनरी जा रहा है। जहां उसे ट्रीट करने के बाद रियूज किया जाता है। उधर, काफी पानी पाली की औद्योगिक इकाइयां भी वापस उपयोग में ले रही है। उसका परिणाम यह है कि पाली पर लगा प्रदूषण का तमगा हट गया।
पाली में जेडएलडी तकनीक सबसे पहले ट्रीटमेंट संख्या छह में लगाई गई। उससे पानी को ट्रीट करने के बाद रियूज किया जाने लगा। इसके बाद प्लांट संख्या चार में जेडएलडी लगाकर पानी उपयोग किया जाने लगा। जो थोड़ा-बहुत प्रदूषित पानी शेष रहा और सीवरेज का पानी नदी में जा रहा था। उसे पचपदरा रिफाइनरी भेज दिया। इससे बांडी नदी का पानी स्वच्छ हुआ और भूजल भी शुद्ध हो गया।
पहले जिन किसानों की फसलें प्रदूषित पानी की वजह नहीं हो रही थी। उनके खेतों में अब जमीन सोना उगल रही है। वे नई तकनीक से खेती कर रहे हैं। मिट्टी की उर्वरता बढ़ गई है। उधर, प्रदूषण के कारण इकाइयों को बंद करने की आने वाली नौबत नहीं रही। नई टेक्सटाइल इकाइयां शुरू होने व खेती बेहतर होने से उससे जुड़े नए उद्याेग लगने से रोजगार के अवसर बढ़े है।
यह बदलाव प्रशासन, सरकार और उद्यमियों की सामूहिक पहल का नतीजा है। क्लीनर प्रोडक्शन तकनीक अपनाने, आधुनिक सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाने और औद्योगिक अपशिष्ट के सही निस्तारण से पाली का पर्यावरण सुधरा है। पाली का यह परिवर्तन अन्य प्रदूषित शहरों के लिए एक प्रेरणादायक उदाहरण बन गया है। देश के कई हिस्सों से उद्यमी व अधिकारी पाली के मॉडल को देखकर अपने शहरों में बदलाव कर रहे हैं।
बुरा न मानो होली है