पाली जिला बीते 50 साल से भी ज्यादा समय से प्रदूषण का दंश झेल रहा है। कपड़ा नगरी की कपड़ा फैक्ट्रियों से निकल रहा प्रदूषित पानी बांडी नदी में छोड़े जाने से पूरी नदी अब जहरीली हो चुकी है। कभी पाली की लाइफ लाइन कहलाने वाली बांडी नदी के किनारे मौजूद कुओं तक का पानी भी जहरीला होने लगा है।
राजस्थान का पाली जिला बीते 50 साल से भी ज्यादा समय से प्रदूषण का दंश झेल रहा है। कपड़ा नगरी की कपड़ा फैक्ट्रियों से निकल रहा प्रदूषित पानी बांडी नदी में छोड़े जाने से पूरी नदी अब जहरीली हो चुकी है। कभी पाली की लाइफ लाइन कहलाने वाली बांडी नदी के किनारे मौजूद कुओं तक का पानी भी जहरीला होने लगा है। प्रदूषण से किसानों की हजारों बीघा जमीन भी बंजर हो चुकी है। किसानों ने मामले में सरकार को कई बार शिकायतें भी की लेकिन उनकी शिकायतें सरकारी सिस्टम में दबकर रह गई हैं।
अरावली की पहाड़ियों से निकलकर 100 किलोमीटर का सफर तय करने वाली यह लूणी नदी में मिलती है, लेकिन रास्ते भर औद्योगिक अपशिष्ट, घरेलू कचरे और रासायनिक पानी से इसकी धारा जहरीली हो गई है। कभी किसानों की सिंचाई और शहर की प्यास बुझाने वाली बांडी नदी अब राजस्थान की दूसरी सबसे प्रदूषित नदी बन चुकी है।
घरेलू कचरा (डोमेस्टिक वेस्ट) भी इसी नदी में डाला जा रहा है। कुछ जगहों पर तो इसके किनारे शहर के कचरे से अटे दिखाई देने लगे हैं। शहर के प्रदूषित नालों को सीधे बांडी नदी में छोड़ा जा रहा है। यही वजह है कि नदी का पूरा बहाव प्रदूषण की गिरफ्त में है। नदी से सिंचाई के बाद मिट्टी खेती लायक नहीं रही या फिर उत्पादन प्रभावित हो गया। किसानों की पीड़ा यह भी कि वर्षों से उनकी शिकायतें सरकारों और विभागों की फाइलों में धूल खा रही हैं।
पाली में 12 एमएलडी का जेडएलडी प्लांट संख्या 6 से निकलने वाले करीब 7 से 8 एमएलडी पानी का दुबारा उपयोग हो रहा है। प्लांट संख्या 4 में जेडएलडी का काम अभी पूरा नहीं है। इस प्लांट से करीब 5 से 6 एमएलडी पानी टर्शरी तक ट्रीट करके कच्चे नाले में छोड़ा जा रहा है। जानकारों ने बताया कि कुछ उद्योग संचालक जानबूझकर दूषित पानी नदी में छोड़ देते हैं, जो पूरे उद्योगों को बदनाम कर देता है। कुछ ऐसे मामले भी सामने आते हैं कि बाहरी अतिप्रदूषित पानी के टैंकर नदी में खाली कर जाते हैं।
इस वर्ष जिले में औसत से अधिक बारिश दर्ज हुई। कई नदियां उफान पर रहीं, बांध-तालाब ओवरफ्लो हुए, लेकिन बांडी अभी से सूख गई। थोड़े से क्षेत्र में जहां पानी दिखाई दे रहा है वह भी प्रदूषण के कारण अब हरे रंग का नजर आ रहा है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण मंडल की तरफ से नेशनल वॉटर मॉनिटरिंग के तहत देश की प्रमुख नदियों के दस वर्ष पहले कराए गए सर्वे में ही सामने आ चुका था कि बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड सामान्य स्तर से अधिक है। इसके बावजूद सरकार ठोस निर्णय नहीं ले पा रही।
पाली में जेडएलडी लगे हैं। उनके संचालन में कमी नजर आती है। उसके लिए राज्य मंडल प्रयास कर रहा है। हम प्रयास कर रहे हैं कि सीइटीपी प्लांट चार में जेडएलडी का कार्य पूरा हो। अमित शर्मा, एडिशनल चीफ इंजीनियर, पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड, राजस्थान