Bihar Politics: बिहार में एक बार फिर से मंत्रियों के डिग्री का मुद्दा गरमा गया है। इस बार विवाद के घेरे में हैं मंत्री अशोक चौधरी। कांग्रेस ने उनकी पीएचडी डिग्री को लेकर सवालों की झड़ी लगा दी है।
Bihar Politics: बिहार की राजनीति में इन दिनों कड़ाके की ठंड के बीच 'डिग्री' के मुद्दे ने सियासी पारा गरमा दिया है। इस बार विपक्ष के निशाने पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सबसे भरोसेमंद मंत्रियों में से एक, ग्रामीण कार्य मंत्री और जेडीयू नेता डॉ. अशोक चौधरी हैं। कांग्रेस ने उनकी पीएचडी (Ph.D) डिग्री की सत्यता पर गंभीर सवाल उठाते हुए इसे एक बड़ा फर्जीवाड़ा करार दिया है।
कांग्रेस प्रवक्ता असित नाथ तिवारी ने फेसबुक पर एक वीडियो शेयर करके सीधा हमला किया है। तिवारी का दावा है कि पाटलिपुत्र यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति प्रक्रिया के दौरान मंत्री अशोक चौधरी की पीएचडी डिग्री को संदिग्ध मानते हुए उसकी जांच की अनुशंसा की गई, जिसके कारण उनका नाम अंतिम सूची से बाहर रह गया।
तिवारी ने बताया कि यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर के पदों के लिए कुल 280 वैकेंसी थीं। चयन प्रक्रिया के बाद 274 उम्मीदवारों की लिस्ट जारी की गई, जिससे 6 सीटें अभी भी खाली रह गईं। इसके बावजूद, जब पॉलिटिकल साइंस में असिस्टेंट प्रोफेसर पद के लिए 18 उम्मीदवारों की फाइनल लिस्ट जारी की गई, तो उसमें मंत्री अशोक चौधरी का नाम गायब था।
कांग्रेस प्रवक्ता ने तीखा सवाल पूछते हुए कहा, "जब 6 सीटें खाली ही रह गईं, तो मंत्री जी का चयन क्यों नहीं हुआ? क्या विभाग ने उनकी डिग्री को संदिग्ध मानकर जांच के लिए भेजा है? अशोक चौधरी जी को सार्वजनिक रूप से यह स्पष्ट करना चाहिए कि उनकी डिग्री फर्जी नहीं है।"
असित नाथ तिवारी ने इसे बिहार के लाखों शिक्षित बेरोजगारों और मेधावी युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ बताया है। उन्होंने आरोप लगाया कि मंत्री के दबाव में फर्जी डिग्री हासिल करने की आशंका है। उन्होंने पूछा, "क्या बिहार सरकार के पास मंत्रियों को बैठे-बिठाए डिग्री बांटने की कोई विशेष योजना चल रही है? यह राज्य की शिक्षा व्यवस्था पर एक भद्दा मजाक है।"
दिलचस्प बात यह है कि अभी पिछले महीने (नवंबर) ही अशोक चौधरी को मगध विश्वविद्यालय के 22वें दीक्षांत समारोह में डी.लिट (D.Litt) की प्रतिष्ठित उपाधि से नवाजा गया था। राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने उन्हें यह सम्मान दिया था। उनका शोध विषय बिहार का 'जाति सर्वेक्षण' था। विश्वविद्यालय प्रशासन ने उस समय उनके ज्ञान के प्रति जुनून की प्रशंसा की थी, लेकिन अब उनकी पुरानी पीएचडी डिग्री पर उठे सवालों ने इस नई उपलब्धि पर भी संशय के बादल मंडरा दिए हैं। कांग्रेस का कहना है कि जब पीएचडी की वैधता ही जांच के दायरे में है, तो डी.लिट जैसी उपाधियों पर भी सवाल उठना स्वाभाविक है।
बिहार की राजनीति में यह पहला मौका नहीं है, जब किसी कद्दावर मंत्री की शैक्षणिक योग्यता पर सवाल उठे हैं। इससे पहले उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी की डी.लिट डिग्री को लेकर भी विवाद हो चुका है। उन पर आरोप लगे थे कि उन्होंने बिना 10वीं पास किए डॉक्टरेट की मानद उपाधि ली। अब कांग्रेस ने मंत्री अशोक चौधरी की डिग्री पर सवाल खड़ा कर दिया है।