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नीतीश सरकार के मंत्री को मिली थी असिस्टेंट प्रोफेसर की नौकरी, जॉइनिंग लिस्ट में नहीं आया नाम

BSUSC की सिफारिश के बावजूद ग्रामीण कार्य मंत्री अशोक चौधरी का नाम पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय की असिस्टेंट प्रोफेसर जॉइनिंग सूची में नहीं है। उनकी 2002 की PhD डिग्री UGC 2009 नियमों के अनुरूप है या नहीं, इसकी जांच लंबित रहने से नियुक्ति रोकी गई है।

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पटना

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Anand Shekhar

Dec 26, 2025

Ashok Choudhary

बिहार सरकार के मंत्री अशोक चौधरी फोटो-Dr. Ashok Choudhary FB

नीतीश सरकार में ग्रामीण कार्य मंत्री अशोक चौधरी को असिस्टेंट प्रोफेसर के पद के लिए BSUSC द्वारा रिकमेंड किए जाने के बावजूद अभी तक जॉइनिंग लेटर नहीं मिला है। पाटलिपुत्र यूनिवर्सिटी ने पॉलिटिकल साइंस विषय के लिए अनुशंसित किए गए 18 उम्मीदवारों की लिस्ट जारी की है, लेकिन इस लिस्ट में कैबिनेट मंत्री का नाम शामिल नहीं है।

BSUSC की सिफारिश के बावजूद जॉइनिंग में देरी

अगस्त 2024 में, बिहार राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग (BSUSC) ने पूरे राज्य में असिस्टेंट प्रोफेसर के पदों पर नियुक्तियों के लिए सिफारिशें भेजी थीं। पॉलिटिकल साइंस में कुल 280 खाली पदों के मुकाबले 274 उम्मीदवार योग्य पाए गए थे। इस लिस्ट में अनुसूचित जाति कोटे के तहत अशोक चौधरी का नाम भी शामिल था। हालांकि, पाटलिपुत्र यूनिवर्सिटी द्वारा जारी 18 उम्मीदवारों की जॉइनिंग लिस्ट में मंत्री का नाम शामिल नहीं है।

उच्च शिक्षा विभाग द्वारा जारी एक सुचना में कहा गया है कि तीन उम्मीदवार उपलब्ध नहीं थे, दो उम्मीदवारों को अनुभव प्रमाणपत्र की जांच के कारण वेटिंग में रखा गया है, जबकि अशोक चौधरी की नियुक्ति उनकी शैक्षणिक योग्यता के सत्यापन के कारण लंबित है।

PhD डिग्री की जांच बनी सबसे बड़ी बाधा

अशोक चौधरी ने 2002 में मगध यूनिवर्सिटी से PhD की डिग्री हासिल की थी। इस बात की जांच अभी भी चल रही है कि क्या उनकी PhD डिग्री यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन (UGC) के 2009 के नियमों के मुताबिक है या नहीं। पाटलिपुत्र यूनिवर्सिटी प्रशासन का कहना है कि जब तक सभी प्रमाण पत्रों की अच्छी तरह से जांच नहीं हो जाती, तब तक किसी भी कैंडिडेट को नियुक्ति पत्र नहीं दिया जा सकता। यूनिवर्सिटी ने यह भी साफ किया है कि अगर किसी भी स्टेज पर कोई सर्टिफिकेट फर्जी पाया जाता है या नियमों का उल्लंघन करता हुआ पाया जाता है, तो नियुक्ति पत्र कैंसिल कर दिया जाएगा।

नियमों को लेकर है विवाद

दरअसल, बिहार में असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति के नियमों को लेकर लंबे समय से विवाद चल रहा है। 2009 में UGC ने PhD और NET क्वालिफिकेशन से जुड़े सख्त नियम लागू किए थे, लेकिन बिहार के विश्वविद्यालय समय पर इन्हें लागू नहीं कर पाए। इसी वजह से, 2020 में बिहार राजभवन ने नियमों में बदलाव किया और कुछ शर्तों के साथ उन कैंडिडेट्स को छूट दी, जिन्होंने 11 जुलाई 2009 से पहले बिहार के विश्वविद्यालयों में अपनी PhD के लिए रजिस्ट्रेशन कराया था। अशोक चौधरी की PhD इसी कैटेगरी में आती है।

चुनाव से पहले बना था बड़ा मुद्दा

अशोक चौधरी की नियुक्ति से पहले भी राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया था। विधानसभा चुनाव से पहले, प्रशांत किशोर और उनकी जन सुराज पार्टी ने इस पर सवाल उठाया था, यह कहते हुए कि सत्ता में रहते हुए किसी मंत्री को एकेडमिक पद देना हितों का टकराव है। विपक्ष ने आरोप लगाया था कि सरकार अपने मंत्रियों के लिए नियमों में ढील दे रही है, जबकि आम उम्मीदवारों को सालों तक इंतजार करना पड़ता है।