AIMIM बिहार असेंबली इलेक्शन में महागठबंधन के साथ दोबारा लड़ना चाहती है। उसने 6 सीट की डिमांड रखी हैै।
AIMIM सुप्रीमो असदुद्दीन ओवैसी फिर बिहार विधानसभा चुनाव में धमाल मचाने को तैयार हैं। इस कड़ी में वह महागठबंधन से बातचीत के लिए लालू यादव के घर का दौरा कर चुके हैं। इस हफ्ते ओवैसी लावलश्कर के साथ लालू यादव और तेजस्वी यादव से मिलने पहुंचे और सिर्फ 6 सीट देने की डिमांड रखी। यह भी गुहार लगाई कि अगर महागठबंधन सत्ता में आ गया तो भी मंत्री पद की डिमांड नहीं करेंगे। पर राजद पता नहीं क्यों उनके साथ चुनाव लड़ना नहीं चाहती? ओवैसी का कहना है कि 3 बार गठबंधन की कोशिश की गई लेकिन कोई रिस्पांस नहीं मिला है।
2020 में AIMIM ने बिहार विधानसभा चुनाव में 5 सीटों पर जीत हासिल की थी। उसके एकसाथ 5 सीट पर खाता खुलने से सभी दल चौंक गए थे। क्योंकि पूर्णिया, कटिहार, अररिया और किशनगंज ऐसे जिले हैं, जहां 24 विधानसभा सीटें हैं और वह भी सबसे संवेदनशील कैटेगरी में आती हैं। यहां मुस्लिम आबादी 38% से लेकर 70% तक है। 2020 में AIMIM का प्रदर्शन यहां काफी बेहतर था। हालांकि उसके 4 विधायक बाद में RJD में लौट आए। RJD मानती है कि मुस्लिम-यादव का उसका पारंपरिक वोट बैंक ही NDA को रोकने के लिए काफी है।
राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं कि RJD को दो तरह की आशंका है। पहली, अगर सीमांचल में AIMIM को जगह दी गई, तो कल को वह दरभंगा, मधुबनी जैसे दूसरे मुस्लिम बहुल इलाकों में भी पैठ बना लेगी। दूसरी, AIMIM का शामिल होना बीजेपी को सियासत से खेलने का हथियार दे देगा।
विश्लेषकों का दावा है कि 2020 में NDA ने सीमांचल की 24 में से 12 सीटें जीती थीं। महागठबंधन सिर्फ 7 सीटों पर सिमट गया, जबकि AIMIM ने 5 हासिल कीं। दिलचस्प यह है कि 2015 में जब जदयू विपक्षी गठबंधन में था, तो यही 5 सीटें महागठबंधन के खाते में गई थीं। यानी AIMIM बाहर रही तो वोट बंटने से NDA को फायदा मिलना तय है। इस कारण तेजस्वी यादव अभी जोखिम लेने के मूड में नहीं दिखते। वे सीमांचल में सीटें खोने का खतरा उठा सकते हैं, लेकिन पूरे बिहार को 'हिंदू बनाम मुसलमान' चुनाव बनने का खतरा मोल नहीं लेना चाहते।