बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले दंगल छिड़ गया है। पार्टियों के साथ चुनाव आयोग तक सुर्खियों में है।
लालू प्रसाद यादव के दोनों बेटे तेजस्वी यादव और तेज प्रताप यादव बिहार की राजनीति में अकसर सुर्खियों में रहते हैं। दोनों ने अपने-अपने अंदाज से पार्टी कार्यकर्ताओं और जनता का ध्यान खींचा है। लेकिन सवाल यह है कि राजनीति, व्यक्तित्व और भविष्य की संभावनाओं में कौन किस पर भारी है? आइए जानकारों के नजरिए से 10 प्वाइंट में समझते हैं इस समीकरण को :
तेजस्वी यादव का व्यक्तित्व जमीन से जुड़ा, व्यावहारिक और आत्मविश्वासी माना जाता है। वे सहज और व्यावहारिक नेता की छवि रखते हैं। इसके विपरीत तेज प्रताप अंतर्मुखी, धार्मिक और कई बार आक्रामक दिखाई देते हैं। उनकी कन्हैया छवि भले ही ग्रामीण वोटरों को लुभाती हो, लेकिन तेजस्वी की छवि ज्यादा संतुलित और आधुनिक है।
तेजस्वी पार्टी की रणनीति और गठबंधन राजनीति को अच्छे से साध लेते हैं। डिप्टी सीएम रहते हुए उन्होंने विपक्षी राजनीति में भी अपनी पकड़ मजबूत की। दूसरी ओर तेज प्रताप अक्सर बयानबाजी और असंतोष के कारण विवादों में रहते हैं। इस लिहाज से पार्टी की असली कमान तेजस्वी के हाथों में ही दिखती है।
दोनों भाइयों ने अपने पिता लालू प्रसाद से भाषण कला विरासत में पाई है। तेज प्रताप शंख बजाकर सभा की शुरुआत करते हैं और तेजस्वी संयमित भाषा का इस्तेमाल करते हैं। फर्क यह है कि तेजस्वी अपनी आवाज को परिस्थिति के अनुसार ढाल लेते हैं, जबकि तेज प्रताप कभी सख्त तो कभी आक्रामक दिखाई देते हैं।
तेज प्रताप को गहरी आस्था और पूजा-पाठ करने वाला नेता माना जाता है। उनकी तस्वीरें और वीडियो उन्हें भगवान कृष्ण जैसी छवि से जोड़ती हैं। वहीं तेजस्वी का मानना है कि अच्छे कर्म ही असली धर्म हैं। वे कहते हैं कि भगवान भी कहते हैं काम करो, दिखावे की पूजा से कुछ नहीं होता। आधुनिक राजनीति में यह प्रैक्टिकल रवैया उन्हें फायदा देता है।
तेजस्वी को पार्टी का वारिस मान लिया गया है। कार्यकर्ताओं और नेताओं का भरोसा उन्हीं पर ज्यादा है। लालू प्रसाद वैसे ही तेज प्रताप को पार्टी से 6 साल के लिए निष्कासित कर चुके हैं। अब तेज प्रताप नई पार्टी बनाकर अपनी सियासत चमकाने में लगे हैं।
मीडिया से संवाद और अपनी छवि संभालने में तेजस्वी ज्यादा सफल हैं। तेज प्रताप की पहचान अक्सर विवादित बयानों या निजी जीवन से जुड़ी सुर्खियों के कारण बनती है।
तेजस्वी युवा और शहरी वोटरों में भी लोकप्रिय हैं। उन्होंने बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर युवाओं से जुड़ने की कोशिश की है। तेज प्रताप का आकर्षण सीमित है और मुख्य रूप से ग्रामीण और पारंपरिक वोटरों तक ही है।
तेजस्वी भले ही क्लास 9 के बाद पढ़ाई छोड़ चुके हों, लेकिन क्रिकेट ने उन्हें अनुशासन और पहचान दी। IPL और रणजी खेलने का अनुभव उन्हें जनता से जोड़ता है। तेज प्रताप भी ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं हैं लेकिन धार्मिक गतिविधियों और अनुष्ठानों में उनकी गहरी दिलचस्पी है।
राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं कि तेजस्वी पहले ही डिप्टी सीएम रह चुके हैं और विपक्ष के सबसे बड़े चेहरे के तौर पर उभरे हैं। पार्टी और गठबंधन की राजनीति में उन्हें सबसे आगे माना जाता है। तेज प्रताप की भूमिका अब भी साइड रोल जैसी है और राजनीतिक भविष्य असरदार नहीं दिखता है।