Constitution Temple in Bastar: बस्तर जिले के बुरूंगपाल में संविधान का मंदिर स्थापित है। यह मंदिर आदिवासियों के लिए जीत और संघर्ष का प्रतीक है।
Constitution Temple in Bastar: छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में आदिवासी संविधान को लेकर कितनी मान्यता रखते हैं उसका अंदाजा यहां स्थित संविधान के मंदिर से लगाया जा सकता है। बस्तर जिले के बुरूंगपाल में संविधान का मंदिर स्थापित है। यह मंदिर आदिवासियों के लिए जीत और संघर्ष का प्रतीक है। यह न केवल औद्योगिक लालच के खिलाफ आदिवासी प्रतिरोध की कहानी कहता है, बल्कि संविधान को धार्मिक आस्था से जोड़ने की अनूठी मिसाल भी पेश करता है।
संविधान दिवस पर देशभर में डॉ. भीमराव आंबेडकर के योगदान को याद किया जा रहा है, लेकिन बस्तर में संविधान न सिर्फ कानून है, बल्कि आस्था का विषय भी है। तोकापाल ब्लॉक के बुरुंगपाल गांव में स्थित यह देश का इकलौता संविधान का मंदिर आदिवासियों की जीत का प्रतीक है। संविधान की पांचवीं अनुसूची के प्रावधानों को शिला पर उकेरकर बनाए गए इस मंदिर में रोजाना पूजा की जाती है। महत्वपूर्ण फैसलों से पहले यहां खड़े होकर आदिवासी संकल्प लेते हैं।
इस मंदिर में संविधान की प्रति को उसी श्रद्धा से स्थापित किया गया है, जैसे कोई धार्मिक ग्रंथ रखा जाता है। आदिवासी समाज यहाँ नियमित रूप से आकर संविधान की प्रस्तावना और उसके मूल सिद्धांतों को पढ़ता है। स्थानीय लोगों का मानना है कि संविधान ही उनके अधिकारों, संस्कृति और पहचान की रक्षा करता है।
बस्तर के कई गांवों में संविधान दिवस के मौके पर विशेष आयोजन होते हैं, जिनमें युवक-युवतियों से लेकर बुजुर्ग तक शामिल होते हैं। समाज के लोगों के अनुसार संविधान उनके लिए सिर्फ कानूनों का दस्तावेज़ नहीं, बल्कि "अधिकारों और स्वाभिमान का प्रतीक" है। यही वजह है कि बस्तर में संविधान का मंदिर समानता, न्याय और स्वतंत्रता के मूल्यों का प्रतीक बन चुका है।
मंदिर की संरचना किसी पारंपरिक देवालय जैसी नहीं है। यह एक ऊंचे चबूतरे पर बना खुला मंच है, बिना छत या बंद कमरे के। लगभग 6 फुट ऊंची और 10 फुट चौड़ी दीवार पर संविधान की पांचवीं अनुसूची के प्रावधान उकेरे गए हैं, जो ग्राम सभा की शक्तियों पर केंद्रित हैं। समय के साथ कुछ अक्षर फीके पड़ गए हैं, लेकिन इसका महत्व कम नहीं हुआ। आदिवासी संस्कृति के अनुरूप गुड़ी (ऊंचा मंच) शैली में निर्मित यह मंदिर सादगी और शक्ति का संगम दर्शाता है। गांव की आबादी करीब हजारों में है, और यह नक्सल प्रभावित क्षेत्र में शांति व एकता का केंद्र है।
गुड़ी शैली आमतौर पर गाँव की सामुदायिक परंपराओं, देव-स्थानों और सांस्कृतिक स्थलों में दिखाई देती है। इसी शैली में तैयार यह संरचना स्थानीय समाज के संविधान के प्रति सम्मान को उनकी अपनी परंपरा के साथ जोड़कर प्रस्तुत करती है। लकड़ी और पारंपरिक सामग्री से बना यह ढांचा न केवल कलात्मक रूप से आकर्षक है, बल्कि बस्तर की सांस्कृतिक विरासत को आधुनिक संवैधानिक मूल्यों से जोड़ने का अनोखा उदाहरण भी है। यहाँ पहुंचने वाले लोग इसकी अनूठी डिजाइन, नक्काशी और स्थानीय शिल्प कौशल को देखकर प्रभावित हुए बिना नहीं रहते।
बस्तर में जब लाल आतंक चरम पर था तब भी मंदिर को लेकर आदिवासियों की आस्था प्रगाढ़ थी जो आज भी बनी हुई है। हर नए और शुभ काम की शुरुआत इसी मंदिर से करते हैं। आदिवासी नेता रूकमणी कर्मा कहती है कि नक्सलवाद से जूझते बस्तर में यह मंदिर उम्मीद की किरण बना।