Water Crisis: दिल्ली में पानी खरीदने का बोझ धीरे धीरे बढ़ता चला जा रहा है। एक सर्वे में शामिल लोगों में से करीब 34 फीसदी ने बताया कि पानी दुकानों से खरीदना पड़ रहा है और इससे उनके घर का बजट बिगड़ रहा है। इसके चलते स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे जरूरी चीजों की उपेक्षा करनी पड़ रही है।
Delhi Water Crisis: राजधानी दिल्ली में 6 हजार से ज्यादा 10 हजार रुपये से हर महीने कमाने वालों को पानी खरीदने में 15 फीसदी से ज्यादा खर्च करना पड़ रहा है। ऐसी खबरें जैसलमेर, बीकानेर से आती तो किसी को शायद अचरज ना हो लेकिन यह तथ्य देश की राजधानी दिल्ली से सामने आई है। ग्रीनपीस इंडिया के ताजा सर्वे (Water buying Survey in Delhi) से यह भी पता चलता है कि किस तरह निम्नमध्यवर्गीय परिवारों पर पानी खरीदने का एक अतिरिक्त बोझ भी बढ़ता चला जा रहा है।
एनजीओ ग्रीनपीस इंडिया (Green Peace India water buying Survey) ने दिल्ली के 12 लोकेशन पर 500 परिवारों के बीच जाकर सर्वे किया। इस सर्वे के दौरान यह पाया गया कि बड़ी संख्या में परिवारों के पास सार्वजनिक जल आपूर्ति प्रणाली तक पहुंच ही नहीं है। करीब 34% लोग दुकानों से पीने का पानी खरीदते हैं। 29% पानी के टैंकरों पर निर्भर हैं, वहीं 21% लोग वॉटर एटीएम का इस्तेमाल करते हैं। दिल्ली में हेवी ग्राउंड वॉटर होने के बावजूद 14% लोगों की निर्भरता बनी हुई है। सबसे बुरी स्थिति तो 2% लोगों की है जिन्हें पड़ोसियों से पानी उधार लेना पड़ता है। एक रिपोर्ट के अनुसार जैसलमेर, बाड़मेर, धौलपुर और करौली जिले में लोग महीने में पीने के पानी के लिए 4-5 हजार रुपए औसतन खर्च कर रहे हैं।
सर्वे में से 37% परिवारों ने बताया कि उन्हें अपने परिवार के आकार और खपत के तरीके को देखते हुए प्रतिदिन कम से कम 20-25 लीटर पानी की ज़रूरत होती है। हालांकि, इन 37 फीसदी परिवारों में से सिर्फ 28% परिवारों को ही पर्याप्त पानी मिल पाता है।
इस रिपोर्ट में यह बताया गया है कि कम से कम 6,000 से 10,000 रुपये तक कमाने वाले लोग अपनी आय का 15% पानी खरीदने पर खर्च करते हैं। सर्वे में शामिल 70 फीसदी लोगों ने बताया कि पानी खरीदने का बोझ बढ़ने के चलते उन्हें अपने मासिक घरेलू खर्चों के बजट पर असर पड़ रहा है। इसके चलतेलोगों को किराने के सामान में कटौती और स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे गंभीर मसलों पर भी समझौता करना पड़ रहा है।
इस सर्वे में शामिल 38 फीसदी लोगों ने बताया कि पानी की किल्लत के चलते नौकरीपेशा से जुड़े लोगों को दफ्तर पहुंचने में अक्सर देरी हो जाती है। दफ्तर के लिए निकलने से पहले उन्हें अपने लिए और परिवार के लिए पानी हासिल करने की लंबी कतारों में खड़ा करना पड़ता है। इन हालातों में दफ्तर में बॉस की डांट खानी पड़ती है और इसका असर पारिवारिक रिश्तों पर भी पड़ता है।
दिल्ली सरकार ने इसी साल अप्रैल में यह वादा किया था कि वह 3,000 वॉटर एटीएम लगवाएगी लेकिन चालू वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में सिर्फ 20 वॉटर एटीएम ही लगाए जा सके। दिल्ली के सावदा घेवरा, सकरपुर बस्ती, खजान बस्ती और चुन्ना बस्ती सहित सर्वेक्षण किए गए इलाकों में एटीएम से 20 लीटर पानी भी निकलता है और कई जगहों पर यह 24 घंटे काम भी नहीं करते। कई परिवारों ने बताया कि वॉटर एटीएम उनके घरों से दूर लगाए गए हैं और इस वजह से वह पानी लेने के लिए वहां नहीं जा पाते।
भारतीय व्यापार संवर्धन परिषद (Trade Promotion Council of India) के अनुसार, भारत में बोतलबंद पानी का बाज़ार 2023 में करीब 31,666.46 करोड़ रुपये का था और 2030 तक इसके 8922 मिलियन अमेरिकी डॉलर 74,498.7 रुपये तक पहुंचने का अनुमान है। वहीं मैक्सिमाइज मार्केट रिसर्च के अनुसार, पिछले पांच वर्षों में भारत का पैकेज्ड वॉटर मार्केट 40–45 फीसदी बढ़ चुका है।
केंद्रीय वेतन आयोग जनवरी 2026 में आठवां वेतन आयोग लाने की तैयारी कर रहा लेकिन अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय की रिपोर्ट के अनुसार, 82% पुरुष और 92% महिला कर्मचारी ₹10,000 प्रति माह से कम कमाते हैं। यह स्थिति तब है जब सातवें केंद्रीय वेतन आयोग ने न्यूनतम वेतन 18,000 रुपये प्रति माह निर्धारित करने की सिफारिश की है।