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रूसी तेल खरीदने को लेकर भारत पर 50% प्रतिशत टैरिफ, चीन से इस मामले में चर्चा तक नहीं, क्यों जिनपिंग से घबरा रहे ट्रंप?

ट्रंप-शी जिनपिंग की बैठक में ट्रंप ने साफ किया कि फिलहाल चीन पर कोई एक्शन नहीं लेंगे, जो रूस का सबसे बड़ा तेल खरीददार है। टैरिफ मुद्दा नहीं उठा, तेल खरीद पर चर्चा न हुई।

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Oct 31, 2025
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग। फोटो- (The Washington Post)

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने गुरुवार को एक हाई-प्रोफाइल बैठक की। इस दौरान ट्रंप ने दुनिया भर को साफ संकेत दे दिया कि वह फिलहाल रूस के सबसे बड़े तेल खरीददार चीन पर कोई भी एक्शन लेने के मूड में नहीं हैं।

गुरुवार को बैठक के बाद ट्रंप ने चीन पर टैरिफ लगाने के विषय पर कहा कि यह मुद्दा उठा ही नहीं। ट्रंप ने कहा कि हमने वास्तव में तेल खरीदने के मामले पर चर्चा ही नहीं की। हमने केवल मिलकर काम करने के बारे में चर्चा की। साथ ही कैसे रूस और यूक्रेन युद्ध को समाप्त कर सकते हैं? इसपर भी हमारी बात हुई।

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100 प्रतिशत टैरिफ लगाने की धमकी भी 'फुस्स'

दरअसल, एक तरफ रूस से तेल खरीदने को लेकर ट्रंप ने भारत पर दंडात्मक कार्रवाई के तहत अमेरिका में भारतीय सामानों के आयात पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाया है। वहीं, दूसरी ओर कई बार 100 प्रतिशत टैरिफ लगाने की घोषणाओं के बावजूद ट्रंप अब तक चीन पर एक्शन लेने से बच रहे हैं।

इस वजह से चीन के आगे झुकने पर मजबूर हैं ट्रंप

चीन के आगे ट्रंप के झुकने की वजह साफ है। वह है — सोयाबीन का व्यापार। दरअसल, सोयाबीन अमेरिका का सबसे बड़ा कृषि निर्यात उत्पाद है। चीन इसका दुनिया का सबसे बड़ा खरीदार है। 2024 में चीन ने अमेरिका से लगभग 12.6 बिलियन डॉलर का सोयाबीन खरीदा था।

लेकिन 2025 में ट्रंप प्रशासन के नए टैरिफ (20% अतिरिक्त) के जवाब में चीन ने मई से अमेरिकी सोयाबीन की खरीद पूरी तरह रोक दी। जिससे अमेरिका में किसानों को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचा है। यहां तक कि वह ट्रंप के खिलाफ सड़क पर उतर गए हैं।

ऐसा माना जा रहा है कि इसी दबाव में ट्रंप रूस से सबसे अधिक तेल खरीदने के बावजूद चीन पर और अधिक टैरिफ लगाने से पीछे हट रहे हैं। उधर, चीन पर दबाव बनाने की कमी का मतलब साफ है कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को इसका फायदा मिलेगी।

ऐसी स्थिति में आप रूस के खिलाफ सख्त होने का नहीं कर सकते दावा

यूक्रेन के साथ युद्ध के लिए उनका तेल राजस्व एक प्रमुख स्रोत बना रहेगा। ओब्सीडियन रिस्क एडवाइजर्स के प्रतिबंध विशेषज्ञ और प्रबंध निदेशक ब्रेट एरिकसन ने कह कि अगर ट्रंप जिनपिंग के साथ रूसी तेल को लेकर चर्चा नहीं कर रहे हैं तो यह मॉस्को पर लगाए गए प्रतिबंधों को पूरी तरह कमजोर करता है।

उन्होंने आगे कहा कि इस स्थिति में आप रूस के प्रति सख्त होने का दावा नहीं कर सकते। आप रूस की अर्थव्यवस्था को बचाए रखने वाले सबसे बड़े खरीदारों में से एक की अनदेखी कर रहे हैं।

दिखावटी लग रहे हैं ट्रंप के प्रतिबंध

विशेषज्ञ ने आगे कहा कि ट्रंप के प्रतिबंध अब तक दिखावटी ही लग रहे हैं। अगर वह ऊर्जा प्रवाह पर शी जिनपिंग से भिड़ने को तैयार नहीं हैं, तो यूक्रेन को लेकर सख्त कदम उठाने के मामले में सिर्फ 'कागजी शेर' ही कहलाएंगे।

ट्रंप के प्रतिबंधों ने शुरुआत में तेल बाजारों को झकझोर दिया था, लेकिन जिनपिंग के साथ इस मुद्दे को उठाने से इनकार करने से पता चलता है कि वह फिलहाल अमेरिका और चीन के रिश्ते को स्थिर करने पर जोर दे रहे हैं।

क्या बोले जेलेंस्की?

उधर, जिनपिंग और ट्रंप की मुलाकात के बाद, यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की ने भी अपनी प्रतिक्रया दी है। उन्होंने उम्मीद जताई कि ट्रंप और शी जिनपिंग रूसी ऊर्जा राजस्व पर अंकुश लगाने पर सहमति बना सकते हैं।

एक्स पर एक पोस्ट में, जेलेंस्की ने कहा कि तेल प्रतिबंध रूस को पहले से ही काफी नुकसान पहुंचा रहे हैं। सिद्धांत के तहत और लगातार दबाव के चलते मॉस्को को हर साल 50 अरब डॉलर का नुकसान हो सकता है। जेलेंस्की ने आगे लिखा कि यह जरूरी है कि चीन रूस के साथ युद्ध को रोकने के प्रयासों में योगदान दे।

तनातनी में शायद कई तरह के हथकंडे अपना सकता है चीन

उधर, ब्लूमबर्ग इकोनॉमिक्स के वरिष्ठ भू-अर्थशास्त्र विश्लेषक क्रिस कैनेडी ने कहा कि इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि ट्रंप और जिनपिंग की मुलाकात में टैरिफ के विषय पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया। तनातनी की स्थिति में, चीन शायद कई तरह के हथकंडे अपना सकता है।

(वाशिंगटन पोस्ट का यह आलेख पत्रिका.कॉम पर दोनों समूहों के बीच विशेष अनुबंध के तहत पोस्ट किया गया है)

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