Nikki Bhati's death: ग्रेटर नोएडा में 28 वर्षीय महिला निक्की भाटी की दहेज को लेकर हत्या पर पूरे देश में बवाल उठ खड़ा हुआ है। भारत में सालाना 7 हजार महिलाओं की दहेज हत्याएं होती है। हालांकि, देश के कई राज्य दहेज जैसी घिनौनी प्रथा से मुक्त हैं।
Dowry Deaths in India: ग्रेटर नोएडा में 28 वर्षीय निक्की भाटी की मौत (Nikki Bhati dowry death news) पर देश में आक्रोश का माहौल है और सोशल मीडिया पर त्वरित न्याय की मांग भी की जा रही है। भारत में उपलब्ध अपराधों के आंकड़ों से यह स्पष्ट है कि महिलाओं की दहेज की मांग को लेकर लगातार घरेलू हिंसा और प्रताड़ना लगातार बड़े पैमाने पर सहनी पड़ रही है। रेप की तुलना में दहेज को लेकर 25 गुना अधिक महिलाओं की हत्याएं भी दर्ज की जा रही है।
NCRB dowry death statistics 2022: राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के नवीनतम उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, भारत में वर्ष 2022 में धारा 304B के तहत दर्ज 6,516 महिलाओं की दहेज के नाम पर हत्या की गई थी। इस साल दहेज के लिए की गई हत्या, रेप के मामलों में हत्याओं की तुलना में 25 गुणा ज्यादा थी।
वर्ष 2022 की एनसीआरबी रिपोर्ट के अनुसार पूरे देश में दर्ज मामलों के लिहाज से सिर्फ 13,641 महिलाएं ही पीड़ित थीं। अगर यह सही आंकड़ा है तब इसका मतलब यह हुआ कि दर्ज मामलों के अनुपात में एक तिहाई महिलाओं की दहेज प्रताड़ना के चलते मौत हो जाती है। इन आंकड़ों से यह पता चलता है कि दहेज को लेकर प्रताड़ित हो रही महिलाएं और उनके परिवार वाले ज्यादातर मामलों में पुलिस तक नहीं पहुंचते। इन मामलों में जब बात बिल्कुल बिगड़ जाए जैसा कि निक्की भाटी के मामले में हुआ तभी वह कानून की शरण लेती हैं।
भारत में कितनी होती है दहेज हत्या? दहेज हत्या जैसे गंभीर मामलों में भी न्यायालय में पीड़िता या उनके परिवार को न्याय मिलने में बहुत देरी होती है। एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि 2022 के अंत तक अदालतों में दहेज हत्या के 60,577 मामले लंबित थे। इनमें से 54,416 मामले 2022 से पहले से लंबित थे। वर्ष 2022 में 3,689 मामलों में सुनवाई पूरी हुई और उनमें से केवल 33% में ही दोषी साबित हो पाए। वर्ष 2022 के दौरान सुनवाई के लिए भेजे गए 6,161 मामलों में से केवल 99 में ही दोषसिद्धि हुई। इसका मतलब है कि निक्की भाटी के मामले में एक साल के भीतर दोषसिद्धि होने की संभावना 2% से भी कम है।
एक सर्वेक्षण के अनुसार दुल्हन के परिवार के लिए औसत शादी का खर्च दूल्हे के परिवार की तुलना में 1.5 गुना अधिक था। वहीं इस सर्वे में शामिल हुए 24 प्रतिशत परिवारों ने दहेज के रूप में एक टीवी, रेफ्रिजरेटर, कार या मोटरसाइकिल देने की सूचना दी। 29% लोगों ने कहा कि अगर दहेज की मांग पूरी नहीं होती है तो इसके लिए एक महिला को पीटा जाना आम बात है।
वर्ष 2019-21 एनएफएचएस के नवीनतम आंकड़ों से पता चलता है कि 18-49 वर्ष की आयु की 29% महिलाएं जो विवाहित हैं या थीं, उन्हें अपने पति/साथी द्वारा शारीरिक या यौन हिंसा का सामना करना पड़ा था। इन महिलाओं में से 24% ने सर्वेक्षण से पहले के वर्षों में इस तरह हिंसा का सामना किया था। जिन 29% ने कभी इस तरह की हिंसा का सामना किया था, उनमें से 3.3% को मारपीट के चलते गंभीर चोट और जलाए जाने के मामले थे। 7.3% महिलाओं को आंखों की चोटों, मोच, अव्यवस्था या मामूली जलन का सामना करना पड़ा था और 21.8% को कटने, चोट लगने या दर्द का सामना करना पड़ा। यह सच है कि महिलाएं सिर्फ दहेज के चलते प्रताड़ित नहीं होती है लेकिन यह सबसे बड़ी वजहों में तो गिना ही जाना चाहिए।
भारत में कुछ राज्य ऐसे भी हैं जिनमें दहेज की मांग की संस्कृति नहीं है। असम, मेघालय, मणिपुर, मिजोरम, नागालैंड, त्रिपुरा और अरुणाचल प्रदेश में यह संभव हो कि इक्के, दुक्के मामले दहेज के दर्ज किए जाते हों लेकिन इन राज्यों में दहेज की मांग, दहेज को लेकर महिलाओं का उत्पीड़न और हत्याएं न के बराबर दर्ज की जाती है। दहेज का चलन उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और उत्तराखंड में बहुत ज्यादा है लेकिन दक्षिण के राज्यों में दहेज का चलन कुछ कम नहीं है। हाल के वर्षों में केरल में भी दहेज़ में भारी वृद्धि और औसत दहेज के भुगतान का स्तर ऊंचा रहा है।
ग्रामीण भारत पर किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि 1960 और 2008 के बीच 95% शादियों में दहेज दिया जाता था। बीबीसी में 2023 में प्रकाशित एक रिपोर्ट आंकड़े बताते हैं कि लगभग 90% भारतीय शादियों में दहेज अब भी मौजूद है।दहेज का स्वरूप अब नकद राशि से हटकर अन्य महंगे उपहारों और दुल्हन के परिवार द्वारा पूरी शादी का खर्च उठाने तक पहुंच गया है।