द स्टूडेंट सिंक इंडेक्स-2026 की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि देशभर में 63 प्रतिशत विद्यार्थी हर रोज तनाव में रहते हैं और 29 प्रतिशत विद्यार्थी हफ्ते में एक से ज्यादा बार तनाव महसूस करते हैं।
Student Sync Index-2026 Report: आज की कक्षाओं में बच्चों के सामने किताबें खुली होती हैं, लेकिन मन बंद। होमवर्क पूरा है, मगर दिल बोझिल। मुस्कान चेहरे पर है, पर भीतर डर पल रहा है। अभिभावकों की उम्मीदों का बोझ, प्रतिस्पर्धा और कम समय में ज्यादा सीखने की जद्दोजहद विद्यार्थियों में तनाव और चिंता को लगातार बढ़ा रहे हैं। हालत यह है कि कक्षा में पढऩे वाला हर दूसरा विद्यार्थी रोज तनाव में जी रहा है। इसका असर बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी पड़ रहा है। यह खुलासा द स्टूडेंट सिंक इंडेक्स-2026 की रिपोर्ट में हुआ है। देशभर में विद्यार्थियों, शिक्षकों, अभिभावकों और स्कूलों के इकोसिस्टम से जुड़े लोगों से बातचीत के आधार पर यह इंडेक्स रिपोर्ट जारी की है।
रिपोर्ट के अनुसार कक्षा में हर रोज 63 प्रतिशत विद्यार्थी तनाव में रहते हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार क्लासरूमों में शिक्षकों को किसी विषय या पाठ से संबंधित प्रश्न कम सुनने को मिलते हैं। छात्र अधिकतर प्रश्न चिंता, थकान और डर से जुड़े होते हैं।
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हालांकि इस रिपोर्ट का दूसरा पहलू कुछ विरोधाभासी भी है। रिपोर्ट के मुताबिक इस तनाव के बीच विद्यार्थी इन मुद्दों पर खुलकर बातचीत करने लगे हैं। ऐसे में शिक्षकों की जिम्मेदारी बढ़ी है और वे विद्यार्थियों से अधिक सहानुभूति के साथ जुड़ रहे हैं। रिपोर्ट बताती है कि छात्रों के सामने बदलते हालातों में शिक्षक ही समस्याओं को सुनने, समझने और सुलझाने में सबसे आगे हैं।
63 प्रतिशत विद्यार्थी हर रोज तनाव महसूस करते हैं।
29 प्रतिशत विद्यार्थी हफ्ते में एक से ज्यादा बार तनाव महसूस करते हैं।
66 प्रतिशत विद्यार्थी दबाव और चिंता की शिकायत लेकर शिक्षक तक पहुंंचते हैं।
42 प्रतिशत विद्यार्थी अभिभावकों की उम्मीदों के कारण दबाव महसूस करते हैं।
43 फीसदी विद्यार्थी दोस्तों, सामाजिक मुद्दे या करियर की अनिश्चितता के कारण तनाव झेलते हैं।
18 प्रतिशत विद्यार्थी प्रतिस्पर्धा के कारण तनाव में झेलते हैं।
रिपोर्ट के अनुसार विद्यार्थी अब अपनी रोज की पढ़ाई में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस टूल्स का इस्तेमाल करने लगे हैं। हालांकि इस मामले में संस्थागत मदद छात्र-छात्रा को नहीं मिल पा रही है। इस मामले में विद्यार्थी आगे और स्कूल पीछे नजर आते हैं। अभिभावकों का भी मानना है कि स्कूल तकनीकी बदलाव में काफी पीछे हैं।
इस सर्वे रिपोर्ट के अनुसार विद्यार्थी की सफलता का पैमाना अच्छे स्कूल में एडमिशन और अच्छे नंबरों को ही माना जाता है। बेहद कम विद्यार्थी ही सफलता को जिंदगी में उपयोगी किसी लर्निंग से जोड़ते हैं।
रिपोर्ट के अनुसार शिक्षक विद्यार्थियों के इस तनाव को पहचानते हैं, लेकिन पता होने के बाद भी उनके जवाब समस्या को नजरअंदाज करने वाले होते हैं। विद्यार्थियों में तनाव की वजह पाठ्यक्रम और पढ़ाने का तरीका भी है। इसके कारण विद्यार्थी दबाव महसूस करते हैं।
स्कूलों में पढ़ाई के दौरान तनाव और दबाव के कारण अब मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी बातचीत भी बढ़ी है। 66 फीसदी शिक्षक कहते हैं कि अब बच्चे चिंता, उदासी और भावनात्मक बातें भी बताते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक पढ़ाई और अतिरिक्त वर्कलोड से 45 फीसदी बच्चे परेशान होते हैं।