Breastfeeding Awareness: स्तनपान शिशु का पहला और सबसे जरूरी अधिकार है। यह मां और बच्चे दोनों के स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है। इसके बावजूद आज भी कई महिलाएं इस जीवनदायी प्रक्रिया में लापरवाही बरत रही हैं, जो चिंता का विषय है।
Breastfeeding Awareness: स्तनपान केवल एक प्राकृतिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि नवजात शिशु के लिए जीवन का पहला अमृत है। यह शिशु को पोषण, रोग प्रतिरोधक क्षमता, और मानसिक विकास प्रदान करता है, तो वहीं मां को ब्रेस्ट कैंसर जैसी घातक बीमारी से भी सुरक्षा देता है। इसके बावजूद आज भी कई महिलाएं इस जीवनदायी प्रक्रिया में लापरवाही बरत रही हैं, जो चिंता का विषय है।
1 से 7 अगस्त तक 'विश्व स्तनपान सप्ताह' मनाया जा रहा है। इसका उद्देश्य शिशुओं को स्तनपान कराने के महत्व को उजागर करना और माताओं को जागरूक करना है। लेकिन अफसोसजनक बात यह है कि आज भी कई महिलाएं खासकर शहरी और शिक्षित वर्ग की महिलाएं, स्तनपान को लेकर लापरवाही बरत रही हैं।
आधुनिक जीवनशैली अपनाने वाली कई महिलाएं बच्चों को स्तनपान कराने से कतराती हैं। वजह उनका डर कि कहीं स्तनपान से उनका फिगर न बिगड़ जाए। हालांकि विशेषज्ञ इस धारणा को पूरी तरह गलत ठहराते हैं।
डॉ. ओंकार खंडवाल, एचओडी, पीडियाट्रिक, नेहरू मेडिकल कॉलेज के अनुसार, स्तनपान कराने वाली महिलाओं के बच्चों में रोग प्रतिरोधक क्षमता ज्यादा होती है। मां के दूध में वे सारे तत्व होते हैं, जो शिशु को बीमार करने से बचाता है। इससे भावनात्मक लगाव व बच्चे का वजन भी बढ़ता है। कम से कम 6 माह तक स्तनपान जरूरी है।
आंकड़े बताते हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाएं स्तनपान को लेकर कहीं ज्यादा सजग हैं। भले ही वे कम पढ़ी-लिखी हों, लेकिन वे जन्म के तुरंत बाद शिशु को स्तनपान कराना शुरू कर देती हैं। इसके विपरीत, शहरी और पढ़ी-लिखी महिलाओं में स्तनपान की दर काफी कम है। वे या तो बोतल फीडिंग पर निर्भर होती हैं या कार्यस्थल की व्यस्तता के कारण स्तनपान से दूरी बना लेती हैं।