MP Assembly Special Session 2025: मप्र विधानसभा की पहली बैठक 17 दिसंबर 1956 को काशीप्रसाद पांडे के सभापतित्व में हुई थी शुरू, मप्र विधानसभा की 69वीं वर्षगांठ पर पर पढ़ें सुनील मिश्रा की विशेष रिपोर्ट...
MP Assembly Special Session 2025: मध्यप्रदेश विधानसभा की 69वीं वर्षगांठ पर एक दिवसीय विशेष सत्र का आयोजन किया जा रहा है। इसमें सदस्य मध्यप्रदेश को विकसित और समृद्ध बनाने पर चर्चा करेंगे। राज्य पुनर्गठन आयोग की अनुशंसा पर 1 नवंबर 1956 को मध्यप्रदेश राज्य के गठन के बाद मध्यप्रदेश विधान सभा का पहला सत्र 17 दिसंबर 1956 को शुरू हुआ था। यह सत्र एक माह तक चला था। इसकी अवधि 17 दिसबर 1956 से 17 जनवरी 1957 थी।
पहले ही सत्र में एक प्वॉइंट ऑफ ऑर्डर आया था तो समय बचाने सदस्यों ने शपथ लेने के बाद सभापति से हाथ मिलाने की परंपरा को अभारतीय बता किनारा किया था। तब से अब तक 16 विधानसभा गठित हो चुकी हैं। 19 अध्यक्ष आसंदी पर रहे हैं। नये प्रदेश के पहले राज्यपाल डॉ. भोग राजु पट्टाभि सीतारमैया एवं मुख्यमंत्री पं. रविशंकर शुक्ल थे। इन्होंने पुरानी विधानसभा जिसे मिंटो हॉल कहा जाता था, में ही शपथ ली थी। पुनर्गठित पहली विधान सभा के अध्यक्ष पंडित कुंजीलाल दुबे, उपाध्यक्ष विष्णु विनायक सर्वटे और विरोधी दल के नेता विश्वनाथ यादवराव तामस्कर थे।
17 दिसंबर 1957 को दोपहर 12 बजे सभापति काशीप्रसाद पांडे के सभापतित्व में सभा शुरू हुई। सबसे पहले उन्होंने राज्यपाल द्वारा उन्हें सभापति मनोनीत करने का आदेश पढ़कर सुनाया। इसके बाद उन्होंने बताया कि वे सुबह 9.30 बजे राज्यपाल के सम्मुख शपथ ग्रहण कर चुके हैं। अब मुयमंत्री रविशंकर शुक्ल से शुरू करके सभी विधायकों को शपथ दिलाई जाएगी।
इसके बाद विधायकों ने उनके सामने आकर शपथ लेना शुरू किया। 39 विधायकों की शपथग्रहण के बाद विधायक रामचंद्र विट्ठन बड़े ने प्वॉइंट ऑफ ऑर्डर लाकर कहा कि हम लोग विधानसभा के सदस्य हैं और शपथ ले चुके हैं। संविधान में आया है कि जो मध्यभारत विधानसभा के सदस्य होंगे वे मप्र असेंबली के सदस्य माने जाएंगे। फिर इस विधानसभा का समय क्यों व्यर्थ किया जा रहा है।
इस पर सभापति ने कहा कि इसी तरह के ऐतराज दूसरे प्रदेशों में भी उठाए गए थे फिर भी वहां शपथ दिलाई गई। इसके बाद विधायक निरंजन वर्मा ने कहा कि एक तो व्यवस्था का आधार होता है और दूसरा कन्वेंशन का, तो श्रीमानजी ने जो रूलिंग दी है वह व्यवस्था से संबंध रखती है या कन्वेंशन से, इसका स्पष्टीकरण हो जाए तो हम लोगों के लिए अच्छा होगा। सभापति ने जवाब दिया कि स्पष्टीकरण की कोई आवश्यकता नहीं है, जो कार्यवाही हो रही है वह सर्वथा ठीक है। इसके बाद शपथ दिलाना शुरू हुआ।
राज्य के पुनर्गठन के कुछ पहले सितंबर 1956 में ही नई एकीकृत विधान सभा भवन के लिए भोपाल की एक खूबसूरत इमारत मिंटो हाल का चुनाव कर लिया गया था। अंग्रेजी राज, नवाबी हुकूमत के दौर और बाद में लोकतंत्रीय शासन के साक्षी मिंटो हॉल की कहानी 12 नवबर, 1909 से शुरू हुई थी।
तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड मिंटो इस दिन अपनी पत्नी के साथ भोपाल आए थे। भोपाल की शासक नवाब सुल्तान जहां बेगम को उस समय यह कमी महसूस हुई कि लॉर्ड मिंटो को ठहराने के लिए भोपाल में कोई अच्छा भवन नहीं था। उन्होंने अतिथि गृह के तौर पर तुरंत एक नायाब इमारत बनवाने का फैसला किया।
इसकी लागत 3 लाख आई थी लेकिन बनाने में 24 साल का समय लगा था। इस इमारत का नाम मिंटो हॉल रखा गया। इस इमारत के भव्य हाल में नवाबी घरानों के लड़के-लड़कियां स्केटिंग सीखते रहे। 1946 में इसमें इंटर कॉलेज की स्थापना हुई जो बाद में हमीदिया कॉलेज के रूप में जाना गया।
हमीदिया कॉलेज इस इमारत में 1956 तक लगता रहा। 1 नवंबर, 1956 से यह भवन विधान सभा के रूप में परिवर्तित हुआ। तब से लेकर अगस्त, 1996 तक यह भवन मप्र की चालीस वर्ष की संसदीय यात्रा का हमकदम और लोकतांत्रिक इतिहास का साक्षी बना रहा। इसके बाद 3 अगस्त 1996 को विधानसभा अरेरा हिल्स पर बनाए गए अपने नए भवन में पहुंची।