Navratri special: सरगुजा संभाग में मां महामाया, बडक़ी माई, खुडिय़ा रानी, कुदरगढ़ी देवी और ज्वालामुखी देवी के नाम से होती है देवी मां की पूजा, शारदीय नवरात्र में लाखों की संख्या में जुटते हैं श्रद्धालु
अंबिकापुर. आश्विन और चैत्र मास देवी उपासना का पवित्र महीना है। आश्विन महीने के शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से लेकर नवमी तक दुर्गा पूजा की धूम रहती है। इस अवसर पर देवी की विभिन्न रूपों में पूजा होती है। शारदीय नवरात्रि (Navratri special) के समय तो सभी जगह मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित कर 9 दिनों तक धूमधाम से पूजा अर्चना की जाती है। सरगुजा के जनजातीय समुदाय के लोग भी मां देवी की पूजा पारंपरिक ढंग से करते हैं। आश्विन नवरात्रि मां दुर्गा पूजा और चैत्र नवरात्रि रामनवमी पूजा के लिए प्रसिद्व है।
राज्यपाल पुरस्कृत व्याख्याता अजय कुमार चतुर्वेदी ने बताया कि सरगुजा अंचल में विभिन्न नामों से देवी की पूजा अर्चना की जाती है। अंबिकापुर में सरगुजा राज परिवार की कुल देवी और सरगुजा अंचल की आराध्य देवी जगत जननी मां महामाया के नाम से, सूरजपुर जिले के देवीपुर में महामाया (Navratri special) और ओडग़ी तहसील के कुदरगढ़ में कुदरगढ़ी देवी के नाम से पूजा होती है।
रामानुजगर विकासखंण्ड के पंपापुर में महामाया और मंदिरों की नगरी प्रतापपुर में मां समलेश्वरी, मां महामाया और मां काली की पूजा होती है। रमकोला में ज्वालामुखी देवी और खोपा ग्राम में खोपा देव के नाम से देवी की पूजा-अर्चना होती है।
शंकरगढ़ चलगली के महामाया मंदिर में "बडक़ी माई" के नाम से पूजी जाती देवी हैं। यहां देवी मां का स्वरूप नगाड़े में विराजमान है। इसलिए मंदिर के पुजारी (बैगा) मां के खडग़ और नगाड़े की पूजा विधि विधान से राजपरिवार के तत्कालीन उत्तराधिकारी से करवाते हैं।
सरगुजा अंचल की आराध्य देवी अंबिकापुर की जगत जननी मां महामाया (Navratri special) हैं। मां महामाया संभाग मुख्यालय अंबिकापुर में शक्तिपीठ के रूप में विराजमान हैं। यहां कुछ दूरी पर मां समलेश्वरी विराजमान हैं। ऐसी मान्यता है कि यहां से कोई भी श्रद्धालु भक्त खाली हाथ नहीं लौटता है। कालांतर में मां महामाया अंबिका देवी के नाम से श्रीगढ़ की पहाड़ी पर पूजित थीं।
यहां चैत्र नवरात्रि और क्वांर नवरात्रि में श्रद्वालुओं का अपार जन सैलाब उमड़ता है। रियासत काल में सरगुजा की राजधानी प्रतापपुर को भी बनाई गई थी, जो महाराजा रघुनाथशरण सिंहदेव बहादुर के समय सरगुजा की राजधानी प्रतापपुर से वर्तमान अंबिकापुर लाई गई।
उस समय अंबिकापुर को बिश्रामपुर कहा जाता था। छत्तीसगढ़ नए सूबा में सरगुजा के शामिल होने के साथ ही विश्रामपुर का नाम अंबिकापुर अंबिका देवी के नाम पर रखा गया। मान्यता है कि मां के दरबार से कोई भक्त खाली हांथ नहीं लौटता।
सूरजपुर जिला अन्तर्गत ओडग़ी ब्लाक मुख्यालय से लगभग छह किलो मीटर की दूरी पर उत्तर पश्चिम में कुदरगढ़ पर्वत के सघन वनों के बीच शक्तिपीठ मां बागेश्वरी (Navratri special) बाल रूप में कुदरगढ़ी देवी के नाम से विराजमान हैं। दोनों नवरात्रि में यहां नौ दिनों तक श्रद्वालु, भक्तों का तांता लगा रहता है।
शक्तिपीठ मां बागेश्वरी कुदरगढ़ी देवी के संबंध में एक जनश्रुति प्रचलित है कि वनवास काल में भगवान श्री राम, लक्ष्मण और माता सीता ने भी इस पर्वत पर मां वन देवी की पूजा अर्चना की थी। प्रतापपुर विकास खंड के रमकोला में ज्वालामुखी देवी के नाम से देवी की पूजा होती है। जशपुर जिले में खुडिय़ा रानी के नाम से देवी पूजा होती है।
सरगुजा अंचल में देवी भक्त शारदीय और चैत्र दोनों ही नवरात्रि (Navratri special) में मां भगवती की उपासना विभिन्न नामों से करते हैं। यहां कहीं ज्वालामुखी देवी, कहीं मां महामाया, कहीं खुडिय़ा रानी, तो कहीं बडक़ी माई के नाम से पूजी जाती हैं मां भगवती। श्रद्धालु, भक्त नौ दिनों तक माता के नौ रूपों की पूजा और सेवा पारंपरिक सरगुजिहा लोक गीतों के साथ सच्चे मन से करते हैं, और मन चाहा वरदान पाते हैं।
मां महामाया सरगुजा संभाग मुख्यालय अंबिकापुर से लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर चलगली महामाया मंदिर में राज परिवार की कुलदेवी और आदिवासी अंचल की आराघ्य देवी के रूप में पूजित हैं। यहां प्रत्येक वर्ष क्वार नवरात्रि के अवसर पर पंचमी तिथि को शंकरगढ़ राजपरिवार के वर्तमान उत्तराधिकारी के द्वारा विशेष पूजा की जाती है।
शंकरगढ़ राजपरिवार के वर्तमान उत्तराधिकारी अनुराग सिंह देव ने बताया कि यहां की महामाया हमारी कुलदेवी के रूप में पूजित हैं। इसलिए प्रत्येक क्वांर नवरात्रि (Navratri special) की पंचमी को हमारे परिवार द्वारा विशेष पूजा और नौ कन्याओं को भोज कराया जाता है।
प्राय: देखा जाता है कि देवी मंदिरों में किसी मूर्ति या प्रतिमा की पूजा होती है। किंतु चलगली के महामाया मंदिर में केवल मां के खडग़ और नगाड़े की पूजा होती है। इस संबंध में ऐसी मान्यता प्रचलित है कि देवी मां का स्वरूप नगाड़े में विराजमान है, इसलिए नगाड़े और मां की खडग़ की विशेष पूजा होती है।