Vijay Diwas: पाकिस्तानी सेना के आठ टॉप कमांडर को सीएमएम की बैरक में युद्धबंदी के रूप में रखा गया था।
Vijay Diwas: 'विजय दिवस' पर मध्यप्रदेश के जबलपुर शहर में उन वीर सैनिकों का स्मरण किया गया जिन्होंने मातृभूमि की रक्षा में जान न्योछावर की थी। 3 से 16 दिसंबर 1971 तक चला यह युद्ध बहादुर सैनिकों के बलिदान और अदम्य साहस की याद दिलाता है। युद्ध में पाकिस्तानी सेना के 90 हजार से अधिक सैनिकों ने भारतीय सेना के सामने हार मानकर आत्मसमर्पण किया था। इस युद्ध में जबलपुर को इसलिए याद किया जाता है, क्योंकि पाकिस्तानी सेना के आठ टॉप कमांडर को सीएमएम की बैरक में युद्धबंदी के रूप में रखा गया था।
इसके साथ ही 2 घंटे 15 मिनट में बनाया गए पुल की यादें भी जबलपुर से जुड़ती है। इसे बनाने में जबलपुर के कर्नल आरके गोपाल इंजीनियर के रूप में शामिल थे। कर्नल आरके गोपाल ने 1971 के युद्ध की यादों को ताजा करते हुए कहा कि 20 नवंबर 1971 को मुझे कर्नल गोसाई से फ्लोटिंग पुल बनाने का ऑर्डर मिला। इसे बगदाहा से बोयरा तक का पूरा पतला रास्ता झाड़ियों भरा हुआ था। हमें अपने युद्धक टैंक दूसरी जगह ले जाने थे।
पुल बनाने वाली टीम के सामने चुनौती थी कि उन्हें 40 से ज्यादा गाड़ियों को निकालना था। अपरान्ह तीन बजे काम शुरू हुआ। कोई रुकावट नहीं, कोई देरी नहीं। कोई गलती नहीं। कड़ी ट्रेनिंग का फायदा दिख रहा था। बख्शी, गोपाल, सैमुअल और साहा सभी अपने बेस्ट पर थे। हमने पुल को 5 बजकर 15 मिनट पर तैयार कर दिया। यह काम तीन घंटे पहले कर लिया गया था।
बलपुर के सैन्य संस्थानों से प्रशिक्षित सैनिकों ने युद्ध में भागीदारी की थी। शहर की चारों आयुध निर्माणियों में बने गोला-बारूद का इस्तेमाल किया गया था। आयुध निर्माणी खमरिया से पूरे समय गोला-बारूद का उत्पादन हुआ। वाहन निर्माणी उस समय शक्तिमान और दूसरे वाहन तैयार करती थी। गन कैरिज फैक्ट्री तोप के निर्माण में आगे रहीं।
उस समय कार्यरत कर्मचारी उन दिनों को आज भी याद करते हैं। पाकिस्तानी सेना के जनरल आमिर अब्दुल्ला खान नियाजी सहित आठ उच्च सैन्य अधिकारियों को जबलपुर के कॉलेज ऑफ मटेरियल मैनेजमेंट के बैरक में 28 महीने तक युद्धबंदी के रूप में रखा गया था।
इसी युद्ध में मध्य भारत एरिया के अंतर्गत ग्रेनेडियर्स रेजिमेंटल सेंटर और जम्मू और कश्मीर रायफल्स रेजिमेंटल सेंटर के बहादुर सैनिकों ने शौर्य और अदम्य साहस दिखाया था। कॉलेज ऑफ मटेरियल मैनेजमेंट में वह बैरक आज भी है। कोई सैनिक यहां से गुजरता है, तो उसकी निगाह उस बैरक पर पड़ती है।