Chhattisgarh Rajyotsav Begin: छत्तीसगढ़ राज्य का गठन 1 नवंबर 2000 को हुआ, जब इसे मध्यप्रदेश से अलग कर भारत का 26वां राज्य बनाया गया।
CG Rajyotsav: छत्तीसगढ़ के रायपुर में 1 नवंबर को छत्तीसगढ़ अपनी स्थापना की रजत जयंती मनाई गई। इसे देखते हुए राज्योत्सव को भी अनूठे अंदाज में मनाया गया। इसके लिए नवा रायपुर में बनाए गए डोम में प्रदेश की विकास गाथा देखने को मिली। राज्य के सभी विभागों के डोम प्रदर्शनी के लिए तैयार किए गए। हर डोम को अलग थीम में डिजाइन किया गया।
छत्तीसगढ़ राज्य का गठन 1 नवंबर 2000 को हुआ, जब इसे मध्यप्रदेश से अलग कर भारत का 26वां राज्य बनाया गया। यह ऐतिहासिक निर्णय लंबे समय से चली आ रही जनभावनाओं और आंदोलनों का परिणाम था। छत्तीसगढ़ की जनता लंबे समय से अपने क्षेत्र की विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान, प्राकृतिक संसाधनों और आदिवासी समाज के अधिकारों को मान्यता दिलाने की मांग कर रही थी।
राज्य गठन का मुख्य उद्देश्य था कि इस क्षेत्र को स्वतंत्र प्रशासनिक इकाई का दर्जा मिल सके, ताकि यहां की जनता अपनी जरूरतों, संस्कृति और विकास की प्राथमिकताओं के अनुरूप नीतियां बना सके। इस प्रकार 1 नवंबर 2000 का दिन छत्तीसगढ़ के इतिहास में एक नई शुरुआत और स्वाभिमान का प्रतीक बन गया।
छत्तीसगढ़ राज्य के गठन के बाद प्रदेश की सांस्कृतिक विरासत और गौरव को सम्मान देने के उद्देश्य से 1 नवंबर 2001 से “छत्तीसगढ़ राज्योत्सव” मनाने की परंपरा आरंभ की गई। यह उत्सव हर वर्ष 1 से 7 नवंबर तक पूरे प्रदेश में हर्षोल्लास और उत्साह के साथ मनाया जाता है। राज्योत्सव न केवल स्थापना दिवस का प्रतीक है, बल्कि यह छत्तीसगढ़ की संस्कृति, लोककला, परंपरा और विकास यात्रा का उत्सव बन चुका है।
इसका मुख्य आयोजन राजधानी रायपुर, विशेष रूप से नवा रायपुर अटल नगर में किया गया, जहाँ भव्य समारोह, सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ और प्रदर्शनियाँ आयोजित हुईं। इसके साथ ही हर साल की तरह इस साल भी प्रदेश के सभी जिलों में स्थानीय स्तर पर भी राज्योत्सव के कार्यक्रम आयोजित किए गए, जिनमें क्षेत्रीय कलाकारों, किसानों, उद्यमियों और नागरिकों की सक्रिय भागीदारी रहीं।
छत्तीसगढ़ राज्योत्सव मनाने का मुख्य उद्देश्य राज्य की स्थापना दिवस का उत्सव मनाते हुए प्रदेश की संस्कृति, कला, परंपरा, संगीत और लोकजीवन को प्रदर्शित करना है। यह उत्सव प्रदेश के लोगों में गौरव और एकता की भावना को सशक्त करता है। राज्योत्सव के माध्यम से स्थानीय कलाकारों, उद्यमियों और किसानों को एक साझा मंच प्रदान किया जाता है, जहाँ वे अपनी प्रतिभा और उत्पादों को प्रदर्शित कर सकते हैं।
बताते चलें कि यह आयोजन प्रदेश के विकास की उपलब्धियों, नई योजनाओं और सरकारी पहल को जनता के बीच प्रस्तुत करने का भी माध्यम बनता है। राज्योत्सव का सबसे बड़ा संदेश यही है- “गर्व से कहो हम छत्तीसगढ़िया हैं”, जो हर नागरिक में अपने राज्य के प्रति प्रेम, सम्मान और आत्मगौरव की भावना जगाता है।
छत्तीसगढ़ राज्योत्सव मेला अपनी विविधता और सांस्कृतिक रंगों के लिए प्रसिद्ध है। मेले में सबसे पहले सांस्कृतिक कार्यक्रम विशेष आकर्षण का केंद्र होते हैं, जिनमें प्रदेश के पारंपरिक लोकनृत्य जैसे पंथी, करमा, राउत नाचा, सुआ, दीवारी आदि मंचित किए जाते हैं। इसके साथ ही प्रदेश और देश के प्रसिद्ध कलाकारों की प्रस्तुतियाँ शाम की सांस्कृतिक संध्याओं में देखने को मिलती हैं, जहाँ छत्तीसगढ़ी गीत-संगीत, नाटक और लोककला की झलक दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देती है।
मेले का दूसरा प्रमुख आकर्षण है हस्तशिल्प और हस्तकला प्रदर्शनी, जिसमें छत्तीसगढ़ की प्रसिद्ध ढोकरा कला (बेलमेटल), टेरीकोटा, बांस उत्पाद, कांसा बर्तन और कोसा सिल्क वस्त्र उद्योग की झलक देखने को मिलती है। इस प्रदर्शनी से स्थानीय कारीगरों को अपने उत्पाद प्रदर्शित करने और बेचने का अवसर मिलता है।
वहीं, मेले में लगने वाले छत्तीसगढ़ी व्यंजन स्टॉल लोगों के स्वाद का केंद्र होते हैं, जहाँ फरा, चीला, ठेठरी, खुरमी, देहरौरी, अंगाकर रोटी और बोरे बासी जैसे पारंपरिक व्यंजन परोसे जाते हैं। यहाँ राज्य के सभी जिलों के खास व्यंजन एक ही स्थान पर मिलने से यह मेला छत्तीसगढ़ की संस्कृति, स्वाद और सृजनशीलता का जीवंत संगम बन जाता है
राज्योत्सव मेले का एक महत्वपूर्ण भाग कृषि, उद्योग और पर्यटन प्रदर्शनी होती है, जहाँ राज्य सरकार की नई योजनाओं और विकासात्मक पहलों की झलक देखने को मिलती है। इस प्रदर्शनी में आधुनिक कृषि तकनीक, जैविक खेती, सिंचाई पद्धतियों और नवीन उपकरणों की जानकारी किसानों को दी जाती है, जिससे वे अपने उत्पादन को और बेहतर बना सकें।
साथ ही, प्रदेश के उभरते उद्योगों और हस्तशिल्प इकाइयों को भी अपने उत्पाद और नवाचार प्रदर्शित करने का अवसर मिलता है। पर्यटन खंड में छत्तीसगढ़ के प्रमुख पर्यटन स्थलों, पुरातात्त्विक धरोहरों और प्राकृतिक सुंदरता को आकर्षक तरीके से प्रस्तुत किया जाता है, जिससे राज्य में पर्यटन को बढ़ावा मिले।
इस पूरे आयोजन का एक विशेष हिस्सा ‘छत्तीसगढ़ उत्पाद’ अभियान होता है, जिसके अंतर्गत स्थानीय वस्तुओं को ब्रांडिंग, विपणन और बिक्री के लिए मंच प्रदान किया जाता है, ताकि प्रदेश के छोटे उद्यमी और ग्रामीण उत्पादक आत्मनिर्भर बन सकें।
राज्योत्सव मेले की सबसे आकर्षक झलक इसकी सजावट और झाँकियाँ होती हैं, जो पूरे परिसर को छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक पहचान से जीवंत बना देती हैं। मेले स्थल को पूरी तरह छत्तीसगढ़ी थीम पर सजाया जाता है, जहाँ मिट्टी, बांस, बेलमेटल और लोककला के तत्वों से पारंपरिक माहौल तैयार किया जाता है। हर जिले की झाँकी उसकी विशिष्ट संस्कृति, परंपरा, लोकजीवन और विकास परियोजनाओं को प्रदर्शित करती है, जिससे पूरा प्रदेश एक ही मंच पर अपनी विविधता और प्रगति की कहानी कहता दिखाई देता है।
राजधानी नवा रायपुर के मेला मैदान में इस अवसर पर विशाल पंडाल, मंच और प्रदर्शनी हॉल बनाए जाते हैं, जहाँ दर्शक छत्तीसगढ़ के अतीत, वर्तमान और भविष्य का अद्भुत संगम देख पाते हैं। इन झाँकियों और सजावट के माध्यम से राज्योत्सव मेला न केवल एक उत्सव बल्कि छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक आत्मा का प्रतीक बन जाता है।
छत्तीसगढ़ राज्य के रजत जयंती वर्ष के अवसर पर नवा रायपुर राज्योत्सव मेला स्थल पर 1 से 5 नवंबर तक राज्योत्सव का भव्य आयोजन हो रहा है। महोत्सव में छत्तीसगढ़ की मिट्टी की महक लिए लोक कला और संस्कृति के मूर्धन्य कलाकारों को मंच पर प्रमुखता दी गई है। विशेष रूप से पद्मश्री से सम्मानित कलाकारों की प्रस्तुति आकर्षण का मुख्य केंद्र रहेगी।
वहीं मुख्य मंच के अतिरिक्त राज्योत्सव स्थल पर बने शिल्प ग्राम में भी करीब 1 हजार छत्तीसगढ़ी कलाकर अपनी अलग-अलग प्रस्तृति देंगे। कार्यक्रम प्रतिदिन 4 बजे से शुरू होगा।
1 नवंबर: पी.सी. लाल यादव (दूध मोंगरा गंडई), दुष्यंत हरमुख (रंग झरोखा), आरु साहू और चंद्रभूषण वर्मा (लोक मंच) और निर्मला ठाकुर (पुन्नी के चंदा) अपनी कला का प्रदर्शन करेंगे।
2 नवंबर: पद्मश्री डोमार सिंह अपनी प्रसिद्ध केवट नाचा की प्रस्तुति देंगे। उनके साथ सुनील तिवारी (रंग झार), जितेंद्र कुमार साहू (सोनहा बादर), और जयश्री नायर ( चिन्हारी द गर्ल्स बैंड ग्रुप) भी मंच पर होंगे।
3 नवंबर: इस दिन पद्मश्री उषा बारले द्वारा विश्व प्रसिद्ध पंडवानी का मंचन किया जाएगा। इसके अतिरिक्त राकेश शर्मा (सूफी गायन), महेंद्र चौहान एंड बैंड और तिलकराजा साहू (लोकधारा) की प्रस्तुति होगी।
4 नवंबर: कला केन्द्र रायपुर बैण्ड, रेखा देवार की लोकगीत, प्रकाश अवस्थी के लोकमंच की प्रस्तुति होगी।
5 नवंबर: पूनम विराट तिवारी रंग छत्तीसगढ़ की प्रस्तुति देंगी, जबकि इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ के कलाकार अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करेंगे।
1 नवंबर: हंसराज रघुवंशी
2 नवंबर : आदित्य नारायण
3 नवंबर: भूमि त्रिवेदी
4 नवंबर: अंकित तिवारी
5 नवंबर : कैलाश खेर
छत्तीसगढ़ राज्योत्सव केवल एक मेला नहीं, बल्कि यह पूरे प्रदेश की आत्मा, संस्कृति और विकास यात्रा का उत्सव है। यह आयोजन छत्तीसगढ़ की लोकसंस्कृति, परंपराओं, कला और लोगों की मेहनत का जीवंत प्रतीक बन चुका है। राज्योत्सव में “गांव से राजधानी तक” हर व्यक्ति की सहभागिता होती है चाहे वह कलाकार हो, किसान, उद्यमी या विद्यार्थी।
यह उत्सव सबको एक सूत्र में जोड़ता है और यह संदेश देता है कि छत्तीसगढ़ की असली शक्ति उसकी जनता और उसकी विविध सांस्कृतिक धरोहर में निहित है। राज्योत्सव के माध्यम से प्रदेश अपनी पहचान, गर्व और एकता को एक साथ मनाता है, जिससे हर छत्तीसगढ़िया अपने राज्य पर गर्व महसूस करता है।