-फोकस-दलित, मुस्लिम व ओबीसी नेता -संविधान प्रस्तावना से धर्मनिरपेक्ष व समाजवाद को लेकर विवाद
नई दिल्ली। बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले दो घटनाक्रमों में महागठबंधन अपना सियासी फायदा देख रहा है। इसमें आरएसएस और भाजपा नेताओं की ओर से संविधान की प्रस्तावना से धर्मनिरपेक्षता व समाजवाद शब्द हटाने और चुनाव आयोग का विशेष गहन पुनरीक्षण कार्यक्रम शामिल है। महागठबंधन ने दलित, ओबीसी और अल्पसंख्यक मतदाताओं पर फोकस कर इन दोनों मुद्दों को संविधान के खतरे से जोड़ दिया है। महागठबंधन में शामिल कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने इन दोनों मुद्दों को धार देते हुए संविधान बचाने का नरेटिव सेट करना शुरू कर दिया है।
दरअसल, बिहार में अगले कुछ महीनों में विधानसभा चुनाव होने हैं। जहां सभी दल इसकी तैयारियों में लगे हुए हैं। कांग्रेस, राजद, वामपंथी दल सत्ताधारी जेडीयू व भाजपा के गठबंधन को घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं। महागठबंधन का फोकस अपने कोर वोटर्स दलित, ओबीसी व अल्पसंख्यकों को एकजुट करने की रणनीति पर काम कर रहा है। इस बीच इस बीच आपातकाल लगने के 50 साल पूरे होने के कार्यक्रमों में संविधान की प्रस्तावना को लेकर विवाद छिड़ गया। इन कार्यक्रमों में आरएसएस के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले और कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने संविधान प्रस्तावना से धर्मनिरपेक्षता व समाजवाद शब्द को हटाने की मांग की। दोनों ने तर्क दिया कि इन शब्दों को आपातकाल के समय जोड़ा गया, जिनका मूल संविधान से कोई लेना देना नहीं है।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा कि आरएसएस व भाजपा का नकाब फिर से उतर गया। संविधान इन्हें चुभता है क्योंकि वो समानता, धर्मनिरपेक्षता और न्याय की बात करता है। इनको संविधान नहीं, मनुस्मृति चाहिए। ये बहुजनों और गऱीबों से उनके अधिकार छीनकर उन्हें दोबारा ग़ुलाम बनाना चाहते हैं। संविधान जैसा ताक़तवर हथियार उनसे छीनना इनका असली एजेंडा है। कई कांग्रेस नेताओं ने भाजपा के संविधान का पहला पेज सोशल मीडिया पर वायरल कर कहा कि भाजपा नेताओं को इन दो शब्दों को हटाने की मांग से पहले खुद की पार्टी का संविधान जरूर पढऩा चाहिए।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने रविवार को बिहार में पत्रकारों से कहा कि चुनाव आयोग एक पार्टी के समर्थन में निर्णय कर रहा है। सामान्य तौर पर आयोग सर्वदलीय बैठक बुलाकर निर्णय करता है। जिसमें समस्याओं का हल ढूंढ लिया जाता है। बिहार में आखिरी बार विशेष गहन पुनरीक्षण कार्यक्रम 2003 में हुआ था। यह घर-घर जाकर सर्वे था, जिसको पूरा होने में करीब 2 साल लगे थे। जबकि इस बार एक महीना दिया गया है। अभी बारिश चल रही है, ऐसे में अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों में कोई जा ही नहीं सकता। ये बिलकुल भी व्यवहारिक नहीं है। जबकि राजद नेता तेजस्वी यादव ने इस प्रक्रिया को बिहार के गऱीबों के मतदान का अधिकार खत्म करने की भाजपा की साजिश बताया है।