आजकल राजनीति में दोषारोपण नीति खूब फल-फूल रही है। विभिन्न दलों के नेता खुलेआम एक-दूसरे पर दोषारोपण करते रहते हैं। ईवीएम तो एक इलेक्ट्रॉनिक मशीन है, जो सभी दलों के नेताओं के साथ समान व्यवहार करती है, किन्तु हारे हुए उम्मीदवारों की ओर से इसे बदनाम किया जाता है।
पाठकों की मिलीजुली प्रतिक्रियाएं मिलीं। पेश हैं चुनिंदा प्रतिक्रियाएं।
आजकल राजनीति में दोषारोपण नीति खूब फल-फूल रही है। विभिन्न दलों के नेता खुलेआम एक-दूसरे पर दोषारोपण करते रहते हैं। ईवीएम तो एक इलेक्ट्रॉनिक मशीन है, जो सभी दलों के नेताओं के साथ समान व्यवहार करती है, किन्तु हारे हुए उम्मीदवारों की ओर से इसे बदनाम किया जाता है। ईवीएम मशीन पर संदेह करने के बजाय हारे हुए प्रत्याशियों को स्वयं पर संदेह करना चाहिए और बेहतर विचारधारा व जनसेवा की ओर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
कुछ राजनीतिक दलों, नेताओं और कथित लोकतंत्र हितैषियों की ओर से अपनी हार का ठीकरा फोड़ने का सिलसिला ईवीएम पर जारी है। ये सभी मशीनों की विश्वसनीयता जीत के समय सही मानते हैं, लेकिन हारने पर उस पर सवाल उठाने लगते हैं। राजनीति में यह दोहरे चरित्र की वजह से बार-बार ईवीएम की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े किए जाते हैं।
चुनाव चाहे किसी भी प्रकार का हो, उसे सदैव कड़ी सुरक्षा व्यवस्था में करवाया जाना चाहिए, ताकि किसी को आरोप-प्रत्यारोप और आपत्ति लगाने का मौका ही न मिले। यदि चुनाव के दौरान कोई आपत्ति उठाई जाती है, तो उसका निराकरण शीघ्रता से किया जाना चाहिए।
अक्सर देखा जाता है कि चुनाव के नतीजे आने पर हारने वाली पार्टी ईवीएम पर सवाल खड़े करती है, ताकि वे जनता का ध्यान अपनी हार से हटा सकें। कई देशों में अभी भी बैलेट पेपर से चुनाव होते हैं, जिससे पार्टियां इसे एक विकल्प के रूप में पेश करती रहती हैं और ईवीएम पर सवाल उठाती हैं। हारी हुईं पार्टियां दावा करती हैं कि सत्ता पार्टी ईवीएम को हैक करके परिणाम अपने पक्ष में लाती है, जिससे ईवीएम की विश्वसनीयता को मुद्दा बनाया जाता है।
ईवीएम पर बार-बार प्रश्न उठाना लोकतंत्र के हित में नहीं है। इससे मतदाता के दिमाग में भी सवाल उठते हैं। ईवीएम को लेकर इस तरह की बातें नहीं होनी चाहिए।
कई विशेषज्ञ कह चुके हैं कि ईवीएम से कोई छेड़छाड़ नहीं की जा सकती है, लेकिन चुनाव हारने वाली विपक्षी पार्टियां जब मीडिया के सवालों का सामना करती हैं, तो सारा दोष ईवीएम पर डाल देती हैं। अगर चुनाव जीत जाती हैं, तो ईवीएम पर कोई सवाल नहीं उठता है। यह हार का ठीकरा फोड़ने का एक बहाना बन चुका है।
शासकीय मुलाजिम होने के नाते मुझे निर्वाचन की जिम्मेदारी निभाने का सौभाग्य कई बार प्राप्त हुआ है। लेकिन कभी भी ईवीएम की कार्यप्रणाली में कुछ भी संदेहजनक प्रतीत नहीं हुआ। अब तो वीवीपेट का उपयोग प्रारंभ हो चुका है, जिसमें वोट दिए गए प्रत्याशी के नाम की पर्ची स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। निर्वाचन कार्य के अनुभव के आधार पर कहा जा सकता है कि ईवीएम को हैक किया जाना असंभव है। इसकी विश्वसनीयता पर सवाल केवल पराजित पार्टियां राजनीतिक द्वेष के कारण उठाती हैं।
नेता हारने के बाद ही ईवीएम को दोष देते हैं। जब तक जीतते हैं, तब तक सब सही है। जैसे ही हारते हैं, ईवीएम दुश्मन बन जाती है। हकीकत यह है कि हार के अनेकों कारण होते हैं, लेकिन नेता सवालों से बचने के लिए हार का दोष ईवीएम पर मढ़ देते हैं। हारने वाले नेताओं के लिए यह एक परंपरा बन गई है। चुनाव से पहले तक सब कुछ ठीक रहता है और जैसे ही परिणाम आते हैं, ईवीएम पर सवाल उठने लगते हैं।
ईवीएम की विश्वसनीयता पर सवाल मुख्यतः पारदर्शिता की मांग और तकनीकी चिंताओं के कारण उठते हैं। कई राजनीतिक दल इसे अपनी हार का कारण बताकर जनता में भ्रम फैलाते हैं। हालांकि, चुनाव आयोग ने बार-बार ईवीएम की सुरक्षा, सटीकता और निष्पक्षता को साबित किया है। ईवीएम में गड़बड़ी की आशंकाएं तब बढ़ती हैं जब प्रक्रिया की पूरी जानकारी लोगों तक नहीं पहुंचती। समाधान के लिए तकनीकी उन्नयन, वीवीपेट का उपयोग और मतदाता शिक्षा को प्राथमिकता देनी चाहिए।