CG News: पद्मश्री डॉ. सुरेंद्र दुबे छत्तीसगढ़ के एकमात्र ऐसे कवि थे, जिन्होंने छत्तीसगढ़ की अस्मिता को अंतरराष्ट्रीय क्षितिज पर पहचान दिलाई।
CG News: पद्मश्री डॉ. सुरेंद्र दुबे छत्तीसगढ़ के एकमात्र ऐसे कवि थे, जिन्होंने छत्तीसगढ़ की अस्मिता को अंतरराष्ट्रीय क्षितिज पर पहचान दिलाई। हिंदी कविता के साथ छत्तीसगढ़ी शब्दों को जादूगरी से ढालकर वे इस तरह प्रस्तुत करते थे, जिससे छत्तीसगढ़ की गौरवशाली संस्कृतिक से लोग परिचित हो सकें। उनकी लोकप्रियता से जलते-कुढ़ने और आलोचना करने वाले भी कम नहीं थे, लेकिन दुबेजी इन से दूर अनजान बने रहते और प्रतिक्रिया स्वरूप कहते कि आलोचना करने वाले अपनी औकात तक ही तो बुराई कर सकते हैं।
अर्थात सके व्यापकत्व तक तो उनकी पहुंच हो ही नहीं सकती। वे छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के स्थापना काल से सचिव के पद पर रहे। पद्मश्री श्यामलाल चतुर्वेदी, पं. दानेश्वर शर्मा के बाद आयोग के मेरे अध्यक्ष काल में भी पं. दुबे ने सचिव के दायित्व का बखूबी निर्वाह किया । एक दिन मैं अचानक उनके चैम्बर में गया तो उन्होंने कहा - ’मुझे आप बुला लेते।’ फिर इन्होंने अपनी कुर्सी मुझे दी। मैंने कहा- यह आपकी कुर्सी है।
इस पर उन्होंने वैसी ही दूसरी कुर्सी बुलाकर मुझे उसमें आसीन कराया। उनकी यह उदारता जीवन-पर्यंत बनी रही। छत्तीसगढ़ लोकसेवा आयोग में छत्तीसगढ़ी को लेकर पाठ्यक्रमों के निर्माण में उनका सहयोग। छत्तीसगढ़ से संदर्भित ग्रंथों के साथ साहित्य का प्रकाशन उनके ही सचिव कार्यकाल के सर्वाधिक हुआ। 31 अगस्त 2018 को उनकी सेवानिवृति मेरी ही अध्यक्षता में हुई और इसके पूर्व इन्हें पंडित सुंदरलाल शर्मा सम्मान भी प्रदान किया गया। छत्तीसगढ़ को इस विभूति का अनायास बिछोह हृदय-विदारक ही कहा जाएगा।
डॉ. विनय कुमार पाठक, पूर्व अध्यक्ष, छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग एवं कुलपति थावे विद्यापीठ गोपालगंज, बिहार