रायपुर

Nakta Temple: छत्तीसगढ़ के अधूरा चमत्कार, जानें नकटा विष्णु मंदिर की कहानी…

Nakta Temple: छत्तीसगढ़ के मध्य में स्थित जांजगीर-चाम्पा जिला न केवल कृषि और सिंचाई के क्षेत्र में महत्वपूर्ण है, बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से भी बेहद समृद्ध है।

3 min read
Jul 18, 2025
छत्तीसगढ़ के अधूरा चमत्कार(photo-patrika)

Nakta Temple: छत्तीसगढ़ के मध्य में स्थित जांजगीर-चाम्पा जिला न केवल कृषि और सिंचाई के क्षेत्र में महत्वपूर्ण है, बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से भी बेहद समृद्ध है। हसदेव नदी के किनारे बसा यह जिला हसदेव परियोजना के माध्यम से सिंचित भूमि और प्राकृतिक सौंदर्य के लिए जाना जाता है। यहां अनेक दर्शनीय स्थल हैं, जिनमें प्राकृतिक दृश्यावली के साथ-साथ प्राचीन धार्मिक और स्थापत्य धरोहरें भी शामिल हैं।

इन्हीं धरोहरों में से एक है जांजगीर नैला में स्थित भगवान विष्णु का मंदिर, जो अपनी अधूरी बनावट के कारण विशेष पहचान रखता है। यह मंदिर जांजगीर नैला रेलवे स्टेशन से लगभग चार किलोमीटर दूर, प्रसिद्ध भीमतालाब के समीप स्थित है। पत्थरों से निर्मित यह भव्य मंदिर वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसे नागर शैली में निर्मित किया गया है। मंदिर का पूरा ढांचा बलुआ पत्थर से बना है और इसके प्रवेश द्वार पर की गई बारीक नक्काशी इसकी शिल्पकला की खूबसूरती को दर्शाती है।

ये भी पढ़ें

छत्तीसगढ़ का गढ़ा दाई मंदिर! गुफा से आती रहस्यमयी आवाजें, जानिए क्या है इसकी वजह…

Nakta Temple: सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहरों से समृद्ध जांजगीर-चाम्पा

मंदिर के चारों ओर हरे-भरे बगीचे इसकी सुंदरता में और इजाफा करते हैं। हालांकि, इस मंदिर का निर्माण कार्य कभी पूर्ण नहीं हो सका और आज भी यह अधूरा है, जिससे इसे स्थानीय लोग ‘नकटा मंदिर’ के नाम से जानते हैं। इसकी एक विशेष बात यह भी है कि इसके गर्भगृह में किसी भी देवी-देवता की मूर्ति स्थापित नहीं है। यह मंदिर इतिहास, रहस्य और स्थापत्य का ऐसा अनूठा संगम है, जो आज भी अपने अधूरेपन में आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।

भगवान विष्णु को समर्पित जांजगीर का यह प्राचीन मंदिर छत्तीसगढ़ की स्थापत्य कला का एक अद्भुत उदाहरण है, जिसे पूरी तरह बलुआ पत्थर से नागर शैली में निर्मित किया गया है। मंदिर के प्रवेश द्वार पर की गई बारीक और आकर्षक कारीगरी इसकी शिल्प-संपन्नता को दर्शाती है, वहीं इसके चारों ओर फैला हुआ बगीचा इसकी सुंदरता को और भी बढ़ा देता है। हालांकि इस भव्य संरचना के गर्भगृह में आज तक किसी देवी-देवता की प्रतिमा स्थापित नहीं की गई है, जिससे इसे ‘नकटा मंदिर’ के नाम से जाना जाता है।

क्या है इस मंदिर की विशेषता?

इस मंदिर को देखकर सबसे पहली बात जो ध्यान खींचती है, वह है इसकी अधूरी बनावट। ऐसा माना जाता है कि यह मंदिर कभी पूरा नहीं हो सका और वर्षों से यही इसकी पहचान बन चुकी है।

मंदिर को नागर शैली में तैयार किया गया है।

इसका निर्माण बलुआ पत्थर से हुआ है, जिसमें बारीक नक्काशी की गई है।

मंदिर के मुख्य द्वार पर सुंदर कारीगरी दिखाई देती है और चारों ओर हरा-भरा बगीचा है।

लेकिन मंदिर के गर्भगृह में कोई प्रतिमा नहीं है — यह आज भी खाली है, जैसे किसी प्रतीक्षा में हो।

इस अधूरे मंदिर की खूबसूरती और रहस्य इसे खास बनाते हैं।

ऐतिहासिक मान्यताओं के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में कल्चुरी वंश के राजा जाज्वल्य देव प्रथम द्वारा भीमा तालाब के किनारे कराया गया था। यह मंदिर न केवल पूर्वाभिमुखी है, बल्कि इसे 'सप्तरथ' योजना के तहत निर्मित किया गया है, जिसमें सात रथाकार projections (अभिलक्षण) शामिल होते हैं।

इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसका शिखर कभी निर्मित नहीं हो सका, और आज केवल शिखरहीन विमान ही शेष है। गर्भगृह के दोनों ओर दो सुंदर कलात्मक स्तंभ स्थित हैं, जो इस बात की ओर संकेत करते हैं कि कभी यहां भव्य महामंडप भी रहा होगा, परंतु अब उसके केवल अवशेष ही रह गए हैं।

हसदेव नदी की गोद में बसा प्रमुख जिला

मंदिर की बाहरी दीवारों पर बनी मूर्तियां इसकी मूर्तिकला की समृद्धि को दर्शाती हैं। इनमें त्रिमूर्ति – ब्रह्मा, विष्णु और महेश – की मूर्तियां प्रमुख हैं, जिनमें भगवान विष्णु की एक मूर्ति गरुड़ पर आरूढ़ अवस्था में स्थापित है। मंदिर के पीछे की दीवार पर सूर्य देव की मूर्ति अंकित है, जिसमें रथ और उसमें जुते सात घोड़े स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं, हालांकि मूर्ति का एक हाथ टूटा हुआ है। मंदिर की निचली दीवारों में श्रीकृष्ण लीला से संबंधित कई चित्र उत्कीर्ण हैं, जिनमें वासुदेव कृष्ण को दोनों हाथों से सिर के ऊपर उठाए हुए गतिमान मुद्रा में दिखाया गया है।

इस प्रकार की अन्य कई मूर्तियां भी दीवारों पर नजर आती हैं। ऐतिहासिक और स्थापत्य विश्लेषण से ऐसा प्रतीत होता है कि किसी समय इस मंदिर पर आकाशीय बिजली गिरने से यह आंशिक रूप से ध्वस्त हो गया था, जिससे अनेक मूर्तियां बिखर गईं। बाद में मरम्मत के दौरान इन मूर्तियों को पुनः दीवारों में जोड़ दिया गया, जिससे यह मंदिर आज भी एक ऐतिहासिक धरोहर के रूप में अपनी अद्वितीय पहचान बनाए हुए है।

Updated on:
18 Jul 2025 05:41 pm
Published on:
18 Jul 2025 05:40 pm
Also Read
View All

अगली खबर