रायपुर

दिमाग खराब या सिस्टम? मनोरोग वार्ड बना ‘VIP रेस्ट हाउस, डॉक्टरों ने हाई प्रोफाइल कैदी को मनमर्जी से 31 दिन तक रखा भर्ती…

CG News: रायपुर में डॉक्टरों की मेहरबानी से हाई प्रोफाइल कैदियों को एक माह तक साइकेट्री विभाग में भर्ती करके उनका ‘दिमाग’ ठीक (मानसिक इलाज) किया गया।

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Nov 08, 2025
दिमाग खराब या सिस्टम? मनोरोग वार्ड बना 'VIP रेस्ट हाउस(photo-patrika)

CG News: छत्तीसगढ़ के रायपुर में डॉक्टरों की मेहरबानी से हाई प्रोफाइल कैदियों को एक माह तक साइकेट्री विभाग में भर्ती करके उनका ‘दिमाग’ ठीक (मानसिक इलाज) किया गया। जबकि अस्पताल के अधिकारियों का कहना है कि किसी कैदी को इतने लंबे समय तक भर्ती नहीं किया जा सकता।

यही नहीं ये आरोपी मेडिसिन विभाग में भी 10 दिनों तक भर्ती रहे। ये आरोपी एक से दूसरे वार्ड में लगातार 65 दिनों तक बंद रहे। इन्हें बीमारी के बहाने से एक से दूसरे वार्ड में शिफ्ट किया जाता रहा। यही नहीं प्रबंधन को भी पैसे देकर मैनेज करने का प्रयास किया गया।

CG News: बीमारी का बहाना बनाकर वार्ड बदलते रहे

डॉक्टरों के अनुसार कैदी डिप्रेशन में रहते हैं और उन्हें सुसाइड का ख्याल आता रहता है। ऐसे में निश्चित ही साइकेट्रिस्ट की जरूरत पड़ती है। ऐसे मामलों में मरीज को भर्ती नहीं किया जाता, बल्कि दवाइयां देकर इलाज किया जाता है। लेकिन साइकेट्री विभाग ने सारे नियमों को ताक पर रखते हुए एक माह से ज्यादा समय तक इन्हें भर्ती कर इलाज किया गया।

रावतपुरा सरकार निजी मेडिकल कॉलेज के डायरेक्टर अतुल तिवारी व गीतांजलि यूनिवर्सिटी उदयपुर (राजस्थान) के रजिस्ट्रार मयूर रावल दो माह से ज्यादा समय तक अस्पताल में भर्ती रहे। वहीं, रीएजेंट घोटाले के आरोपी व मोक्षित कॉर्पोरेशन के डायरेक्टर शशांक चोपड़ा ने 5 दिनों तक अस्पताल में इलाज करवाया।

पत्रिका की पड़ताल में पता चला है कि साइकेट्री विभाग ने न अस्पताल अधीक्षक कार्यालय को जानकारी दी और न ही जिला मेडिकल बोर्ड को। जबकि 10 दिनों से ज्यादा दिन तक भर्ती करने के लिए जिला मेडिकल बोर्ड व एक माह से ज्यादा के लिए राज्य मेडिकल बोर्ड को सूचना देनी जरूरी है। बोर्ड ही तय करता है कि कैदियों को आगे इलाज के लिए भर्ती किया जाना है या नहीं।

मेडिकल बोर्ड भी रस्म निभा रहा, टालते हैं बैठकें

इस हाईप्रोफाइल केस में विभागों ने मेडिकल बोर्ड को सूचना ही नहीं दी, लेकिन जिन केसों में सूचना दी जाती है, उसमें भी बैठकें जानबूझकर टाल दी जाती हैं। पत्रिका को जानकारों ने बताया कि ऐसे मामलों में बोर्ड की मीटिंग टाल दी जाती है, जिससे कैदियों का इलाज चलता रहे। इसमें बोर्ड व डॉक्टरों की मिलीभगत होती है। जानकारों के अनुसार रिपोर्ट भी बदल दी जाती है, जिससे कैदियों को बीमार बताया जा सके। ताकि जांच होने पर फंसने की गुंजाइश ही न रहे।

इनकम टैक्स कमिश्नर के बेटे को 31 दिन भर्ती रखा

एक अन्य मामले में साइकेट्री विभाग ने इनकम टैक्स कमिश्नर के बेटे को 31 दिनों तक भर्ती रखा। जबकि उन्हें केवल तीन दिनों तक भर्ती रखा जाना था। शराब घोटाले का आरोपी अनवर ढेबर भी लंबे समय तक आईसीयू व प्राइवेट वार्ड में भर्ती रहा। कोल घोटाले के आरोपी संजय अग्रवाल का भी जेल से अस्पताल आना-जाना लगा रहा। ऐसे कई मामले आए हैं, जब कैदियों के इलाज में डॉक्टर निशाने पर आए हैं। इस बार मामला ज्यादा सुर्खियों में है।

Published on:
08 Nov 2025 10:44 am
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