राजनंदगांव

Water Crisis: भूजल स्तर चिंताजनक! जल रक्षा अभियान चलाने की नौबत, सिंचाई के लिए नहीं बचा एक बूंद पानी

Water Crisis: कुएं, पोखर, तालाब पट गए हैं। हैंडपंप भी जमींदोज हो चुके हैं। यही वजह है कि शहर से लेकर गांव तक पेयजल संकट का भयावह नजारा देखने को मिल रहा है।

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सूख रही धरती की कोख (Photo-Patrika)

Water Crisis: अभी तो मई-जून की गर्मी बची हुई है और फरवरी-मार्च माह से ही जिले में पानी को लेकर हाहाकार मचा हुआ है। नदी, नाले सूख गए हैं और प्यास बुझाने के लिए बैराज में स्टोरेज पानी का सहारा लेना पड़ रहा है। सिंचाई के लिए तो एक बूंद पानी नहीं बचा है। पहली बार गर्मी के शुरुआती दौर में बोर फेल हो गए हैं। वाटर लेवल 200 से 300 मीटर नीचे चला गया है।

Water Crisis: जल रक्षा अभियान चलाने की नौबत

दूसरी ओर पेयजल के पुराने स्रोतों की उपेक्षा भी भारी पड़ रही है। स्थिति यह है कि भूजल संरक्षण की दिशा में गंभीरता से काम नहीं हुआ तो मजबूर होकर पलायन की नौबत भी आ सकती है। कुएं, पोखर, तालाब पट गए हैं। हैंडपंप भी जमींदोज हो चुके हैं। यही वजह है कि शहर से लेकर गांव तक पेयजल संकट का भयावह नजारा देखने को मिल रहा है।

स्थिति है कि प्रशासन को जल रक्षा अभियान चलाने की नौबत आ गई है। केन्द्रीय भूजल सर्वेक्षण टीम की रिपोर्ट के अनुसार सेमी क्रिटिकल जोन में राजनांदगांव, डोंगरगांव और डोंगरगढ़ ब्लॉक हैं। वाटर हार्वेस्टिंग का दावा केवल कागजों में हो रहा है। जब बारिश के पानी को सहेजेंगे नहीं तो फिर भूजल रिसोर्स कहां से आएगा।

206 हैंडपंप बंद पड़े हैं

2935 हेक्टेयर में फसल खराब

4825 प्रभावित किसान

छुरिया ब्लॉक सेमी क्रिटिकल जोन से 2 से 3 प्रतिशत दूर है। हालांकि यहां कि स्थिति भी ठीक नहीं है। सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड की रिपोर्ट बताती है कि तीनों ब्लॉक में भूजल का 70 प्रतिशत उपयोग हो चुका है। दोहन ऐसा ही होता रहा तो 1200 से 1300 फीट में भी पानी नहीं मिलेगा।

जिले के भानपुरी, मुसरा क्षेत्र में तो भूजल के लिए 1200 फीट तक खनन करने की नौबत आ गई है। पीएचई के अनुसार जिले के अलग-अलग क्षेत्रों में 200 से 300 फीट तक पानी की उपलब्धता हो जाती थी पर अंधाधुन दोहन से लेवल डाउन हुआ है।

भूजल का इस्तेमाल

85% सिंचाई में

12%घरेलू उपयोग

3% उद्योगों में

इसलिए स्थिति खराब हुई

Water Crisis: पर्यावरणविद प्रोफेसर ओंकार लाल श्रीवास्तव का कहना है कि नदी, नालों के पानी से पहले सिंचाई होती थी। अधिक उत्पादन के फेर में किसान अब बोर खनन करा रहे हैं। सिंचाई के लिए बोरवेल का इस्तेमाल बढ़ा है। बड़े रकबों में तो 24 घंटे बोर चलने की वजह से भूजल स्तर नीचे गया है। अब तो मकान बनाने से पहले लोग बोर खनन जरूर कराते हैं। एक कॉलोनी में 40 से 50 बोर मिल जाएंगे। ऐसे में भूजल का स्तर डाउन होना तय है। दूसरी ओर वाटर हार्वेस्टिंग केवल कागजों में हो रहा है।

भूजल स्तर सुधारने यह जरूरी

गांव-गांव में डबरी निर्माण, तालाबों का गहरीकरण

बंद हो चुके बोरवेल को रिचार्ज करने की पहल

ग्रीष्मकाल में कम पानी की खपत वाली फसल

पुराने जल स्रोतों का संरक्षण ताकि उपयोगी हों

वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम की अनिवार्यता

पहाड़ी क्षेत्र में बरसाती पानी को स्टोरेज करना

उद्योगों से निकलने वाले पानी का ट्रीटमेंट जरूरी

समीर शर्मा, ईई पीएचई: भूजल का दोहन अधिक हो रहा है। इसलिए ग्राउंड वाटर लेवल डाउन होने लगा है। यह चिंताजनक स्थिति है। हैंडपंप भी फेल हो चुके हैं।

Updated on:
18 Apr 2025 10:25 am
Published on:
18 Apr 2025 10:24 am
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