राजसमंद

136 साल पहले मजदूर आंदोलन से तय हुए थे काम के 8 घंटे, पहले 15-15 घंटे लेते थे काम

अंतरराष्ट्रीय मज़दूर दिवस विशेष : आजादी के बाद भी जमीनी स्तर पर ज्यादा नहीं बदली मजदूर वर्ग की तकदीर

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नाथद्वारा. ठेले पर सामान लादकर ले जाता मेहनतकश

देवगढ़. आज 1 मई है। इसे अंतरराष्ट्रीय मज़दूर दिवस यानि इंटरनेशनल लेबर-डे के रूप में मनाया जाता है। अंतरराष्ट्रीय श्रमिक दिवस या फिर वर्कर्स डे भी कहा जाता है। यह दिन कई देशों में मनाया जाता है और मजदूरों के आंदोलन के संघर्षों और बलिदानों को इस मौके पर याद किया जाता है। हर वर्ष 1 मई को मजदूर दिवस उन लोगों का दिन है, जो पूरा दिन या रातभर अपने काम में खून-पसीना तक बहा देते हैं और अपने परिवार का पेट भरने के साथ-साथ देश तथा दुनिया के विकास में अपनी खास भूमिका अदा करते हैं।

ऐसे हुई मजदूर दिवस की शुरुआत

इतिहास के पन्नों पर नजर डालें तो 136 साल पहले अमरीका के शिकागो में श्रमिकों का एक प्रदर्शन उग्र हो गया। प्रदर्शनकारियों ने 4 मई को पुलिस को निशाना बनाकर बम फेंका। पुलिस की जवाबी फायरिंग में 4 मजदूरों की मौत हो गई थी और करीब 100 मजदूर घायल हो गए। आंदोलन चलता रहा। 1889 में जब पेरिस में इंटरनेशनल सोशलिस्ट कॉन्फ्रेंस हुई तो एक मई को इसे मजदूरों को समर्पित करने का फैसला किया। धीरे-धीरे पूरी दुनिया में एक मई को मजदूर दिवस या कामगार दिवस के रूप में मनाने की शुरुआत हुई। आज अगर कर्मचारियों के लिए दिन में काम के अधिकतम 8 घंटे तय हैं तो वह शिकागो की आंदोलन की ही देन है। हफ्ते में एक दिन छुट्टी की शुरुआत भी इसके बाद ही हुई। दुनिया के कई देशों में एक मई को राष्ट्रीय अवकाश के तौर पर मनाया जाता है।

भीम में 32 वर्ष पूर्व हुई थी मज़दूर-किसान शक्ति संगठन की स्थापना

भीम विधानसभा क्षेत्र में लगभग 32 साल पहले 1 मई, 1990 को राजस्थान के कई मजदूर और किसान पाटिया का चौड़ा पर एकत्रित हुए। इसी दिन मज़दूर किसान-शक्ति संगठन की औपचारिक स्थापना हुई। राजस्थान के इस मगरा क्षेत्र में रहने वाले मजदूरों के लिए तभी से इस दिन का खास महत्व है। ये सभी हर वर्ष अपनी एकजुटता दिखाने के लिए यहां एकत्रित होते हैं और शपथ लेते हैं कि आम आदमी के हितों से जुड़े मुद्दों पर मिलकर संघर्ष करेंगे।

देश के निर्माण में मजदूरों का अनथक योगदान

किसी भी देश, समाज, संस्था में मजदूरों तथा कर्मचारियों की भूमिका को अहम माना जाता है। मजदूरों की मेहनत से दुनिया के हर देश ने हर क्षेत्र में विकास किया है। एमकेएसएस से जुड़े कार्यकर्ता बताते हैं कि चाहे आजादी के कई वर्षों के बाद आज के दिन अलग-अलग समय की हुकूमतों के नेताओं ने यह दावे किए कि मजदूर के हितों की रखवाली की जाएगी और उन्होंने बड़े स्तर पर काम किया है या किया जा रहा है, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि मजदूर की अभी भी तकदीर ज्यादा बदली नहीं है।

Updated on:
01 May 2024 11:52 am
Published on:
01 May 2024 11:46 am
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