राजसमंद

अनूठी पहचान: इस मंदिर में घी या तेल से नहीं, नदी के पानी से जलता है दीपक; यहीं से अकबर ने छोड़ा था मेवाड़

Rajsamand temple: इस मंदिर का इतिहास भी बहुत पुराना है, कई मान्यताएं इससे जुड़ी हुई है। मंदिर चारों ओर जल से घिरा है।

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Oct 08, 2024

राजसमंद।जिले के रेलमगरा उपखण्ड में एक गांव हैं सांसेरा। यहां पर जलदेवी मंदिर स्थित है। इस मंदिर का इतिहास भी बहुत पुराना है, कई मान्यताएं इससे जुड़ी हुई है। मंदिर चारों ओर जल से घिरा है।

यहां का प्राकृतिक सौंदर्य लोगों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करता है। लोगों की आस्था इतनी है कि छह इंच के पानी में भक्त माता के दर्शन करने यहां पहुंचते हैं। इस मंदिर में नवरात्रों पर तो भारी भीड़ रहती है। लेकिन यहां हर रविवार को पर्यटकों की भी खूब आवाजाही है।

ऐसे में ये धार्मिक स्थल प्रदेश में अपनी अनूठी पहचान रखता है। मां के दर्शन के लिए पाथवे बनाया हुआ है और दोनों और रैलिंग भी है। मूल रूप से माता तो जल में विराजित हैं। उनकी छवि उपर बनी छतरी पर उकेरी गई है। ग्रामीणों व इतिहासकारों की मानें तो ये तालाब 1300 बीघा में फैला हुआ है।

केवल दो बार ही हो पाए दर्शन

प्रजापत ने बताया कि जल में विराजित मां जलदेवी की प्रतिमा के दर्शन हो पाना बेहद ही मुश्किल है। उन्होंने बताया कि अपने जीवनकाल में केवल दो बार ही माता के दर्शन हुए हैं। दो बार तालाब का पानी कम हुआ तो मां ने दर्शन दिए। उसके बाद से कभी नहीं हो पाए।

साल में एक बार पानी से दीपक जलता है

यहां मांसास और बहू के रूप में बिराजमान है। छोटी नवरात्रि को यहां तीन दिन का मेला भरता है। लोगों का कहना है कि यहां साल में एक बार पानी का दीपक जलता है। मां की महर ऐसी है कि अकाल में भी तालाब कभी सूखता नहीं है। मंदिर का इतिहास आस्था और प्रकृति का अनूठा संगम है। ग्रामीणों का दावा है कि यहां किसी जमाने में पानी से भरा दीपक जलता था यहां पर नवरात्रि में पानी से जलने वाले दीपक के दर्शन की आस्था में हजारों श्रद्धालु यहां आते हैं।

इन मार्गों से पहुंच सकते हैं मंदिर

अगर आप उदयपुर से यहां आना चाहते हैं, तो फतहनगर और दरीबा होकर आ सकते हैं। राजसमंद होकर आना चाहें तो रेलमगरा और दरीबा से सांसेरा जाना होगा। चित्तौडगढ़ से आने वालों को कपासन, भूपालसागर होते हुए दरीबा और फिर सांसेरा।

12 माह जलती है अखण्ड जोत

मंदिर कीसेवा करने वाले लोगों ने बताया कि यहां पर अखण्ड जोत जलती है। ये जोत 12 माह लगातार निर्बाध जलती रहती है। ये मां की ही कृपा है। उन्होंने बताया कि यहां भाव के साथ जो भी व्यक्ति यहां आता है। मां उसके सभी काम सफल करती है।

यहीं से अकबर ने छोड़ा था मेवाड़

इतिहाकारोंव लोगों का कहना है कि हल्दीघाटी के युद्ध के बाद अकबर ने यहीं पर डेरा डाला था। चार चौकियां बनाई। मोही में स्थापित की चौकी का मोर्चा खुद अकबर ने संभाला।

ग्रामीणों का दावा है कि महाराणा प्रताप चित्तौड़गढ़ के दो साथियों के साथ यहां आए और सोते शत्रु पर वार करने की बजाय अकबर की मूंछ काटकर बाल पैर में रख दिए थे। सुबह हाथ में बंधी चिट्ठी और कटी मूंछ देख अकबर को मेवाड़ छोड़ जाना पड़ा।

इन मार्गों से पहुंच सकते हैं मंदिर

यहां के निवासी नागजी भाई प्रजापत ने बताया कि माता के मंदिर के चारों ओर पानी है। यहां आसन लगाकर मां विराजित है। ये मंदिर एक हजार वर्ष से भी पुराना बताया जा रहा है।

पानी के बीच सेतु और बीचों-बीच मां जलदेवी बिराजमान है। यहां मां के दो मंदिर हैं। एक सामने खड़ी प्रतिमा के रूप में और दूसरी जल में समाहित है। दोनों के बीच स्नेह की ऐसी डोर बंधी है। जिससे भक्त आस्था के साथ यहां खींचे चले आते हैं।

Updated on:
08 Oct 2024 02:16 pm
Published on:
08 Oct 2024 02:15 pm
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