रतलाम

अकर्मण्यता की रात्रि बीत चुकी, कर्मोंदय रूपी दिनकर के उदित होने का समय

देवउठनी एकादशी : पर्व भगवान नारायण के जागरण के साथ-साथ पूरे जगत के जागरण का उत्सव

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Nov 01, 2025

गेस्ट राइटर डॉ. खुशबू राठी साहित्यकार है।

रतलाम। तुलसी वृक्ष ना जानिये, गाय ना जानिये ढोर, गुरू मनुज ना जानिये, ये तीनों नंदकिशोर। तुलसी-विवाह के शुभ प्रसंग से आरंभ होता है भीष्म पंचक व्रत जो चातुर्मास समाप्ति का उद्घोष है। देवशयनी एकादशी से देवप्रबोधिनी एकादशी तक का समय चातुर्मास काल होता है। इस समय सभी मांगलिक कार्य वर्जित माने जाते हैं। श्रीहरि विष्णु के योगनिंद्रा से जाग्रत होने के कारण इसे देवोत्थान, देवउठनी या देवप्रबोधिनी के नाम से जाना जाता है।

घंटा, शंख, मृदंग आदि वाद्यों की मांगलिक ध्वनि के साथ प्रातःकाल की मंगल बेला में श्री हरि को उठाकर श्रद्धापूर्वक संकल्पित हो व्रती इसके प्रभाव से एक हजार अश्वमेध यज्ञों तथा सौ राजसूय यज्ञों का फल सहज ही प्राप्त कर लेता है। वास्तव में यह कार्तिकमास का सर्वश्रेष्ठ व्रत है। यह पर्व भगवान नारायण के जागरण के साथ-साथ पूरे जगत के जागरण का उत्सव है। वास्तव में यह इस बात की और संकेत हैं कि अकर्मण्यता की रात्रि बीत चुकी है और कर्मोंदय रूपी दिनकर के उदित होने का समय आ चुका है। अतः सभी अपने-अपने कर्तव्यों के प्रति जाग्रत हो तथा अपने आलस्य व प्रमाद को त्यागकर उत्साह से सामर्थ्य को जाग्रत कर परमपुरुषार्थ को पाने हेतु सद्कर्मों के मार्ग पर अग्रसर हो निर्बाध रूप से गतिशील बने।

तुलसी विवाह के रूप में भी मनाया जाता

कार्तिक शुक्ल एकादशी का यह दिन तुलसी विवाह के रूप में भी मनाया जाता है, जिसे देव दीपावली भी कहा जाता है। इस दिन पूजन के साथ यह कामना की जाती हैं कि घर में होने वाले मंगल कार्य निर्विघ्न संपन्न हों। शास्त्रों के अनुसार जिस घर में तुलसी होती है वह तीर्थ के समान है। शालीग्रामजी व बालमुकुंदजी की पूजा तुलसी के मूल में होती है जो मंजरीयुक्त तुलसी से श्री हरि का पूजन करते हैं वह मोक्षमार्ग को प्रशस्त करते हैं। तुलसी के बिना भगवन भोजन ग्रहण नहीं करते। रामचरितमानस के सुंदरकांड में स्पष्ट वर्णन है कि तुलसी को देखकर हर्षित होकर श्री हनुमानजी ने विभीषण से मिलने का मन बनाया।

ज्ञान परंपरा का आधार

वास्तव में तुलसी पूजन पर्यावरणीय चेतना व सजगता के साथ आरोग्यता का वरदान ही नहीं अपितु भारतीय संस्कृति का केन्द्रबिंदू व भारतीय ज्ञान परंपरा का आधार भी है, जो कि नेपाल से हमारे राजनैतिक संबंधों की सुदृढ़ता का भी केंद्र है।जो दोनों देशों को एक विशेष संबंध के सूत्रों के बंधन में बांधता है। भारतीय मनीषियों की आदर्शचिंतनधारा का दर्शन जो शरीर माध्यम खलु धर्मसाधनम् की विचारधारा को प्रत्यक्षता प्रदर्शित करवाने के लिए तुलसी विवाह की सुंदर प्रथा को जन्म देकर घर-घर में पहला सुख निरोगी काया का अध्ययन करवाते हैं।

Published on:
01 Nov 2025 12:37 am
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