Jitiya 2025 : जानिए जितिया व्रत की पौराणिक कथा और "ॐ नमो भगवते जीमूतवाहनाय नमः" मंत्र जाप करने का महत्व। कैसे करें सही उपाय ताकि संतान की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि बनी रहे।
Jitiya 2025 : भारतीय हिंदू परंपरा में जितिया व्रत को महत्वपूर्ण त्योहार माना जाता है। यह व्रत खासतौर पर माताएं अपने बच्चों की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए करती हैं। खासकर बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश के कई हिस्सों में यह व्रत बड़े उत्साह से मनाया जाता है।
जितिया व्रत में महिलाएं कठोर उपवास रखती हैं, बिना पानी और भोजन के पूरे दिन व्रत करती हैं। इस दिन का महत्व इसलिए भी खास होता है क्योंकि माता अपनी संतान के लिए असीम प्रेम और बलिदान का प्रतीक बनकर यह व्रत करती हैं।
“ॐ नमो भगवते जीमूतवाहनाय नमः।”
इस मंत्र का जाप करने से संतान को दीर्घायु और स्वास्थ्य का आशीर्वाद मिलता है।
“ॐ ह्रीं श्रीं पुत्रजीवितायै नमः।”
इस मंत्र से संतान पर आने वाले संकट दूर होते हैं।
“ॐ दुर्गायै नमः।”
यह मंत्र मातृशक्ति की आराधना है, जिससे जीवन में सभी विघ्न दूर होते हैं।
“ॐ नमः शिवाय।”
शिव मंत्र का जाप करने से जीवन में शांति, बल और सौभाग्य प्राप्त होता है।
जितिया व्रत के दौरान मंत्र का जाप करने से संतान के स्वास्थ्य, लंबी उम्र और भाग्य में वृद्धि होती है। मंत्र का उच्चारण न केवल मानसिक शांति देता है, बल्कि व्यक्ति के मन को स्थिर और सकारात्मक ऊर्जा से भर देता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, भगवान जीमूतवाहन संकटों का नाशक और सुरक्षा देने वाले माने गए हैं। इसलिए इस व्रत में नियमित रूप से इस मंत्र का जाप करने से माता अपने मनोकामना पूरी कर सकती हैं। साथ ही यह मंत्र व्रति को आत्मबल और आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करता है, जिससे व्रत के कठिन समय को सहना आसान हो जाता है।
जितिया व्रत की कथा बेहद प्राचीन और मार्मिक मानी जाती है। एक समय की बात है, एक वृद्ध राजा की तीन पुत्रियां थीं। वह संतानहीन होकर बहुत दुखी रहता था। तभी उसकी पुत्रियों ने राजा से व्रत रखने की सलाह दी ताकि उसकी संतान हो। इसी भावना से जितिया व्रत की परंपरा शुरू हुई। माना जाता है कि इस व्रत को रखने वाली माताएं भगवान जीमूतवाहन की पूजा करती हैं और संतान की लंबी उम्र, स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि के लिए कठिन व्रत रखती हैं। जितिया व्रत में एक विशेष दिन माता बिना भोजन और पानी के पूरे दिन व्रत रखती हैं, केवल मंत्र जाप और प्रार्थना करती हैं। यह व्रत माताओं के अपार प्रेम और त्याग का प्रतीक माना जाता है।