Kharmas 2025: होली 2025 से स्नान दान और पूजा पाठ का विशेष महीना खरमास शुरू होने वाला है। लेकिन शास्त्रों की मानें तो खरमास में शुभ और मांगलिक कार्य नहीं करने चाहिए तो आइये जानते हैं कि खरमास में शुभ काम क्यों वर्जित है और खरमास कब से शुरू हो रहा है ..
Why Kharmas Is Inauspicious : जयपुर के ज्योतिषी डॉ. अनीष व्यास के अनुसार पूरे साल में दो बार जब सूर्य देव धनु और मीन राशि में प्रवेश करते हैं तो खरमास लगता है। एक खरमास मध्य मार्च से मध्य अप्रैल के बीच और दूसरा खरमास मध्य दिसंबर से मध्य जनवरी तक होता है।
डॉ. व्यास का कहना है कि धनु और मीन राशि के स्वामी देवगुरु बृहस्पति हैं और सूर्य के संपर्क में आने के चलते देवगुरु बृहस्पति का शुभ प्रभाव कम या क्षीण हो जाता है। इसी कारण सूर्य देव के धनु और मीन राशि में गोचर करने के पीरियड को खरमास कहते हैं। इस दौरान शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं।
Kharmas 2025: ज्योतिषाचार्य डॉ. अनीष व्यास के अनुसार मार्च में ग्रहों के राजा सूर्य देव 14 मार्च को संध्याकाल 06: 34 बजे मित्र ग्रह और गुरु बृहस्पति की राशि मीन में गोचर करेंगे। सूर्य देव के कुंभ राशि से निकलकर मीन राशि में प्रवेश करने के साथ ही खरमास शुरू होगा।
इस दौरान सूर्य देव 18 मार्च को उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में प्रवेश करेंगे। इसके बाद 13 अप्रैल को सूर्य देव मीन राशि से निकलकर मेष राशि में प्रवेश करेंगे। सूर्य देव के मेष राशि में प्रवेश करने के साथ ही खरमास समाप्त हो जाए।
Kharmas 2025: ज्योतिषाचार्य डॉ. व्यास ने बताया कि खरमास विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन, नए काम की शुरुआत आदि मांगलिक कर्मों के लिए शुभ मुहूर्त नहीं रहता है। लेकिन यह पूजा पाठ के नजरिये से बेहद शुभ महीना होता है। इन दिनों में मंत्र जप, दान, नदी स्नान और तीर्थ दर्शन करने की परंपरा है। इस परंपरा की वजह से खरमास के दिनों में सभी पवित्र नदियों में स्नान के लिए काफी अधिक लोग पहुंचते हैं। साथ ही पौराणिक महत्व वाले मंदिरों में भक्तों की संख्या बढ़ जाती है।
इस महीने में शास्त्रों का पाठ करने की परंपरा है। धर्म लाभ कमाने के लिए खरमास का हर एक दिन बहुत शुभ है। इस महीने में किए गए पूजन, मंत्र जप और दान-पुण्य का अक्षय पुण्य मिलता है। अक्षय पुण्य यानी ऐसा पुण्य जिसका शुभ असर पूरे जीवन बने रहता है।
हिंदू पंचांग के अनुसार सूर्य एक साल में एक-एक बार गुरु ग्रह की धनु और मीन राशि में जाता है। इस तरह साल में दो बार खरमास रहता है। सूर्य साल में दो बार बृहस्पति की राशियों में एक-एक महीने के लिए रहता है।
इनमें अक्सर 15 दिसंबर से 15 जनवरी तक धनु और 15 मार्च से 15 अप्रैल तक मीन राशि में। इसलिए इन 2 महीनों में जब सूर्य और बृहस्पति का संयोग बनता है तो किसी भी तरह के मांगलिक काम नहीं किए जाते हैं।
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धार्मिक ग्रंथों के अनुसार गुरु ग्रह यानी देवगुरु बृहस्पति धनु और मीन राशि के स्वामी हैं। सूर्य ग्रह सभी 12 राशियों में भ्रमण करते हैं और एक राशि में करीब एक माह भ्रमण करते हैं। इस तरह सूर्य एक साल में सभी 12 राशियों का एक चक्कर पूरा कर लेता है।
इस दौरान सूर्य जब धनु और मीन राशि में आता है, तब खरमास शुरू होता है। इसके बाद सूर्य जब इन राशियों से निकलकर आगे बढ़ जाता है तो खरमास खत्म हो जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार खरमास में सूर्य देव अपने गुरु बृहस्पति के घर में रहते हैं और गुरु की सेवा करते हैं।
कुंडली विश्लेषक डॉ. अनीष व्यास के अनुसार सूर्य एक मात्र प्रत्यक्ष देवता और पंचदेवों में से एक हैं। किसी भी शुभ काम की शुरुआत में गणेश जी, शिव जी, विष्णु जी, देवी दुर्गा और सूर्यदेव की पूजा की जाती है। जब सूर्य अपने गुरु की सेवा में रहते हैं तो इस ग्रह की शक्ति कम हो जाती है।
साथ ही सूर्य की वजह से गुरु ग्रह का बल भी कम होता है। इन दोनों ग्रहों की कमजोर स्थिति की वजह से मांगलिक कर्म न करने की सलाह दी जाती है। विवाह के समय सूर्य और गुरु ग्रह अच्छी स्थिति में होते हैं तो विवाह सफल होने की संभावनाएं काफी अधिक रहती हैं।
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भविष्यवक्ता व्यास के अनुसार धनु और मीन राशि का स्वामी बृहस्पति होता है। इनमें राशियों में जब सूर्य आता है तो खरमास दोष लगता है। ज्योतिष तत्व विवेक नाम के ग्रंथ में कहा गया है कि सूर्य की राशि में गुरु हो और गुरु की राशि में सूर्य रहता हो तो उस काल को गुर्वादित्य कहा जाता है, जो कि सभी शुभ कामों के लिए वर्जित माना गया है।