Narak Chaturdashi Katha: नरक चतुर्दशी को नरक चौदस आदि नामों से भी जानते हैं। इस दिन लोग घरों में दीये जलाते हैं। नरक चतुर्दशी की कथाओं से आइये जानते हैं इस दिन क्यों दीये जलाते हैं (narak chaudas kyu manate hain) ..
Narak Chaturdashi Katha: नरक चतुर्दशी के दिन यम दीप जलाने का विशेष महत्व है, इसके अलावा हर घर में रोशनी की जाती है और कम से कम 14 दीये जलाए जाते हैं। इससे दिवाली जैसा ही नजारा होता है। आइये जानते हैं वो कथाएं जिसके कारण नरक चतुर्दशी पर मनाते हैं दिवाली ..
पुरातन काल में नरकासुर नामक एक राक्षस ने अपनी शक्तियों से देवता और साधु संतों को परेशान कर दिया था। नरकासुर का अत्याचार इतना बढ़ने लगा कि उसने देवताओं और उस समय के संतों की 16 हजार स्त्रियों को बंधक बना लिया। नरकासुर के अत्याचारों से परेशान होकर समस्त देवता और साधु-संत भगवान श्री कृष्ण की शरण में गए। इसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने सभी को नरकासुर के आतंक से मुक्ति दिलाने का आश्वासन दिया।
नरकासुर को स्त्री के हाथों से मरने का श्राप था, इसलिए भगवान श्री कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा की मदद से कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरकासुर का वध किया और उसकी कैद से 16 हजार स्त्रियों को आजाद कराया और उनसे विवाह किया। बाद में ये सभी स्त्रियां भगवान श्री कृष्ण की 16 हजार पटरानियों के नाम से जानी जानी गईं। नरकासुर के वध के बाद लोगों ने कार्तिक मास की अमावस्या के साथ चतुर्दशी को भी घरों में दीये जलाए और तभी से नरक चतुर्दशी और दीपावली का त्यौहार मनाया जाने लगा।
एक अन्य पौराणिक कथा में दैत्यराज बलि को भगवान श्री कृष्ण द्वारा मिले वरदान का उल्लेख मिलता है। मान्यता है कि भगवान विष्णु ने वामन अवतार के समय त्रयोदशी से अमावस्या की अवधि के बीच दैत्यराज बलि के राज्य, धरती, आकाश और पाताल लोक को 2 कदम में नाप दिया था और तीसरा कदम कहां रखें, इसके लिए राजा बलि से पूछा।
वचन के पालन के लिए परम दानी बलि ने अपना सिर भगवान के चरणों में रख दिया, और भगवान ने अपना तीसरा पैर बलि के सिर पर रख दिया। बलि की वचन पालन की निष्ठा से प्रसन्न होकर भगवान वामन ने बलि से वरदान मांगने को कहा।
दैत्यराज बलि ने कहा कि हे प्रभु, त्रयोदशी से अमावस्या की अवधि में इन तीनों दिनों में हर वर्ष मेरा राज्य रहना चाहिए। इस दौरान जो मनुष्य मेरे राज्य में दीपावली मनाए, उसके घर में लक्ष्मी का वास हो और चतुर्दशी के दिन नरक के लिए दीपों का दान करे, उनके सभी पितर को नरक से मुक्ति मिले और उन्हें यमराज की यातना न मिले।
राजा बलि की बात सुनकर भगवान वामन प्रसन्न हुए और उन्हें वरदान दिया। इस वरदान के बाद से ही नरक चतुर्दशी व्रत, पूजन और दीपदान का प्रचलन शुरू हुआ।