world First white tiger Mohan interesting fact: मध्य प्रदेश के सीधी जिले के कुसमी क्षेत्र के जंगलों में 27 मई 1951 की दोपहर में जन्मा था सफेद बाघ, अपनी मां और तीन भाई-बहनों के साथ रहता था, अचानक चलीं गोलियां...फिर जो हुआ वो चौंकाने वाला.. आज International tiger Day पर पढ़ें दुनिया के पहले सफेद बाघ मोहन की कहानाी...
World First White Tiger Mohan Interesting Facts: मेरी कहानी की शुरुआत होती है 27 मई 1951 की दोपहर से। सीधी जिले के कुसमी क्षेत्र के जंगलों में मां और तीन भाई-बहनों के साथ था। अचानक गोलियों की आवाज आई। मां शिकार बन गई। भाई-बहन भाग गए... और मैं, गुफा में दुबक गया। इसी बीच शिकार करने आए लोगों की नजर पड़ी। तब रीवा के महाराजा मार्तण्ड सिंह जूदेव आए। साथ में कई शिकारी थे। इनके रूप में हमें अपनी मौत नजर आ रही थी। नजदीक आने के बाद भी किसी ने बंदूक नहीं चलाई। वे मुझे पकड़ना चाहते थे। पिंजरा लगाया गया। इसकी हमें भनक नहीं थी। माहौल शांत दिखा तो जिज्ञासावश पिंजरे को देखने निकला और मैं फंस गया... यहीं से एक नई यात्रा शुरू हुई।
नए पड़ाव गोविंदगढ़ किले में लाया गया। मेरे रक्षक बनाए गए पुलुआ बैरिया और उनके जैसे कई सेवक। महाराजा मुझे मोहन सिंह बुलाते थे। मुझसे बातें करते। हमारी ओर फुटबॉल फेंकते तो मैं भी उनकी ओर लौटा देता। सप्ताह में एक दिन मांस देना बंद कर दिया गया। असर यह हुआ कि रविवार को मांस खाता ही नहीं था। उस दिन सिर्फ दूध पीता था। आज दुनिया में जहां भी सफेद बाघ हैं, वो मेरे ही वंशज हैं।
1955 में मेरे साथ एक सामान्य बाघिन को रखा गया, लेकिन कोई सफेद शावक नहीं हुआ। फिर राधा बाघिन आई और साथ रही। 30 अक्टूबर 1958 को चार शावक हुए। नाम मोहिनी, रानी, राजा और सुकेशी रखा गया। इस दिन रीवा राज्य में उत्सव जैसा माहौल रहा। मेरे ‘खून की सफेदी’ पीढ़ियों में फैली। धीरे-धीरे कुनबा बढ़ा और 21 सफेद शावक शामिल हुए। मोहिनी को 1960 में अमरीका भेजा गया। ह्वाइट हाउस में प्रोटोकाल के साथ स्वागत हुआ।
मुझे नहीं पता था कि मेरी एक अलग त्वचा, मेरा अलग रंग एक दिन पूरे रीवा और विंध्य की पहचान बन जाएगा। भारत सरकार ने मेरे नाम पर डाक टिकट निकाला। देश में जानवरों का पहला बीमा मेरे नाम हुआ।
मुझे दफनाया गया, लेकिन मेरा नाम मिटा नहीं। मेरे बच्चों, पोतों और उनकी संतानों ने सफेद बाघों की परंपरा को बढ़ाया। 2015 में रीवा के नजदीक ही मुकुंपुर में वाइट टाइगर सफारी बनी। यह दुनिया की पहली वाइट टाइगर सफारी है। मेरे वंशज खुले जंगल में फिर सांस लेने लगे। आज भी जब कोई कहता है सफेद बाघ तो वो सिर्फ एक जानवर की बात नहीं करता, वो विंध्य की संस्कृति, इतिहास और गर्व की बात करता है। मैं मोहन हूं.. एक सफेद बाघ, एक परंपरा, एक विरासत। और अब, हमेशा के लिए अमर।