Tiger Reserve: एमपी के वीरांगना रानी दुर्गावती टाइगर रिजर्व में जल्द चीतों की बसाहट होगी। यह देश का पहला वन क्षेत्र होगा जहां टाइगर, तेंदुआ और चीता पर्यटकों को एक साथ देखने को मिलेंगे।
Veerangana Rani Durgavati Tiger Reserve: मध्य प्रदेश के सागर में स्थित वीरांगना रानी दुर्गावती टाइगर रिजर्व (नौरादेही अभयारण्य) में चीतों की बसाहट की 15 साल पुरानी संकल्पना साकार होने जा रही है। भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआइआई) देहरादून ने चीते की बसाहट के लिए दो नए स्थान चिन्हित किए हैं, उनमें गुजरात के बन्नी ग्रासलैंड रिजर्व के अलावा सागर के वीरांगना रानी दुर्गावती टाइगर रिजर्व को शामिल किया है।
माना जा रहा है कि अगले वर्ष तक यहां चीतों की शिफ्टिंग हो जाएगी। अगर ऐसा होता है, तो वीरांगना रानी दुर्गावती टाइगर रिजर्व देश का पहला ऐसा वाइल्डलाइफ एरिया होगा, जहां बिग कैट फेमिली के तीन सदस्य एक साथ देखने मिलेंगे। अभी रिजर्व में टाइगर और तेंदुए की बसाहट है। चीतों के आने से इस परिवार की तीन प्रजातियां हो जाएंगी।
राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) के डीआइजी डॉ. वीबी माथुर और डब्ल्यूआइआई के वरिष्ठ वैज्ञानिक ने डिप्टी डायरेक्टर डॉ. एए अंसारी के साथ वीरांगना रानी दुर्गावती टाइगर रिजर्व की रेंज मुहली, झापन और सिंहपुर का दो दिन तक मैदानी मुआयना किया। जानकारों के अनुसार यह तीनों रेंज चीता की बसाहट के लिए आदर्श स्थान हैं। यहां लंबे-लंबे मैदान हैं, जिनमें यह जीव शिकार कर सकेंगे। इन तीनों रेंज का क्षेत्रफल करीब 600 वर्ग किमी है, जबकि रिजर्व का संपूर्ण क्षेत्रफल 2339 किलोमीटर का है।
वन्य जीव शास्त्रियों का कहना है कि चीता, तेंदुए और बाघ के शिकार का तरीका और उनके टारगेट जीव-जंतु अलग-अलग होते हैं। बाघ जहां नीलगाय, भैंसा, हिरण प्रजाति के छोटे-बडो जानवर का शिकार करता है, तो वहीं तेंदुए मध्यम श्रेणी के जानवर जैसे जंगली सुअर, हिरण, नीलगाय, भैंसा के बच्चों का शिकार करता है। जबकि चीता छोटी साइज के हिरण जैसे चीतल, काला हिरण और खरगोश सरीखे जानवरों का शिकार करता है। चीता, बाघ व तेंदुए से दूरी बनाए रखता है।
वीरांगना रानी दुर्गावती टाइगर रिजर्व में एक कमी यह है कि यहां कई गांवों का विस्थापन शेष रह गया है। इनमें सबसे बड़ा गांव मुहली है, जहां की आबादी करीब 1500 है। इसके अलावा बाकी दो रेंज झापन और सिंहपुर में भी कुछ गांव हैं, जहां से लोगों को विस्थापित करने के लिए शासन को करीब 200 करोड़ रुपए व्यय करने होंगे।