सीकर मेडिकल कॉलेज से सम्बद्ध कल्याण अस्पताल में लम्बे समय से बर्न (झुलसे मरीज) के मरीजों की देखभाल में गंभीर लापरवाही सामने आई है। दवाओं का टोटा तो कभी बर्न वार्ड में न्यूरो सर्जरी और आर्थोपेडिक विभाग के मरीजों को भर्ती किया जा रहा है। इससे झुलसे मरीजों में संक्रमण फैलने का खतरा कई गुना […]
सीकर मेडिकल कॉलेज से सम्बद्ध कल्याण अस्पताल में लम्बे समय से बर्न (झुलसे मरीज) के मरीजों की देखभाल में गंभीर लापरवाही सामने आई है। दवाओं का टोटा तो कभी बर्न वार्ड में न्यूरो सर्जरी और आर्थोपेडिक विभाग के मरीजों को भर्ती किया जा रहा है। इससे झुलसे मरीजों में संक्रमण फैलने का खतरा कई गुना बढ़ गया है। अस्पताल प्रशासन की यह लापरवाही मरीजों और उनके परिजनों के लिए चिंता का कारण बन गई है। रही सही कसर बर्न के मरीजों को लगने वाली दवाओं की आए दिन होने वाली कमी से हो गई है। इसका नतीजा है कि बर्न के मरीजों की रिकवरी देरी से हो पाती है।
एसके अस्पताल की पहली मंजिल पर बने नौ बैड के बर्न वार्ड में पिछले दिनों आगरा से सालासर जा रहे तीन लोगों को घायल होने पर बजाए बर्न वार्ड में भर्ती कर दिया गया। बर्न वार्ड में इस साल एक जनवरी से अक्टूबर माह तक सर्जरी के चार दर्जन से ज्यादा मरीज भर्ती रहे। चिकित्सा मानकों के अनुसार संक्रमण को रोकने के लिए बर्न मरीजों को अलग और स्वच्छ वार्ड में रखना जरूरी है।
परिजन बोले: हर समय लगा रहता है डर
हाल ही में सालासर के पास हुए सड़क हादसे में घायल आगरा के रितिक के भाई सुरेश ने बताया वार्ड में झुलसे मरीजों के साथ प्लास्टर और एक्सीडेंट वाले मरीज भी भर्ती रहते हैं। बर्न वार्ड के मरीजों संक्रमण का खतरा इतना ज्यादा है कि हर समय डर रहता है। विशेषज्ञों के अनुसार आग या करंट से झुलसे मरीजों के लिए यह माहौल बेहद खतरनाक है।
खुले घावों में संक्रमण का जानलेवा खतरा
चिकित्सकों के अनुसार करंट या आग से झुलसने पर शरीर की नसें और मांस कमजोर होकर अक्सर फट जाती है। ऐसे में तेजी से खून बहने लगता था। घाव होने के कारण मरीज में किसी भी प्रकार के संक्रमण का खतरा सामान्य मरीजों की तुलना में 90 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। कई बार झुलसे मरीजों में सेप्सिस (खून में संक्रमण) से जान को खतरा हो जाता है। राहत की बात है कि सीकर की बर्न वार्ड में फिलहाल किसी प्रकार का संक्रमण नहीं फैला है और न ही बर्न के मरीजों को रेफर किया गया है। हालांकि कल्याण अस्पताल में बर्न मरीजों के साथ हो रही अनदेखी चिकित्सा सुरक्षा मानकों पर सवाल उठाती है। ज़रूरत है कि अस्पताल प्रशासन तत्काल कदम उठाए, जिससे झुलसे मरीजों की जिंदगी संक्रमण के साए में न गुजरे।
नौ बैड का है बर्न वार्ड
कल्याण अस्पताल की पहली मंजिल पर बर्न यूनिट के लिए भवन बना है। बर्न के मामलों में संक्रमण नहीं फैले और मरीजों को रेफर नहीं करना पड़े। इसके लिए 9 बेड की यूनिट को नए आईसीयू के रूप में तैयार किया गया है। इसमें हर बेड पर मरीज की पल्स, बीपी व ऑक्सीजन सेच्यूरेशन नापने के लिए मॉनिटर, सर्जिकल बेड और प्रत्येक बेड पर सेंट्रलाइज्ड ऑक्सीजन के प्वाइंट, हर बेड के चारों तरफ पर्दे लगाए गए हैं। हालांकि बर्न वार्ड के पास ईएनटी और बरामदे में बैड खाली रहते हैं।
मजबूरी में करते हैं भर्ती
हालांकि यह गलत है। अस्पताल के अन्य वार्ड के भर जाने के कारण कई बार मजबूरी में मरीजों को बर्न वार्ड में भर्ती करना पड़ता है। हालांकि अब बर्न वार्ड के पास नया वार्ड बनाया जा रहा है। इसके बाद इस समस्या से कुछ निजात मिल जाएगी।
डॉ. रामरतन यादव, विभागाध्यक्ष सर्जरी, मेडिकल कॉलेज, सीकर
टॉपिक एक्सपर्ट: फैल सकता है संक्रमण
बर्न के मरीजों की क्षतिग्रस्त त्वचा बैक्टिरिया के प्रति सुरक्षात्मक बाधा का काम नहीं कर पाती, जिससे बैक्टीरिया आसानी से मरीज के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। वहीं बर्न के मरीजों का प्रतिरक्षा तंत्र कमजोर हो जाता है जिससे दूसरी बीमारी से इनमें संक्रमण फैल सकता है। यह संक्रमण बर्न के मरीजों की जान के लिए खतरे का कारण बन सकता है इसलिए इन मरीजों को सामान्य मरीजों के साथ भर्ती नहीं करना चाहिए।
डॉ. आरके जैन, विभागाध्यक्ष बर्न एंड प्लास्टिक सर्जरी, एसएमएस मेडिकल कॉलेज जयपुर