खास बात यह है कि कई ऐसे भी छात्र हैं जो स्कूल, कॉलेज और कोचिंगों से नियमित रुप से अप-डाउन कर सकते हैं। लेकिन परिजन की ओर से पढ़ाई और सेहत को ध्यान में रखते हुए हॉस्टल में ही दाखिला दिलाया जा रहा है।
रमेश शर्मा/अजय शर्मा
सीकर. स्कूली और कॉलेज विद्यार्थियों में लगातार बढ़ती मोबाइल की आदत से हॉस्टल कल्चर भी बदल गया है। पहले जहां अभिभावकों की ओर से बच्चों को अपने क्षेत्र में बेहतर शिक्षण संस्थान नहीं होने पर ही हॉस्टल में दाखिला दिलाया जाता था, लेकिन बदलते दौर में बच्चों को मोबाइल की लत छुड़ाने, बेहतर पढ़ाई, अनुशासन और जीवन की सीख के लिए हॉस्टल कल्चर को पसंद किया जा रहा है। अभिभावकों की बदलती सोच की वजह से शिक्षानगरी में हॉस्टल व पीजी में रहकर पढ़ाई करने वाले विद्यार्थियों की संख्या लगातार बढ़ रही है। इस साल सीकर में एक लाख से अधिक विद्यार्थी अब तक हॉस्टल और पीजी में दाखिला ले चुके हैं। खास बात यह है कि कई ऐसे भी छात्र हैं जो स्कूल, कॉलेज और कोचिंगों से नियमित रुप से अप-डाउन कर सकते हैं। लेकिन परिजन की ओर से पढ़ाई और सेहत को ध्यान में रखते हुए हॉस्टल में ही दाखिला दिलाया जा रहा है।
केस-1
हॉस्टल में रहकर की पढ़ाई फिर नीट में पूरे नंबर जयपुर निवासी देवेश जोशी ने नीट की तैयारी के लिए पिछले साल सीकर में कोचिंग के साथ हॉस्टल में दाखिला लिया। यहां पांच घंटे कोचिंग और फिर हॉस्टल के पढ़ाई के माहौल से काफी फायदा मिला। देवेश ने नीट में 720 में से 720 अंक भी हासिल किए। देवेश ने बताया कि जब घर पर रहते हैं तो मोबाइल फोन किसी न किसी वजह से हाथ में आ ही जाता है। मोबाइल मेरे सपनों की राह में ब्रेकर नहीं बने, इसलिए मैंने हॉस्टल को चुना।
केस-2
बच्चे की आदत से परिजन परेशान, हॉस्टल में दाखिला भरतपुर निवासी कक्षा दसवीं के एक छात्र सौरभ की दिनचर्या में मोबाइल गेम्स रच बस गए। छात्र के घंटों तक मोबाइल देखने की लत से अभिभावक भी परेशान हो गए। ऐसे में सौरभ का सीकर के हॉस्टल में दाखिला दिला दिया। शुरुआत में कई दिनों तक बच्चे का मन नहीं लगा। बाद में स्कूल प्रबंधन ने बच्चे का मन लगाने के लिए क्रिकेट के पुराने शौक को नई रफ्तार दी। सौरभ ने बताया कि अब मोबाइल देखने का मन भी नहीं करता है।
इसलिए छूट रही लत
शिक्षानगरी के ज्यादातर छात्रावासों में मोबाइल पर पूरी तरह पाबंदी है। कई हॉस्टलों में तो स्टाफ को ड्यूटी पर आते ही अपना स्मार्टफोन जमा कराना पड़ता है। यहां रहने वाले विद्यार्थियों की परिजन से सात दिन में एक बार बात कराई जाती। विद्यार्थियों की दिनचर्या सुधारने के लिए सुबह पांच बजे से लेकर रात दस बजे का कलैण्डर तय है। इसके हिसाब से विद्यार्थियों को पढ़ाई कराई जाती है। वहीं विद्यार्थियों के मनोरंजन व शारीरिक व मानसिक फिटनेस के लिए हर दिन 40 मिनट खेलों का अभ्यास कराया जाता है।
एक्सपर्ट व्यू
'तकनीक के इस दौर में मोबाइल जीवन का अहम हिस्सा बन गया है। मोबाइल बच्चों की पढ़ाई के साथ सेहत पर बुरा असर डाल रहा है। इसके अधिक उपयोग से बच्चों में इस तरह की मनोवृत्ति आ रही है कि वह अपनों से दूर होते जा रहे हैं। मोबाइल पर हिंसक गेम खेलने और आपत्तिजनक सामग्री देखने के बाद बच्चा अकेला रहना पसंद करता है। छोटी-छोटी बातों पर नाराज होता है। मोबाइल हाथ से लेते ही गुस्सा करता है या तोडफ़ोड़ करने की कोशिश करता है।' -डॉ. पीयूष सुण्डा, सीकर
'छात्रावास में दाखिला लेने वाले विद्यार्थियों की संख्या में भी बढ़ोतरी हुई है। कई अभिभावकों की ओर से बच्चों को मोबाइल की लत से दूर करने के साथ पढ़ाई कराने के लिए छात्रावास व पीजी को ज्यादा पंसद किया जा रहा है।' -बाबूलाल मील, एक्सपर्ट, सीकर