MP News : ऊर्जाधानी में बंधा एक ऐसा गांव है जहां मकानों में न दरवाजे हैं न खिड़कियां। दरअसल, सिंगरौली से 40 किमी दूर इस गांव की पत्रिका ने हकीकत टटोली तो पाया कि प्रदेश के साथ ही छत्तीसगढ़, राजस्थान, यूपी, उत्तराखंड सहित अन्य राज्यों के लोगों ने इन मकानों को बनाया है। कुछ बड़े अधिकारी और जनप्रतिनिधि भी इसमें शामिल हैं।
MP News : ऊर्जाधानी में बंधा एक ऐसा गांव है जहां मकानों में न दरवाजे हैं न खिड़कियां। दरअसल, सिंगरौली से 40 किमी दूर इस गांव(Singrauli Bandha Village) की पत्रिका ने हकीकत टटोली तो पाया कि प्रदेश के साथ ही छत्तीसगढ़, राजस्थान, यूपी, उत्तराखंड सहित अन्य राज्यों के लोगों ने इन मकानों को बनाया है। कुछ बड़े अधिकारी और जनप्रतिनिधि भी इसमें शामिल हैं। इनका उद्देश्य इन मकानों के नाम पर कोल इंडिया से मोटा मुआवजा लेना है।
ग्रामीणों ने बताया कि बंधा पंचायत में 5 गांव आते हैं, वहां 5,811 मकान बने हैं। इनमें से 4671 मकान मुआवजा पाने की लालच में माफिया ने बनाए। 355 करोड़ मुआवजा भी बना। प्रशासन की जांच के दौरान मुआवजा माफिया(fake house scam Singrauli) की करतूत का खुलासा हुआ। कलेक्टर ने 3,362 मकानों को अवार्ड से बाहर कर मकानों को जमींदोज करने की तैयारी चल रही है।
बंधा कोल ब्लॉक में 3000 से अधिक मकानों को अवार्ड से बाहर किया गया है। अब इन मकानों को जमींदोज करने के लिए निर्देश दिया है। बंधा कोल ब्लाक में 812 मकान पुराने मिले हैं। शेष मकान सभी मुआवजे की लालच में बाहर के लोगों ने निर्माण कराए थे। - चंद्रशेखर शुक्ला, कलेक्टर सिंगरौली
ग्रामीणों (Singrauli Bandha Village) की मानें इन मकान मालिकों की जानकारी किसी को नहीं है। सरपंच देवेंद्र पाठक बताते हैं कि बंधा में मात्र 812 ही पुश्तैनी मकान थे। शेष मकान बाद में बने। 355 करोड़ रुपए मुआवजा भी तैयार हुआ। कलेक्टर ने भवनों के सत्यापन कराए तो गड़बड़ी के चलते 3362 मकानों को अवार्ड से बाहर कर दिया।
जब कोई व्यक्ति लाखों रुपए खर्च कर मकान(fake house scam Singrauli) बनवाता है, तो उसकी प्राथमिकता होती है कि वह शहर या कस्बे में हो, जहां आवागमन के अच्छे साधन हों। स्वास्थ्य, शिक्षा, बिजली, पानी और सड़क जैसी बुनियादी सुविधाएं भी उपलब्ध होनी चाहिए। लेकिन, जिले में जब औद्योगिक कंपनियां या नेशनल हाइवे निर्माण का प्रस्ताव आता है, तो मुआवजा माफिया(Coal Company fake compensation) सक्रिय हो जाते हैं। इन माफिया द्वारा क्षेत्र की जमीन का मूल्य बढ़ा दिया जाता है, जिससे स्थानीय लोग प्रभावित होते हैं।
बंधा गांव पहुंचने पर यह महसूस होता है कि यह कोई गांव नहीं, बल्कि एक शहर की तस्वीर है। अधिकांश मकानों में दरवाजे तक नहीं हैं। कुछ में तो बस ढांचा दिखता है। यह सब देखकर साफ है कि इन मकानों का उद्देश्य केवल मुआवजा(Coal Company fake compensation) हासिल करना है, न कि स्थाई निवास। कलेक्टर की गठित टीम ने बंधा गांव में वैध, अवैध, नवीन और पुराने मकानों का भौतिक सत्यापन किया। इस दौरान 25 ऐसे भी मकान पाए गए, जो आदिवासियों के पट्टे की भूमि पर बनाए गए थे।