खास खबर

एक्सप्लेनर: भारत में कम्यूनिस्ट पार्टी के 100 साल, क्या है इतिहास और कैसा है मौजूदा हाल?

2025 में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (CPI) अपनी स्थापना के 100 साल पूरे कर रही है। 26 दिसंबर 1925 को कानपुर में इसका पहला राष्ट्रीय अधिवेशन हुआ था।

2 min read
Dec 27, 2025
CPI (AI Generated Images)

Communist Party of India100 years: विचारधारा आधारित राजनीतिक दल के रूप में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया की स्थापना के 100 वर्ष हो रहे हैं। माना जाता है कि 26 दिसंबर 1925 को कानपुर में एक दल के रूप में इसकी पहली बैठक हुई थी। वामपंथ से प्रेरित इस दल के विचारधारा भले ही जर्मन दार्शनिक कार्ल मा से प्रेरित हो,लेकिन वामपंथ की तीन प्रमुख धाराएं भारत में आईं। इनके आधार पर कई कम्युनिस्ट पार्टियों का उदय हुआ। पहली धारा मार्क्सवादी क्रांतिकारी एमएन रॉय के नेतृत्व में आई। दूसरी धारा स्वतंत्र वामपंथी समूहों की थी गुलाम हुसैन, एसए डांगे, मुजफ्फर अहमद और ङ्क्षसगारवेलु एम. चेट्टियार के समूह मुख्य थे। वहीं तीसरी धारा मजदूरों और किसान संगठनों की थी। यह तीनों धाराएं भारत के कम्युनिस्ट आंदोलन में समाहित हुईं।

ये भी पढ़ें

रेलवे ट्रैक्स पर वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए एआई का ‘कवच’ मजबूत: हाथी, शेर-बाघ को बचाने की बड़ी पहल

कहां हुआ पहला अधिवेशन?

1917 में रूस में हुई बोल्शेविक क्रांति के साथ ही कम्युनिस्ट विचार तेजी से दुनिया में फैला भारत भी इससे अछूता नहीं था। यहां तभी से वामपंथी विचार से प्रेरित समूह बनने लगे थे, लेकिन सक्रिय वामपंथी धाराओं का पहला राष्ट्रीय सम्मेलन 1925 में कानपुर में हुआ था। उस समय कानपुर देश का प्रमुख औद्योगिक शहर था। जहां बड़ी संख्या में मजदूर रहते थे। एक संयोग यह भी था कि उसी समय कानपुर में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन भी हो रहा था। कानपुर में ही ब्रिटिश सरकार ने 1923 को भारत के वामपंथियों के विरुद्ध बोल्शेविक साजिश केस भी चलाया था। राष्ट्रीय आंदोलन में वामपंथ के माक्र्सवादी और साम्यवादी स्वरूपों से प्रेरित समूहों ने भी योगदान दिया।

पहला विभाजन कब हुआ?

कम्युनिस्ट पार्टी की भारत में स्थापना को लेकर कई सवाल हैं। 1964 में मतभेदों के कारण इसका विभाजन हुआ और सीपीआइ व सीपीआइ माक्र्सवादी बनी। हालांकि इससे पहले कम्युनिस्ट दलों ने साम्राज्यवाद के विरोध में कई अहम आंदोलन किए। इसके अलावा 1945 में कई किसान आंदोलनों का भी नेतृत्व किया।

कब बनी हिंसक और राजनीतिक धारा?

स्वतंत्रता मिलने के बाद कम्युनिस्ट आंदोलन दो धाराओं में बंटा। एक भूमिगत और हिंसक विद्रोह में यकीन करता था। दूसरा लोकतांत्रिक प्रणाली में । लोकतांत्रिक प्रणाली को मानने वाली वामपंथ ने आगे चल कर केरल,पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा में सरकारें भी बनार्ईं। साथ ही केंद्र सरकार में भी कई बार अहम भूमिका निभाई।

क्यों कम हुई हसिया की धार?

कम्युनिस्ट पार्टी की पहचान हसिया और गेंहू के चिन्ह रहे हैं।,लेकिन वक्त के साथ हसिया की धार कम होती गई। मौजूदा दौर में देश में सिर्फ केरल में ही वामपंथी दल की अगुवाई वाली सरकार है। पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा में इसके पुराने किले ढह चुके हैं। लोकसभा और राज्यसभा में इसके सदस्यों की संख्या दहाई में भी नहीं है। राजनीति के जानकारों के अनुसार राजनीति के बदलते तौर तरीकों के अनुसार वामपंथी पार्टियां खुद को बदल नहीं सकीं। जनता से भी इनका जुड़ाव कम होता गया।

Published on:
27 Dec 2025 05:35 am
Also Read
View All

अगली खबर